Argentina
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    इस देश को कभी कहा जाता था दुनिया की सबसे बड़ी सुपरपावर, लेकिन..

    Last Updated: 21 अगस्त 2024

    Author: sumit

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    Argentina: यह है अर्जेंटीना जिसको इस वक्त दुनिया की सुपर पावर होना चाहिए था, आज से सौ साल पहले दुनिया की सबसे अमीर कंट्रीज़ में से एक था। अर्जेंटीना की इकॉनॉमी इतनी तेज़ी से डेवलप हो रही थी कि इसे अमेरिका का सबसे बड़ा कंपेटिटर कहा जाने लगा और इसकी सबसे बड़ी वजह अर्जेंटीना की यह परफेक्ट ज्योग्राफी थी। अर्जेंटीना के केंद्र में ब्राजील और यूरो गाय के बॉर्डर्स तक फैला हुआ यह पैंपर्स रीजन है, जो शायद हमारी पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा फर्टाइल एरिया है। यहां का मौसम, बारिश और जमीन हर चीज़ एग्रीकल्चर के लिए बेहतरीन है। इसी तरह अर्जेंटीना के नॉर्थ में जबरदस्त रिवर सिस्टम है, जहां पर करारा और यूरो गाय रिवर जैसे बड़े दरिया हैं, सन सिर्फ एग्रीकल्चर और पीने के लिए साफ पानी मिलता है, बल्कि अर्जेंटीना इन रिवर्स से अच्छी खासी बिजली भी पैदा करता है।

    जबरदस्त नेचुरल प्रोटेक्शन argentina-

    अर्जेंटीना की सारी वेस्टर्न साइड पर एंडेज माउंटेन रेंज है, जो इसे दूसरे कंट्री से एक जबरदस्त नेचुरल प्रोटेक्शन देती है और फिर ईस्टर्न साइड पर माइटी अटलांटिक ओशन है, जिसके साथ अर्जेंटीना की 5000 किलोमीटर लंबी कोस्टलाइन है। इस कोस्टलाइन की वजह से अर्जेंटीना इजीली ग्लोबल मार्केट से कनेक्ट रहता है और बॉर्डर्स के साथ समुद्र होने की वजह से यहां पर हर साल एक मिलियन टन के करीब मछली पकड़ी जाती है। जिसमें से ज्यादातर दूसरे कंट्री को एक्सपोर्ट होती है। अभी तक तो यह अर्जेंटीना के सिर्फ ज्योग्राफिक एडवांटेज थे, अर्जेंटीना में दुनिया के तीसरे सबसे बड़े लिथियम, दुनिया के 9वे सबसे बड़े सिल्वर सत्र, सबसे बड़े गोल्ड, 18वे सबसे बड़े नेशनल गैस और 32वें सबसे बड़े तेल के रिजर्व्स हैं।

    गॉड गिफ्टेड कंट्री argentina-

    अर्जेंटीना लिटरेरी गॉड गिफ्टेड कंट्री है, इतना कुछ होने के बाद अर्जेंटीना बहुत जल्द एक वर्ल्ड सुपर पावर बनेगा और ऐसा ही हो रहा था। 19th सेंचुरी के आखिर में अर्जेंटीना का जीडीपी कनाडा ऑस्ट्रेलिया और यूके से भी ज्यादा था। अमेरिका और अर्जेंटीना को उस वक्त फ्यूचर की वर्ल्ड सुपर पावर्स प्रिडिक्ट किया जा रहा था। लेकिन फिर एकदम ऐसा क्या हुआ कि वर्ल्ड फास्टेस्ट सुपर पावर्स प्रिडिक्ट आज 100 साल बाद द बिगेस्ट ट्रेजेडी का साउथ अमेरिका बन चुका है।

    नोबेल प्राइज विनर साइमन क्रिस ने कहा था कि दुनिया में चार तरह की इकोनॉमी होती है, डेवलप्ड, अन डेवलप्ड, जापान और अर्जेंटीना। पिछले 100 सालों में अर्जेंटीना नो दफा बैंकरप्ट हो चुका है और पिछले सिर्फ 50 सालों की इकोनॉमिक परफॉर्मेंस में आपको बहुत से इकोनामिक बूम्स और क्राईसेस नजर आएंगे और अब ऐसा लग रहा है कि अर्जेंटीना एक बार फिर एक जबरदस्त इकोनामिक क्रेश की तरफ जा रहा है।

