Parallel Universe: कल्पना कीजिए कि आप किसी सुबह उठते हैं और आपके सामने आपका हमशक्ल खड़ा होता है। अब आपका पहला रिएक्शन क्या होगा, आप अपनी आंखों पर यकीन नहीं करेंगे पर आप यह जान लीजिए यह बात ग्रेट साइंटिस्ट स्टीफन हॉकिंग ने द्वारा कही गई थी, स्टीफन हॉकिंग ने इससे रिलेटेड एक थ्योरी भी दी, जिसे मल्टीवर्स या पैरेलल यूनिवर्स के नाम से जाना जाता है। हॉकिन्स का मानना था, कि जिस तरह हमारा यूनिवर्स है ठीक उसी तरह हमारे आसपास भी कई ऐसे यूनिवर्स मौजूद हैं, जो बिल्कुल हमारी तरह ही हैं। उनकी अपनी गैलेक्सीस, ब्लैक होल्स और शायद अपनी सिविलाइजेशन भी है। हॉकिंग ने अपनी बात बिंग बैंग थ्योरी से समझाई थी, हॉकिंग के मुताबिक, जैसे हमारी गैलेक्सी बिग बैंग से बनी थी उसी समय ब्रह्मांड में बाकी कई गैलेक्सीस का भी निर्माण हुआ था और क्योंकि यह यूनिवर्स साथ में बने। इसलिए वह हमारे यूनिवर्स की तरह ही होंगे, जो वैज्ञानिक हॉकिन्स की थ्योरी से एग्री करते हैं, उनका मानना है कि जिस तरह हमारी यूनिवर्स में धरती पर सिविलाइजेशन है।
पैरेलल यूनिवर्स में भी ऐसे प्लैनेट्स-
इसी तरह फिजिकल सेम होने के कारण हमारे पैरेलल यूनिवर्स में भी ऐसे प्लैनेट्स हैं, जिन पर जीवन की मौजूदगी है। वैज्ञानिकों के मुताबिक, एक साथ और एक ही तरीके से बनने के कारण इन यूनिवर्स में जीवन की शुरुआत बिल्कुल पृथ्वी की ही हुई तरह हुई होगी और ठीक इसी तरह आगे भी बढ़े होंगे। लेकिन यह जरूरी नहीं है कि वहां पर इवोल्यूशन भी इसी तरह हुआ हो, क्योंकि भले ही हमारे सभी पैरेलल यूनिवर्स हमारे साथ बने हों। लेकिन यहां पर कुछ ऐसी एस्टॉनोमिकल घटनाएं हुई होगी, जिन्होंने यहां पर जीवन को समाप्त कर दिया होगा। जैसे हो सकता है कि वहां पर एस्टेरॉइड टकराया हो, जिससे वहां पर जीवन पूरी तरह समाप्त हो गया हो या दूसरी संभावना यह भी हो सकती है, ऐसे किसी ग्रह पर डायनासोर जैसे विशाल जीवों का अंत करने के लिए, किसी तरह का कोई एस्टेरॉइड नहीं टकराया होगा और आज डायनासोर वहां पर एडवांस सिविलाइजेशन की तरह रहते होंगे। जिसका मतलब है कि हमारे पैरेलल यूनिवर्स में फिजिकल लॉस तो सेम है, लेकिन वहां पर छोटे-छोटे चेंज के कारण परिस्थितियों बहुत ज्यादा अलग हो सकती है। पैरेलल यूनिवर्स को लेकर वैज्ञानिकों ने आज तक बस एक ही थ्योरी नहीं दी है।
कई वैज्ञानिकों ने अपनी अलग-अलग थ्योरी दी-
