Geeta on Overthinking: ज़्यादा सोचना यानी ओवरथिंकिंग कोई छोटी आदत नहीं है। यह एक घुटन है, जो धीरे-धीरे हमारी सांसों को रोक देता है। आज की तेज रफ्तार जिंदगी में हर व्यक्ति कभी न कभी अपने ही विचारों के जाल में फंसता है। रात को सोते समय वही गलतियां याद आती हैं, वही चिंताएं मन को कुरेदती रहती हैं। यह मानसिक स्थिति न सिर्फ हमारी नींद उड़ाती है, बल्कि हमारे आत्मविश्वास को भी हिला देती है।
गीता का महत्व-
यही कारण है, कि गीता आज भी उतनी ही प्रासंगिक है। यह कोई दूर का धर्मग्रंथ नहीं है, बल्कि उस हाथ की तरह है, जो अपने ही मन में डूब रहे इंसान को बचाने के लिए आगे बढ़ता है। गीता युद्ध के बीच में बोली गई थी, लेकिन यह सबसे ज्यादा उन युद्धों में काम आती है, जो हम चुप्पी में अकेले लड़ते हैं।
जब हमारे संदेहों का अंधकार हमें घेर लेता है, जब मन ही युद्धक्षेत्र बन जाता है, तब कृष्ण के शब्द केवल दर्शन नहीं हैं, बल्कि एक बचाव अभियान हैं। यहां हैं, सात श्लोक जो सिर्फ बेचैन विचारों को शांत नहीं करते, बल्कि उनकी जड़ों पर प्रहार करते हैं। ये याद दिलाते हैं, कि जिंदगी डर से बड़ी है और आप अपने तूफानों से मजबूत हैं।
पहला श्लोक काम करो, परिणाम की चिंता छोड़ो-
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥ (2.47)
हम घंटों उन भविष्य की कल्पनाओं में खो जाते हैं, जो कभी आते ही नहीं। हम उन परिणामों का बोझ ढोते रहते हैं, जिन पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं है। कृष्ण कहते हैं, कि फल तुम्हारा नहीं है, केवल कर्म तुम्हारा है। करो, काम करो, आगे बढ़ो, लेकिन कल को आज में मत घसीटो। यही तरीका है, अधिक सोचने की रस्सी को काटने का, अपने आप को पूरी तरह से वर्तमान में समर्पित कर देना।
यह श्लोक हमें सिखाता है, कि हमें अपना पूरा ध्यान वर्तमान के काम पर देना चाहिए। जब हम परिणाम की चिंता में डूब जाते हैं, तो हमारा वर्तमान क्षण का काम भी प्रभावित हो जाता है। सफलता का रहस्य यही है, कि हम अपनी पूरी शक्ति कार्य में लगाएं, प्रतिक्रिया में नहीं।
दूसरा श्लोक अंत से डरना छोड़ो, वे सिर्फ नए शुरुआत के दरवाजे हैं-
जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च। तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि॥ (2.27)
ज्यादा सोचने की समस्या अक्सर अंत के डर से जन्म लेती है। हम असफलता के डर में रहते हैं, हानि के डर में रहते हैं, मृत्यु के डर में रहते हैं। लेकिन कृष्ण स्पष्ट कहते हैं, कि मृत्यु निश्चित है और जन्म भी। समाप्ति का मतलब विनाश नहीं है, बल्कि रूपांतरण है। जब हम यह याद रखते हैं, तो डर की पकड़ शिथिल हो जाती है। हम अपनी मौत का अभ्यास करने के बजाय जीना शुरू कर देते हैं।
हर अंत एक नई शुरुआत का संकेत है। जब हम यह समझ जाते हैं कि परिवर्तन जीवन का प्राकृतिक हिस्सा है, तो हम छोटी-छोटी असफलताओं से घबराना बंद कर देते हैं।
तीसरा श्लोक चंचल मन धैर्यवान हाथों के आगे झुकता है-
असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलम्। अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते॥ (6.35)
आपका मन बेचैन है, हां। अनियंत्रित है, हां। लेकिन अदम्य नहीं है। खुद अर्जुन ने भी स्वीकार किया था, कि उसके विचार जंगली घोड़ों की तरह भागते रहते हैं। कृष्ण का उत्तर तत्काल शांति नहीं है, बल्कि अभ्यास है। एक धैर्यवान माली हवा को कोसता नहीं है, वह दीवारें बनाता है, वह फिर से बीज बोता है। मन के साथ भी यही करना पड़ता है। अभ्यास करो, आसक्ति छोड़ो और फिर से शुरू करो।
यह प्रक्रिया रातों-रात नहीं होती, लेकिन निरंतर प्रयास से मन को प्रशिक्षित किया जा सकता है। जैसे एक जंगली घोड़े को धीरे-धीरे काबू में किया जाता है, वैसे ही मन को भी धीरज और अभ्यास से वश में किया जा सकता है।