    फास्टेस्ट ग्रोइंग इक्नॉमीज argentina-

    हालांकि सिर्फ 100 साल पहले अर्जेंटीना दुनिया की फास्टेस्ट ग्रोइंग इक्नॉमीज में से एक था। अर्जेंटीना में इस वक्त इन्फ्लेशन रेट ऑल टाइम हाई है। अर्जेंटीना करंसी लगातार अपनी वैल्यू खो रही है। आज की डेट में अर्जेंटीना की करेंसी अपनी 50% वैल्यू लॉस कर चुकी है। लोगों में फ्रस्ट्रेशन और बेचैनी बढ़ रही है और प्रोटेस्ट से बचने के लिए अर्जेंटीना गवर्नमेंट ने बहुत सी पॉलिसीज इंट्रोड्यूस करवा दी है और फिर ऐसा क्या हुआ है अर्जेंटीना के साथ जिसने उसे इतना कुछ होने के बावजूद एक वर्ल्ड सुपर पावर नहीं बनने दिया। इस वीडियो में हम सबके लिए और खास तौर पर इकोनॉमिक्स और पॉलीटिशियंस के लिए बहुत से लेसंस हैं कि एक कंट्री को किन-किन चीजों से बचना चाहिए।

    परफेक्ट ज्योग्राफी और नेचुरल रिसोर्सेस argentina-

    अर्जेंटीना की इकोनॉमी हर थोड़े समय बाद क्रैश क्यों कर जाती है। इतनी परफेक्ट ज्योग्राफी और नेचुरल रिसोर्सेस होने के बावजूद अर्जेंटीना को एक ग्लोबल पावर बनने से किस चीज से रोका हुआ है और फाइनली क्या अर्जेंटीना आने वाले इकोनामिक क्रैश से बच सकता है। Argentina की कहानी समझने के लिए हमें 100 साल पीछे जाना पड़ेगा। जब अर्जेंटीना अपने एग्रीकल्चर की वजह से पूरी दुनिया में मशहूर हो रहा था। 20th सेंचुरी के शुरू में दुनिया की आबादी बढ़ रही थी और जहां सब कंट्रीज फूड शॉर्टेज का शिकार थे। वहीं अर्जेंटीना इस कैंपस की फर्टाइल जमीन में भरपूर इरिगेशन करके पूरी दुनिया को फूड सप्लाई कर रहा था।

    Argentina का इंफ्रास्ट्रक्चर-

    यह इतना प्रॉफिटेबल काम था कि यूरोप के अमीर लोग अर्जेंटीना माइग्रेट करने लगे और अपने साथ ढेर सारा पैसा भी लेकर आए, ताकि उससे वह अर्जेंटीना का इंफ्रास्ट्रक्चर भी यूरोप जैसा बना सके। क्योंकि उन्हें यूरोप जैसी फैसेलिटीज अर्जेंटीना में भी चाहिए थी। Argentina का इंफ्रास्ट्रक्चर इकोनामी सब कुछ बूम कर रहा था, अर्जेंटीना के कैपिटल बोनस इरिस को साउथ अमेरिका का पेरिस कहा जाने लगा। उस वक्त अर्जेंटीना की एग्रीकल्चरल इंडस्ट्री में इन्वेस्ट करना ऐसा था जैसे आज क्रिप्टोकरेंसीज में इन्वेस्ट करना है।

    किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि हो क्या रहा है। क्योंकि बहुत से लोग अमीर हो रहे थे, तो हर कोई Argentina में पैसा लगाना चाहता था। 1920 तक अर्जेंटीना और अमेरिका दोनों की इकोनॉमी बराबर आ चुकी थी। अमेरिका की तरह अर्जेंटीना को भी लैंड ऑफ ऑपर्चूनईटीज कहा जा रहा था। मगर अमेरिका और अर्जेंटीना में एक बहुत बड़ा फर्क यह था कि जहां अमेरिका ने एग्रीकल्चरल जमीन मेरिट पर किसानों में बांटी जा रही थी। वही अर्जेंटीना में यह सारी जमीन पहले से ही चंद आमिर खानदानों को दे दी गई।

