China Building Road in Kashmir
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China Building Road in Kashmir: हाल ही में सेटेलाइट से कुछ तस्वीरें सामने आए हैं, जिन्हें देखकर यह पता चल रहा है कि चीन दुनिया के सबसे उंचे युद्ध क्षेत्र के रूप में जानी जाने वाले सियाचिन ग्लेशियर के पास अवैध रूप से कब्जे वाले कश्मीर के एक क्षेत्र में कंक्रीट से सड़क का निर्माण कर रहा है। कश्मीर का एक हिस्सा जिसमें यह सड़क समघाटी में बनाए जा रही है, जो कि पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर का ही एक हिस्सा है। इसे 1963 में चीन को सौंप दिया गया था। यह सड़क चीन के झिंजियां क्षेत्र में राजमार्ग G319 की एक शाखा से निकलती है और भारत के सबसे ऊपरी उत्तरी भाग में लगभग 50 किलोमीटर उत्तर में पहाड़ों से गायब हो जाती है। इंदिरा कॉल बिंदु सियाचिन ग्लेशियर में है।

China Building Road in Kashmir-

यह क्षेत्र भारत के लिए रक्षा महत्व रखता है। जैसे कि मार्च के बाद से रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की दो बार यात्राओं से पता चलता है। भारतीय सेवा के फायर एंड फ्यूरी कोर्ट्स के पूर्व कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल राकेश शर्मा का दावा है कि सड़क का निर्माण पूरी तरह से अवैध है और भारत को चीन के सामने अपनी रणनीतिक आपत्ति व्यक्त करनी चाहिए। इस निर्माण की सबसे पहले खोज भारत तिब्बत सीमा के एक पर्यवेक्षक जिसे नेचर देसाई के नाम से भी जाना जाता है ने एक्स प्लेटफार्म पर की शेयर की थी। यह सड़क ट्रांस करोनकोरम ट्रैक में मौजूद है।

पाकिस्तान द्वारा जप्त (China Building Road in Kashmir)-

जिसे ऐतिहासिक रूप से कश्मीर का हिस्सा कहा जाता है और भारत इस पर दावा करता है। अनुच्छेद 370 के हटने के बावजूद भी केंद्र सरकार द्वारा प्रकाशित नवीनतम ऑफिशल मैप में अभी भी इस क्षेत्र को भारतीय क्षेत्र के रूप में दर्शाता है। लगभग 5300 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को कवर करने वाले इस रास्ते को 1947 के युद्ध के दौरान पाकिस्तान द्वारा जप्त कर लिया गया था। बाद में 1963 में उनके द्विपक्षीय सीमा समझौते के मुताबिक, चीन को वहां से हस्तांतरित कर दिया था।

क्षेत्रीय अखंडता का उल्लंघन-

एक समझौता जिसे भारत ने स्वीकार नहीं किया। भारतीय रक्षा विशेषज्ञ में लगातार तर्क दिए कि कब्जे वाले कश्मीर के इस हिस्से में यथा स्थिति में कोई भी बदलाव भारत की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का उल्लंघन है। ऐसी भी आशंकाएं जताई जा रही है कि प्रकृति की अतिरिक्त बुनियादी ढांचा परियोजना इस पहाड़ी क्षेत्र में मौजूद सुरक्षा स्थिति को खतरे में डाल सकती है। इस क्षेत्र में सैन्य सहयोग बढ़ाने की खबरों से भारत की चिंताएं और ज्यादा बढ़ चुकी हैं।

एक नई सड़क योजना-

साल 2021 में पाकिस्तान के गिलगित बाल्टिस्तान प्रांत के मुजफ्फराबाद को घाटी के साथ पाकिस्तान सीमा पर स्थित मुजफ्फराबाद को जोड़ने वाली एक नई सड़क योजना का नया वर्णन किया गया था। इस रिपोर्ट के मुताबिक, यह सड़क शिंजियांग में यारकंद से जुड़ी होगी, जैसे कि यह पता चलता है कि यह चीन के राष्ट्रीय राजमार्ग की G219 में शामिल होने के लिए घाटी को पार कर सकती है‌। लेफ्टिनेंट जनरल शर्मा समेत कई पर्यवेक्षक का अनुमान है कि घाटी में चीनी सड़के मुख्य रूप से गिलगित, बाल्टिस्तान में खनन किए गए खनिजों विशेष रूप से यूरेनियम के परिवहन के लिए हो सकती है।

LOC पर पाकिस्तान के साथ भारत का जुड़ाव-

फिर भी वह पाकिस्तान और चीन की सैन्य युद्ध अभ्यास के लिए इन सड़कों को संभावित इस्तेमाल के खिलाफ निरंतर सतर्कता बनाए रखना है। क्षेत्र पर दशकों से नियंत्रण रखने के बावजूद भी चीनी कब्जे से मेरे राजनीतिक व्यवस्था का अभाव है। चीन और पाकिस्तान के बीच साल 1963 में सीमा के अनुच्छेद 6 में यह कहा गया है कि क्षेत्र पर चीन का कंट्रोल अस्थाई और कश्मीर मुद्दे के समाधान पर निर्भर करेगा। निमंत्रण रेखा LOC पर पाकिस्तान के साथ भारत का जुड़ाव 1972 के शिमला समझौते द्वारा कंट्रोल किया जाएगा।

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अधिकारियों के साथ कोई समझौता नहीं-

हालांकि गांव घाटी की स्थिति के संबंध में चीनी अधिकारियों के साथ कोई समझौता नहीं हुआ है। साल 2017 से 18 के बीच में चीन में रणनीतिक कराकोरम दर्रे के पश्चिम में मौजूद निकली घाटी के पास एक पक्की सड़क का निर्माण किया गया। घाटी में चीनी सैन्य बुनियादी धातु की मजबूती के संबंध में भी रिपोर्ट सामने आई। जिसका कठित तौर पर भारतीय सैन्य अधिकारियों ने साल 2022 में सीमावर्ता के दौरान विरोध किया था‌। यह वार्ता 2020 में गलवान घाटी के घटक बाद हुई थी। इन घटनाओं के अलावा चीन द्वारा ऑफिशियल तौर पर इस पत्थर को अपने क्षेत्र के रूप में चित्रित करने के बाद भारत में पिछले साल विंग के साथ मजबूत राजनीतिक विरोध दर्ज कराया था। इसके अलावा साल 2015 में विदेश मंत्री डॉक्टर एस जयशंकर ने कहा था कि भारत ने चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारा में 46 अरब के निवेश किए हैं।

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