Black Hole in Sun: हमारे सूरज के अंदर एक ब्लैक होल छिपा हुआ है, जो इसे लगातार पावर दे रहा है और यह सुनने के बाद हम भी आपकी तरह चौक गए थे। जब हमने इस रिसर्च पेपर को पढ़ा जिसका नाम है Is There is black hole in the center of the sun. अगर आप इसे फाल्तु समझ रहे हैं तो आप जान लें कि हमारे सूरज के साथ एक बहुत बड़ी दिक्कत है। उसके आधार पर मैथमेटिकली कैलकुलेट की गई सोलर न्यूट्रिनोफ्लक्स यानी की सूरज से कितनी मात्रा में न्यूट्रॉन में पार्टिकल्स निकलने चाहिए। जिसकी तुलना में इसका ऑब्जर्व्ड सोलर न्यूट्रिएंट ऑफ फ्लक्स बहुत ही काम है, जो की इस प्रॉब्लम को बहुत ही इजीली सॉल्व कर सकता है।
जिंदा ब्लैक होल-
वह कैसे इससे पहले आईए जानते हैं, हॉकिंस स्टार्स यह ऐसे स्टार्स हैं जिनके बिल्कुल सेंटर में एक जिंदा ब्लैक होल होता है और वह ब्लैक होल उस स्टार को किसी भी प्रकार का नुकसान देता है, बल्कि यह उसे वह एनर्जी देता है जो उसे एक स्टार को न्यूक्लियर फ्यूजन की मदद से मिलता है। आईए अब न्यूक्लियर फ्यूजन के बारे में जानते हैं। ब्लैक होल का फॉर्मेशन इन न्यूक्लियर फ्यूजन के अंत के बाद ही होता है। लेकिन यह बात हजम नहीं हो रही है जो कि बड़े-बड़े स्टार्स को एक ही झटके में खाने की ताकत रखता है, वह एक स्टार को पावर कैसे देगा।
सूरज से 500 गुना ज्यादा बड़ा-
आसान शब्दों में समझने के लिए पहले ब्लैक होल्स को अच्छे से समझना होगा। जिसमें उन्होंने एक आईडिया प्रपोज किया। एक ऐसे स्टार के बारे में यह कैलकुलेट किया जो हमारे सूरज से 500 गुना ज्यादा बड़ा होगा। उसकी ग्रेविटी इतनी होगी कि उससे निकलने वाली लाइट उसके एटमोस्फेयर एस्केप नहीं कर पाएगी और उन्होंने उसे नाम दिया, Dark Star यह आईडा तो सही था लेकिन वह एक जगह पर गलती कर गए। दरअसल 1905 में आइंस्टीन ने अपने स्पेशल थ्योरी ऑफ़ रिलेटिविटी में बताया कि लाइट की स्पीड दो वैक्यूम में बिल्कुल कांस्टेंट होती है। इसलिए हम लाइट की स्पीड के जरिए किसी भी स्टार के साइज को मेजर नहीं कर सकते है। तो यहां पर मिसेल का एक स्टार के साइज को मेज़र करने का द स्पीड ऑफ़ लाइट कमिंग फ्रॉम आईटी पे फेल हो गया।
स्टैंडर्ड जनरल थ्योरी ऑफ़ रिलेटिविटी-
लेकिन उनके इस आइडिया ने एक क्वेश्चन जरूर खड़ा कर दिया। वह जरूर इनविजिबल होगा, क्योंकि लाइट उसे बाहर निकल ही नहीं पाएगी। अट्रैक्शन फोर्स उसे कैसे अपनी ओर अट्रैक्ट कर सकते हैं, अल्बर्ट आइन्सटाइन ने अपने 1915 स्टैंडर्ड जनरल थ्योरी ऑफ़ रिलेटिविटी में बताया असल में ग्रेविटी की कोई फोर्स है ही नहीं। आइन्सटाइन के मुताबिक ग्रेविटि स्पेस टाइम फैबरिक का एक कर्वेचर है जिसमें जाने के बाद कोई भी चीज उस बैंड के कारण मुड़ जाता है इवन लाइट भी।
इसलिए हमें किसी भी मैसिव ऑब्जेक्ट के पीछे लाइट डिस्टोर्टेड रुप में दिखाई देती है अब यहां तक हमें यह तो पता चल गया था कि ग्रेविटेशनल कर्व के कारण एजुकेशनल र्वक के कारण बैंड हो सकती है और अगर कोई पॉइंट इतना ज्यादा मैसिव हो कि उसका स्पेस टाइम कर्वेचर इंफाइनाइट हो जाए तो लाइट उसको स्केप नही कर सकती। Twenteeth Century की शुरुआत में ऐसे ऑब्जेक्ट्स को नाम दिया गया ग्रेविटेशनल कॉलेप्स ऑब्जेक्ट्स।