    पैसा चंद लोगों के हाथ में-

    इसका सबसे बड़ा नुकसान यह हुआ कि सारा पैसा चंद लोगों के हाथ में जा रहा था और क्योंकि उनका कोई कंपीटीटर नहीं था तो ना वह कोई इनोवेशन कर रहे थे और ना ही काम को एक्सपेंड कर रहे थे। यह वही टाइम था जब अमेरिका तेजी से इंडस्ट्रियलिज्म की तरफ जा रहा था। मगर दूसरी तरफ Argentina की यह फैमिलीज अपना इनफ्लुएंस करके गवर्नमेंट से ऐसी इकोनामिक पॉलिसीज अप्रूव करवा रही थी, जिसमें एग्रीकल्चरल एक्सपोर्ट को ज्यादा फायदा होता था और नतीजन बाकी सेक्टर नेगलेक्ट होते गए।

    इसी का नुकसान यह हुआ कि1929 में जब तक ग्रेट डिप्रैशन आया और ग्लोबल डिमांड गिर गई, तो अर्जेंटीना के पास कोई और सेक्टर था ही नहीं जिस पर वह रिले करता और नतीजन चंद महीने बाद अर्जेंटीना दुनिया की सबसे स्टेबल बड़ी और फास्टेस्ट ग्रोइंग इकोनामी से दुनिया की सबसे अनस्टेबल इकोनामी बन गया और तब से लेकर आज तक यह ऐसा स्विच है जिससे Argentina कभी बाहर नहीं निकल पाया और इसमें अर्जेंटीना की लीडरशिप का भी बहुत बड़ा हाथ है।

    जनरल हुआन डोमिंगो-

    अभी अर्जेंटीना की इकोनॉमी द ग्रेट डिप्रैशन से बाहर आ ही रही थी, कि 1940 में जनरल हुआन डोमिंगो ने एक मिलिट्री कू करके हुकूमत का तख्ता उलट दिया और खुद प्रेसिडेंट बन गए। प्रेसिडेंट हुआन के नजदीक Argentina की इकोनामिक कॉलेप्स की सबसे बड़ी वजह यह थी कि वह एक्सपोर्ट पर बहुत डिपेंडेंट था और उसकी सारी इकोनामी दूसरे कंट्रीज पर रिलाय करती थी। प्रेसिडेंट हुआन ने इसका सॉल्यूशन यह प्रपोज किया कि अर्जेंटीना को सेल्फ सफिशिएंट बनाने का सबसे बेहतरीन तरीका यह है कि अर्जेंटीना को बाहर की दुनिया से कट ऑफ किया जाए और सब सेक्टर स्टेट के कंट्रोल में लाया जाए। ऐसे टाइम पर जब सारी दुनिया ग्लोबलाइजेशन की तरफ जा रही थी, वहीं अर्जेंटीना बिल्कुल ऑपोजिट डायरेक्शन में गया।

    इंस्टीट्यूशंस को नेशनलाइज्ड-

    एक्सपोर्ट रिस्ट्रिक्शंस लगाए गए और सारे इंस्टीट्यूशंस को नेशनलाइज्ड कर दिया गया। इसका सबसे बड़ा नुकसान यह हुआ कि बड़े-बड़े बिजनेसमैन और एक्सपोर्टर्स अर्जेंटीना छोड़कर जाने लगे। 1955 में प्रेसिडेंट हुआन को भी एक और मिलिट्री कू के नतीजे में प्रेसीडेटशिप से उतार दिया गया। मगर उनकी इकोनामिक पॉलिसीज ऐसे ही चलती रही। अर्जेंटीना एक सोशलिस्ट कंट्री बन चुका था। जहां पर लोगों को हैवी सब्सिडीज और सैलरीज दी जा रही थी। मगर दूसरी तरफ नेशनलाइजेशन की वजह से गिनती की सिर्फ चंद इंडस्ट्रीज में जॉब ऑपच्यरुनिटीज थीं।

    बाकी प्राइवेट बिज़नेस ना होने के बराबर थे। क्योंकि सब इन्वेस्टर्स अर्जेंटीना छोड़कर दूसरी कंट्रीज में चले गए थे। अब जब इकोनॉमी पैसा जनरेट ही नहीं करेगी तो आप लोगों को बेनिफिट्स कहां से दोगे और क्योंकि अर्जेंटीना के लोग एक हाई सैलेरी और हाई स्टैंडर्ड ऑफ लिविंग के आदी हो चुके थे, तो गवर्नमेंट के पास वापसी का कोई ऑप्शन नहीं था।