चौथा श्लोक जीत और हार दोनों भ्रम हैं-
सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ। ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि॥ (2.38)
हर विचार यह पूछता है, कि अगर मैं हार गया तो क्या होगा? अगर मैं जीत गया तो क्या होगा? लेकिन कृष्ण गहरी बात कहते हैं, कि दोनों परिणाम केवल छाया हैं। अगर आप अपनी आत्मा को किसी भी परिणाम के साथ जोड़ देंगे, तो आप गर्व और निराशा के बीच झूलते रहेंगे।
इससे बाहर निकलो। अपनी लड़ाई लड़ो, लेकिन परिणाम को एक राहगीर की तरह आने दो, अपना स्वामी मत बनने दो। यह मानसिकता हमें मानसिक स्थिरता देती है और निरंतर प्रदर्शन में सहायता करती है।
पांचवां श्लोक दीपक को हवा के शोर से बचाओ-
यथा दीपो निवातस्थो नेङ्गते सोपमा स्मृता। योगिनो यतचित्तस्य युञ्जतो योगमात्मनः॥ (6.19)
हमारा मन तूफान में दीपक की तरह कांपता रहता है। विचार तेजी से आते हैं, हमें शांति से घबराहट तक ले जाते हैं। कृष्ण दीपक का उदाहरण देते हैं, जो हवा से बचकर रखा गया हो स्थिर, शांत और चमकदार। ध्यान वही आश्रय है।
यह कोई विलासिता नहीं है, बल्कि आवश्यकता है। इसके बिना तूफान आपका स्वामी बन जाता है। इसके साथ आप अंधेरे में भी देख सकते हैं। नियमित ध्यान अभ्यास हमारे मन की स्थिरता बढ़ाता है और बाहरी व्यवधानों से बचाता है।
छठा श्लोक जंजीर को गला घोंटने से पहले काट दो-
ध्यायतो विषयान्पुंसः सङ्गस्तेषूपजायते। सङ्गात्संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते॥ (2.62)
हर जुनून एक विचार से शुरू होता है, जो बार-बार दोहराया जाता है। वह विचार आसक्ति में बदल जाता है, फिर इच्छा में, फिर क्रोध में जब वास्तविकता आपकी कल्पना के आगे नहीं झुकती। यही है, अधिक सोचने का चक्र। कृष्ण की बुद्धि सर्जिकल है – इस श्रृंखला को पहली ही कड़ी पर तोड़ दो। उस विचार को पालने से मना कर दो जो आपकी जेल को भोजन देता है।
जब हम किसी नकारात्मक विचार को बार-बार सोचते रहते हैं, तो वह हमारी आदत बन जाता है। फिर यह आदत हमारी इच्छा बन जाती है और जब यह पूरी नहीं होती तो क्रोध जन्म लेता है। इसलिए शुरुआत में ही इस चक्र को रोकना जरूरी है।
सातवां श्लोक आप तूफान नहीं हैं, आप आकाश हैं-
न जायते म्रियते वा कदाचिन्न ्नायं भूत्वा भविता वा न भूयः। अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे॥ (2.20)
अधिक सोचने का सबसे बड़ा झूठ यह है, कि एक गलती, एक हार, एक अस्वीकृति आपको परिभाषित करती है। कृष्ण सच्चाई बताते हैं, आप न जन्मते हैं, न मरते हैं। आप शाश्वत हैं। विचारों का तूफान चलता रहता है, लेकिन आप तूफान नहीं हैं। आप वह आकाश हैं, जिसमें यह तूफान चलता है, विशाल, अछूता, अटूट।
यह समझना, कि हमारा असली स्वरूप इन बदलते विचारों और भावनाओं से कहीं बड़ा है, हमें मानसिक शांति देता है। हम अपनी अस्थायी समस्याओं में खुद को खो देते हैं, लेकिन वास्तव में हम उससे कहीं अधिक हैं।
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अंतिम संदेश साहस ही समाधान है-
ज़्यादा सोचना एक युद्ध है। यह कोमल नहीं है, हानिरहित नहीं है। यह एक ऐसा युद्ध है, जो दशकों को चुरा सकता है, आपको जिंदा छोड़ सकता है, लेकिन कभी जीने नहीं दे सकता। कृष्ण की बुद्धि कोई दर्शन नहीं है, जिसकी प्रशंसा की जाए, यह एक हथियार है, जिसका इस्तेमाल करना है।
काम करो, लेकिन अपने आप को फल से मत बांधो। कम डरो, क्योंकि अंत विनाश नहीं है। मन को प्रशिक्षित करो, यह अनुशासन के आगे झुकता है। जीत या हार का स्वामी मत बनो। हवा से बचे दीपक की तरह स्थिरता बनाओ। आसक्ति के चक्र को इससे पहले, कि यह आपको तोड़े, तोड़ दो। याद रखो, आप शाश्वत हैं।
गीता आपको सुख नहीं देती, बल्कि साहस देती है और साहस ही है, जो भीतर के युद्ध का अंत करता है।
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