इंडिया के मोस्ट फेमस एंड मोस्ट फेक स्टोरी-
लेकिन ब्लैक हॉल को इसका असल नाम मिला था, इंडिया के मोस्ट फेमस एंड मोस्ट फेक स्टोरी के कारण जिसे ब्रिटिसर्श नें फैलाया था। इस कहानी के बारे में हम आगे जानेंगे। अब ब्लैक हॉल की डिस्कवरी के बाद इसे तीन डिफरेंट टाइप्स में कैटिगरीज किया गया। नंबर 1 स्टेलर मास ब्लैक होल, नंबर दो इंटरमीडिएट ब्लैक होल एंड नंबर 3 सुपर मैसिव मास डिफरेंट को स्क्रीन पर आप देख सकते हो लेकिन इस युनिवर्स में सुपर मास ब्लैक हॉल और सुपरमैसिव ब्लैक होल्स की तरह जाएगेंटिक नहीं हुआ करती हैं। बल्कि यूनिवर्स में एक फोर्थ टाइप का ब्लैक सबसे ज्यादा मात्रा में और इसका साइज किसी एटम से लेकर किसी बास्केटबॉल के साइज का होता है। इसे प्राइमोडियल ब्लैक हॉल नाम दिया गया।
प्राइमोडियल ब्लैक हॉल को फेमस नहीं-
स्टीफन हॉकिंग ने ही प्राइमोडियल ब्लैक हॉल को फेमस नहीं किया था बल्कि दो और ऐसे साइंटिस्ट थे जिन्होंने प्राइमोडियल ब्लैक होल के बारे में अपनी थ्योरी में बताया था। 1967 में ज़ेल्डोवीक और नोबिकोव ने इन ब्लाक होल्स को यूनिवर्स के शुरुआत में बने इन ब्लैक होल्स डार्क मैटर का इंर्पोटेंट कॉम्पोनेंट होने की थ्योरी रखी। नॉर्मल ब्लैक होल्स हमारे यूनिवर्स में मेच्योर स्टार्स के डेथ के बाद सिमुल्टेनियसली को अलग तरीके से जाना है। उसके अकॉर्डिंग ब्लैक होल्स का फार्मेशन मौजूद है। उनका फार्मेशन बिग बैंक की शुरुआती पहले सेकंड में हो गया। जिसके बाद यह ब्लैक होल यूनिवर्स के एक्सपेंशन के साथ दूर होते रहे। जिसे कॉसमोलोजि के टर्म में इन्फ्लेशन कहा जात है। जब यूनिवर्स का यह रैपिड एक्सीलरेटेड इन्फेक्शन रुका तो स्पेस और टाइम से इतनी एनर्जी अचानक रिलीज होने से वाइब्रेटिड रिजन शॉक्ड हो गए और यही रीजन बना स्मॉल पॉकेट बनने का।
प्राइम मॉडल ब्लैक होल्स-
फार्मेशन डेंसिटी और साइज को पार करने की वजह से बना और इन ब्लैक होल्स का मास टेंड टू द पावर माइनस 5 ग्राम रेट 100000 गुना ज्यादा भी हो सकता है। प्राइम मॉडल ब्लैक होल्स के यूनिवर्स में वेरियस साइज में मिलने की वजह से उसे एक पैरासाइटिक ब्लैक होल को जानने के बाद अब हम उस सवाल के जवाब को जानते हैं। जिसको आज के समय में हर वह इंसान जानना चाहता है कि क्या सच में हमारे सूरज के अंदर ब्लैक होने कि बात रीसेंट टाइम में सामने आई हो लेकिन इस हाइपोथेटिकल थ्योरी का इतिहास नया नहीं है। सबसे पहले 1970s मे स्टार्य के होने की बात की गई थी। नेशनल 1917 में एक पेपर पब्लिश किया था। ग्रेविटेशनल लेफ्ट ऑब्जेक्ट्स का वेरी लो मास।
बॉटम लाइन एंड फोर्थ पेज में मेंशन-