    अर्जेंटीना की गवर्नमेंट-

    इसी कमी को पूरा करने के लिए अर्जेंटीना की गवर्नमेंट ने एक तो लोन लेने शुरू कर दिए और दूसरा ज्यादा से ज्यादा पैसा प्रिंट करना शुरू कर दिया। इसका सबसे बड़ा नुकसान यह हुआ कि अर्जेंटीना में जबरदस्त इन्फ्लेशन होना शुरू हो गया। जाहिर है जब आप आईएमएफ और वर्ल्ड बैंक जैसे इंस्टीट्यूशन से लोन लें, तो उनकी कुछ कंडीशंस होती है जैसे कि इतने समय में लोन की इंस्टॉलमेंट, इस इंटरेस्ट रेट पर वापस करते हैं, यह लोन वापस करने के लिए गवर्नमेंट के पास एक ऑप्शन तो यह होता है कि वह टैक्स लगाकर रेवेन्यू जेनरेट करें और दूसरी यह कि वह पैसा प्रिंट करें।

    इन दोनों का नुकसान यह होता है की चीजों की प्राइस बढ़ जाती है। पैसा जब ज्यादा प्रिंट होता है तो लोग खरिद ज्यादा करते हैं। जिसकी वजह से डिमांड बढ़ती है और जब डिमांड बढ़ती है तो प्राइस भी बढ़ जाती है। एक तरफ अर्जेंटीना इस लोन और मनी प्रिंटिंग वाले साइकिल में फसता जा रहा था और दूसरी तरफ पॉलीटिकल इंस्टेबिलिटी से भी हर कुछ साल बाद गवर्नमेंट चेंज हो रही थी। 1980 तक अर्जेंटीना में इकोनामिक सिचुएशन बेत्तर हो चुकी थी और इससे अटेंशन डाइवर्ट करने के लिए अर्जेंटीना की मिलिट्री डिक्टेटरशिप ने 1982 में फॉकलैंड आइलैंड पर अटैक कर दिया।

    ज्यादा पैसा प्रिंट करना शुरू-

    जिसमें उसे कोई खास कामयाबी नहीं हुई और उल्टा अर्जेंटीना बैंकरप्ट हो गया। इस डिफॉल्ट से डील करने के लिए अर्जेंटीना की गवर्नमेंट ने और ज्यादा पैसा प्रिंट करना शुरू कर दिया और नतीजा यह निकला कि इन्फ्लेशन इतनी ज्यादा बढ़ गई की डेली यूज़ की चीज भी लोगों की पहुंच से बाहर हो गई और अर्जेंटीना में प्रोटेस्ट शुरू हो गया। यह सारा सिलसिला 1990 में जाकर रुका, जब एक नई गवर्नमेंट ने अर्जेंटीना के पैसों का रेट डॉलर के साथ फिक्स कर दिया। इसका मतलब यह था कि अब अर्जेंटीना अपनी मर्जी से पैसा प्रिंट नहीं कर सकता।

    अब Argentina क्योंकि पिछले 30 सालों से अपने सारे खर्चे पैसा प्रिंट करके पूरा कर रहा था, तो यह एक बहुत बड़ा सेटबैक था और इससे निकलने का एक ही तरीका था और वह था फॉरेन लोन गवर्नमेंट ने आईएमएफ से फिर से हैवी लोन पकड़र इकोनामी चलाना शुरु की। फिर से वोटर को खुश करने के लिए अनअफोर्डेबल प्रोजेक्ट्स शुरु किए गए और इस सब का नतीजा यह होता था की शर्टटर्म में तो अर्जेंटीना तरक्की कर जाता था। मगर फिर हर 5 साल बाद जब लोन पेमेंट की बारी आती तो अर्जेंटीना की इकोनामी क्रैश कर जाती। बिल्कुल वैसे ही जैसे पिछले कुछ सालों से पाकिस्तान के साथ हो रहा है।