बल्कि से समझने के लिए कई वैज्ञानिकों ने अपनी अलग-अलग थ्योरी दी। जैसे ह्यूग एवरेट ने मल्टीवर्स की थ्योरी को एक्सप्लेन करने के लिए क्वांटम मैकेनिक्स पर आधारित एक एक्सप्लेन दिया। इस एक्सप्लेनेशन के मुताबिक, हमारे आसपास घटने वाली हर एक घटना एक अलग यूनिवर्स को जन्म देती है। आप इसे इस तरह समझिए, मान लीजिए आप इस यूनिवर्स में हमारा आर्टीकल पढ़ रहे हो और आपके पैरेलल यूनिवर्स में भी आपका हमशकल हमारा ही आर्टीकल पढ़ रहा है। लेकिन आप इस आर्टीकल को यहीं पर बंद कर देते हैं और आपके पैरेलल यूनिवर्स का आदमी इस आर्टीकल को पढ़ना बंद नहीं करता है। अब यहां पर यह पॉसिबिलिटीज क्रिएट होती हैं, कि अब आपको इस आर्टीकल के बारे में कुछ भी नहीं पता, पर आपके पैरेलल यूनिवर्स में मौजूद आपके हमशकल ने यह आर्टीकल पूरा पढ़ा है और उसे आर्टीकल के बारे में सब कुछ पता है और इस आर्टीकल की तरह और भी कई ऐसे काम हैं, जिनके कारण दोनों प्लेनेट पर कई सारे डिफरेंस आ जाते हैं। मतलब बहुत छोटे-छोटे चेंज इन दोनों ग्रह पर एक बहुत बड़ा डिफरेंट क्रिएट कर देते हैं और इसलिए हम यह नहीं कह सकते, कि मल्टीवर्स में मौजूद सभी यूनिवर्स बिल्कुल हमारी यूनिवर्स की तरह ही हो।
नेशनल अकैडमी आफ साइंस के मेंबर-
कुछ इसी तरह की बात नेशनल अकैडमी आफ साइंस के मेंबर कहते हैं, कि हम भले फिजिक्स के कांस्टेंट मान कर हमारे आसपास मौजूद यूनिवर्स में जीवन की मौजूदगी को सही मानें, लेकिन किसी भी प्लेनेट पर जीवन की शुरुआत के लिए सबसे जरूरी फंडामेंटल लॉस होते हैं। अगर हमारे ब्रह्मांड में इन फंडामेंटल लॉस में छोटा सा भी चेंज हो जाए, तो हम इंसान इस धरती से मिट जाएंगे। उदाहरण के लिए अगर हम इस यूनिवर्स के सभी प्रोटोन का साइज में 0.002 गुना बड़ा कर दें, तो यह सभी अंस्टेबल हो जाएंगे। जिससे पूरे ब्रह्मांड में मौजूद सारे के सारे एटम्स एक-एक करके खत्म हो जाएंगे और हमारे ब्रह्मांड का नामो निशान मिट जाएगा। इसीलिए किसी भी प्लेनेट पर जीवन के लिए इन फंडामेंटल पार्टिकल्स का कांस्टेंट होना बहुत ही ज्यादा जरूरी है, पर यह ज़रुरी नहीं है कि हमारे यूनिवर्स में फंडामेंटल पार्टिकल्स एक ही साइज या सीक्वेंस के हैं। कई वैज्ञानिक इस बात को स्ट्रींग्स थ्योरी से भी समझाते हैं। वैज्ञानिक मानते हैं कि हमारे यूनिवर्स का सबसे छोटा पार्टिकल एटम नहीं बल्कि एटम में मौजूद स्ट्रिंग होती है यह स्ट्रींग्स गिटार के स्ट्रींग्स की तरह ही होती है।
फिजिक्स के फंडामेंटल्स में स्ट्रींग्स का बहुत ज्यादा बड़ा रोल-
जिनके साइज का अंदाज आप इस बात से लगा सकते हैं. कि अगर हम एटम को यूनिवर्स जितना बड़ा कर दें, तो यह स्ट्रिंग्स उसमें मौजूद एक छोटे से पेड़ के बराबर होगी। लेकिन यह छोटी स्ट्रींग्स फिजिक्स के फंडामेंटल्स में बहुत ज्यादा बड़ा रोल प्ले करती है। यह स्ट्रींग्स अलग-अलग तरह को कॉम्बिनेशंस बनाकर यूनिवर्स को बनती है और वैज्ञानिकों के मुताबिक, यह स्ट्रींग्स 10 टू की पावर 1000 कांबिनेशंस बना सकती है। यह कांबिनेशन कितना ज्यादा है, इस बात