Mushroom on Frog
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Mushroom on Frog: हाल ही में केरल और कर्नाटक से एक हैरान कर देने वाला मामला सामने आया है। कर्नाटक और केरल के पश्चिमी तट की घाटी की तलछटी में एक ऐसा मेंढक देखने को मिला है जिसकी बाई ओर से एक मशरूम पनपता नज़र आया है। ऐसे अजीबोगरीब बदलाव को देखने के बाद वैज्ञानिक भी हैरानी में पड़ चुके हैं। इसके बारे रेप्टाइल्स पत्रिका में सारी जानकारी प्रकाशित की गई है। जिसके मुताबिक, मेंढक की पहचान राव्स इंटरमीडिएट गोल्डन बैक्ड फ्रॉग के रूप में हुई है। इससे विश्व वन्यजीव कोर्स के अनुसंधानकर्ताओं समेत एक टीम ने पिछले साल 19 जून को कर्नाटक के करकला में देखा था। यह विशेष प्रजाति केरल और कर्नाटक के पश्चिमी घाटों के लिए स्थानिक है।

करीब 40 मेंढक देखे-

विशेष रूप से पालघाट ऊपर के क्षेत्र में जहां से सापेक्ष बहुदायत में पनपने के लिए जाना जाता है। सड़क के किनारे बारिश के पानी के एक छोटे से तालाब में अनुसंधान कर्ताओं ने ऐसे करीब 40 मेंढक देखे हैं। इनमें से एक के बाएं हिस्से में कुछ अजीब चीज दिखाई दी थी और करीब से पड़ताल करने के बाद उसकी बाईं ओर से एक मशरूम उगता हुआ नजर आया। वह मेंढक जिंदा था और इस असामान्य स्थिति के बाद भी सक्रिय था।

विश्लेषण के बाद मशरूम की पहचान-

माइकोलॉजिस्ट द्वारा की गई जांच नें सामने आया कि यह मशरूम बोनट मशरूम की एक प्रजाति है। साथ ही आपको यह जानकर हैरानी होगी यह मशरुम आमतौर पर सैप्रोट्रॉफ या फिर सड़ती हुई लकड़ी के रूप में पाई जाती है। सैप्रोट्रॉफ एख ऐसी संरचना है जो की निर्जीव जैविक वस्तुओं पर ही पैदा होती है। हालांकि हैरान कर देने वाली यह बात है कि मशरूम उगने के बावजूद भी यह मेंढक बिल्कुल स्वस्थ और जिंदा है। वैज्ञानिक भी अब इस रहस्य को सुलझाने में जुटे हुए हैं। आखिर ऐसे मेंढक के शरीर पर मशरूम कैसे उग गया और इसका उस पर कोई असर तो नहीं पड़ रहा।

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ऐसा पहला मामला-

शोधकर्ताओं के मुताबिक, इससे उभयचर प्राणियों और फंगस के बीच अज्ञात संबंधों को समझने में मदद मिलेगी। इस मेंढक के शरीर को जब पहली बार देखा गया था तो उसके शरीर के बाएं तरफ एक अजीब सी चीज़ देखने को मिल रही थी, जो कि करीब से जाने पर मशरूम निकली और यह अब तक का ऐसा पहला मामला है जिसमें कि किसी भी जीवित प्राणी या जीव पर मशरूम उगते हुए नजर आया हो। इस खोज के बारे में शोधकर्ताओं की एक टीम ने पिछले साल कर्नाटक के कार्य काल में इस अनोखे नजारे को देखा था। उसमें विश्व वन्यजीव कोष के शोधकर्ता भी शामिल थे।

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