    आईएमएफ से लोन-

    हर पॉलीटिकल पार्टी वोटर को ख्वाब दिखाकर गवर्नमेंट में आती है, जब वह गवर्नमेंट में आती है तो देखती है कि उसके पास तो पैसा ही नहीं है, जिससे वह लोगों से किए गए वादे पूरे करें, तो फिर आईएमएफ से लोन पड़ता है ताकि उस लोन के पैसे से कुछ प्रोजेक्ट करके वोटर को खुश करें। हालांकि गवर्नमेंट नेचुरली और प्रोजेक्ट्स को अफोर्ड नहीं कर सकती होती। इसका नतीजा यह होता है कि 4 से 5 साल बाद जब नई गवर्नमेंट आती है, तो उसे पिछली गवर्नमेंट का दिया हुआ लोन तोहफे मैं मिलता है और फिर क्योंकि नई पार्टी ने अपने वोटर को खुश करना होता है।

    तो वह भी आईएंएफ से लोन लेती है और नतीजा वह कंट्री लगातार कर्ज के दलदल में फसता चला जाता है। पिछले 20 सालों में ऐसा ही कुछ अर्जेंटीना के साथ भी हुआ है। हर थोड़े अरसे बाद अर्जेंटीना में बूम आता है। मगर 3 से 5 साल बाद फिर इकोनामी क्रैश कर जाती है और अभी फिर ऐसा लग रहा है कि अर्जेंटीना एक बार फिर एक जबरदस्त इकोनामिक कॉलेप्स की तरफ बढ़ रहा है।

    रियलिस्टिक एक्सपेक्टेशन-

    इससे बचने के लिए सबसे पहले अर्जेंटीना को अपने एक्सपेंस कंट्रोल करने होंगे। लोगों की रियलिस्टिक एक्सपेक्टेशन सेट करनी होगी और आईएमएफ लोन्स को ना बोलना होगा इसके शॉर्ट टर्म में तो कंसीक्वेंसेस जरूर होंगे, शॉर्ट टर्म में लोगों को सैक्रिफाइसेस देना पड़ेगा, सैलरीज कम हो जाएगी, टैक्स बढ़ जाएंगे, बेनिफिट्स भी कम हो जाएंगे। मगर ऐवेंंचुअली लॉन्ग टर्म में अर्जेंटीना इस स्टेज से बाहर आ जाएगा। दूसरा अर्जेंटीना को ग्लोबल ट्रेड के लिए अपने आप को ओपन करना होगा। इतनी जबरदस्त टाइम पोजीशन होने के बावजूद अर्जेंटीना का ग्लोबल ट्रेड का शेयर बहुत ही कम है। इस ट्रेड को बढ़ाने के लिए अर्जेंटीना को अपना एग्रीकल्चर सेक्टर रिवोल्यूशन करना होगा। ताकि न्यू टेक्नोलॉजी अडॉप्ट की जा सके। वह जो दुनिया से कट ऑफ होने की पॉलिसी थी, उसे अब फाइनली खत्म करना होगा।

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    ग्लोबलाइजेशन की ऐज-

    बिकॉज इस ग्लोबलाइजेशन की ऐज में दूसरों से कनेक्ट हुए बगैर आप इनोवेशन नहीं कर सकते। तीसरी चीज़ है पॉलीटिकल स्टेबिलिटी। जब तक आप पॉलीटिकल स्टेबिलिटी गारंटी ना करें, तब तक उस कंट्री में कोई इंवेस्टमेंट नहीं आ सकती। जिस कंट्री के बारे में आपको कल का ना पता हो, आप वहां पैसा क्यों लगांएगें। अर्जेंटीना वाकई में एक गिफ्टेड कंट्री है, जो नेचुरल रिसोर्सेस कुदरत ने उसे दिए हैं। आज भी वह उसे दुनिया की एक सुपर पावर बना सकते हैं। अर्जेंटीना और अमेरिका एक बहुत बड़ी मिसाल है कि लॉन्ग टर्म प्लानिंग आपको कहां तक ले जाती है।

    अमेरिका के लीडर्स और सोच की वजह से आज वह दुनिया की नंबर वन इकोनामी है। दूसरी तरफ अर्जेंटीना ने गलती पर गलती की और किसी जमाने में अमेरिका के बराबर होने के बावजूद आज उससे बहुत पीछे रह गया है।

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