का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि हमारे पूरे यूनिवर्स में मौजूद सभी एटम्स की संख्या भी महज़ 10 टू द पावर 1000 है। यह स्ट्रींग्स ही यूनिवर्स की फिजिकल प्रॉपर्टीज इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फील्ड, ग्रेविटेशनल फील्ड और सिंपल मैग्नेटिक फील्ड को बनाती है और इनके इतने सारे कॉम्बीनेसन्स के कारण हर यूनिवर्स में यह फिज़िकल प्रॉपर्टीसस अलग-अलग होती है।
यूनिवर्स में बहुत ही रेयर और रेंडम कांबिनेशन बने-
हमारी धरती पर भी लाइफ सिर्फ इसलिए पॉसिबल है, क्योंकि सारी स्ट्रिंग से मिलकर हमारे यूनिवर्स में बहुत ही रेयर और रेंडम कांबिनेशन बने हैं। जिसने इंसानों के रहने के लिए इन सभी प्रॉपर्टीज को जन्म दिया। स्ट्रींग्स थ्योरी के कारण हम यह नहीं कह सकते, कि हमारे पैरेलल यूनिवर्स में भी जीवन मौजूद है, पर हम इसे नकार भी नहीं सकते। जो वैज्ञानिक स्ट्रींग्स थ्योरीज़ का विरोध करते हैं, वह एंटीमेटर की थ्योरी से अपनी बात सही साबित करने की कोशिश करते हैं। एंटीमैटर मैटर से बिल्कुल उलटे होते हैं। हम जिस यूनिवर्स में रहते हैं वह मैटर का बना है, लेकिन कॉस्मोलॉजी के हिसाब से मल्टीवर्स में जितने मैटर है, उतनी ही एंटीमैटर है। इसीलिए शायद हमें पता ना हो। लेकिन हमारे यूनिवर्स का एक माइनर यूनिवर्स भी एंटीमैटर में एग्ज़िस्ट करता है। एंटीमैटर में मौजूद हर चीज मैटर की बिल्कुल ऑपोजिट होती है। जैसे हमारी धरती पर घड़ी राइट डायरेक्शन की ओर घूमती है, वैसे ही एंटीमैटर में यह बिल्कुल ऑपोजिट डायरेक्शन से घूमेगी।
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पैररल यूनिवर्स बिल्कुल हमारी यूनिवर्स की तरह?
यह पैररल यूनिवर्स बिल्कुल हमारी यूनिवर्स की तरह ही है। लेकिन इसकी एग्ज़ेक्ट कॉपी नहीं है। यहां पर इस बात की काफी ज्यादा पॉसिबिलिटीज है, कि पैरलल यूनिवर्स में ठीक उसी तरह की एक्टिविटीज़ होती है, जिस तरह की हमारी धरती पर होती है। लेकिन एक्जेक्टली सेम नहीं होतीय़ पैरेलल यूनिवर्स और मल्टीवर्स हमेशा से एक ऐसा विवादित मुद्दा रहा है, जिसे वैज्ञानिक आज तक नहीं समझ पाए हैं। अगर बात हिस्ट्री की जाए तो एंसिएंट इंडिया में भी ढेरों ऐसी कलाकृतियां बनी हैं, जिन्हें देखने पर ऐसा लगता है मानों यह किसी और यूनिवर्स के बारे में बता रहे हों। ठीक इसी तरह की कुछ कलाकृतियां बनी हुई हैं, जो हमारे सामने पैरेलल यूनिवर्स के रहस्य पर सवाल खड़ा करती है। पर इन सबके बावजूद हम ना तो यह कह सकते हैं कि हमारे आसपास किसी तरह का यूनिवर्स मौजूद है और ना ही हम इस बात को कह सकते हैं कि हमारा यूनिवर्स एकमात्र यूनिवर्स है।
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