इस रिसर्च पेपर के थर्ड पेज के बॉटम लाइन एंड फोर्थ पेज में मेंशन किया कि मोस्ट ऑफ़ द मास्स ऑफ़ द यूनिवर्स वेयर इन द फॉर्म ऑफ़ लो मास चार्ज कॉलेप्स ऑब्जेक्ट्स, द सन कोल्ड हैव एक्वायर्ड मास ऑफ़ 10 टू द पावर 17 ग्राम और दिस वाउल्ड हैव डिफ्यूज टू द सेंटर एंड वाउल्ड हैव प्रोबेबली टू फॉर्म ए सिंगल ब्लैक होल का रेडियस 10 टू द पावर माइनस 11 लिखा है। बट आईटी माइट पॉसिबलियली हैव एनी इफेक्ट दे स्मॉल सेंट्रल रीजन इन व्हिच ऑफ़ द एनर्जी इस जेनरेटेड एंड गुड एस वाय द फ्लक्स का न्यूट्रॉनस फ्रॉम द सन इस नॉट वर्कवास प्रिडिक्ट डिवोशनल। स्टीफन हॉकिंग पहले साइंटिस्ट थे जिन्होंने ऐसे स्टारस को होने का फंक्शन दुनिया के सामने रखा था और इसी वजह से ऐसे स्टार्स जो अपने कोर्ट में ब्लैक होल को समय रखते हैं।
सूरज के एनर्जी लेवल-
1970 में साइंटिस्ट ने यह पता लगाया था कि हमारा सूरज उतने पार्टिकल्स को जनरेट नहीं कर रहा है जितना उसे फ्यूजन रिएक्शन के थ्रू प्रोड्यूस करना चाहिए। जबकि सूरज के एनर्जी लेवल में कोई भी डिफरेंस नहीं है। सूरज की एनर्जी और न्यूट्रिनो के बीच का यह डिफरेंट वैज्ञानिकों को समझ नहीं आ रहा था। अब आपकी जानकारी बता दें की न्यूट्रिनॉट्स बाय प्रोडक्ट होते हैं फ्यूजन रिएक्शन का जिसकी वजह से कोई स्टार लाइट को एडमिट करता है। लेकिन सवाल यह था न कि एक्स्ट्रा एनर्जी सूरज के अंदर प्रोड्यूस हो रही थी। उसका एनर्जी सोर्स आखिर क्या है। पहले इसका एक हाइपोथेटिकल थ्योरी के अकॉर्डिंग हो सकता है कि हमारा सूरज स्टार के मैटर को कंज्यूम कर रहा हो और वही एक्स्ट्रा एनर्जी प्रोड्यूस करता हो।
न्यूट्रिनो को डिटेक्ट करने वाला डिटेक्टर-
लेकिन इस आईडिया को नकार दिया गया। जब न्यूट्रिनो ओस्किलेशन के बारे में वैज्ञानिकों ने पता लगाया। इसके अकॉर्डिंग नोटिज़ंस काफी तेजी से अपने करैक्टेरिस्टिक्स चेंज करते रहते हैं। जिसकी वजह से न्यूट्रिनो को डिटेक्ट करने वाला डिटेक्टर उन अननोन न्यूट्रॉनस को डिटेक्ट नहीं कर पाता। जिसके बाद हॉकिंग के ब्लैक होल को इनसाइड काट दिया गया और हॉकिंग स्टार एक मैच के अलावा और कुछ नहीं रहा. लेकिन हाल ही में वैज्ञानिकों ने प्राइस मॉडल ब्लैक होल को एक नए तरीके से देखना शुरू किया है कि हमारे यूनिवर्स में जितने भी अननोन मासेस हैं, जो कि लगभग पूरे यूनिवर्स का 30% है और जिसे हमने सो कॉल्ड डार्क मैटर का नाम दे रखा है।
स्टार के कोड में मौजूद-
उसके फॉर्मेशन में मॉडल ब्लैक होल्स का हर पोषण है। उसको हम देख तो नहीं सकते। लेकिन उसके ग्रेविटेशनल फोर्स को डिटेक्ट कर सकते हैं, जो की विजिबल मैटर्स पर होता है। कि किसी स्टार के कोड में मौजूद होना, एक हाइपोथेटिकल सीनरियों से ज्यादा कुछ भी नहीं है। जिसे दिया तो हॉकिंस ने था लेकिन उन्होंने कभी भी उसे डार्क मैटर के एक्जिस्टेंस से रिलेट करके नहीं देखा था। जैसा की बेलिंगर और नेट कप्लान ने अपने रिसर्च पेपर में किया है। प्रैक्टिकल नॉलेज की बात करें तो अब तक हम ऐसे ब्लैक होल का पता भी नहीं लगा पाए हैं, जो किसी प्लैनेट पर या फिर किसी मून के मांस के साइज का प्लान हो और ना हम वेलिंगटन डार्क मैटर पर काम कर रहे हैं।
यूनिवर्स में प्राइम मॉडल ब्लैक होल्स-
उसी को बेहतर तरीके से समझने के लिए उन्होंने सोचा कि हो सकता है कि यूनिवर्स में प्राइम मॉडल ब्लैक होल्स डार्क मैटर को समझ सके, जो हॉकिंग में मौजूद हो सकते हैं। कैबिनेट पेपर में पब्लिश शब्दों को प्रूफ करने के लिए और सबूत चाहिए और इस बात को मैक कैप्लन भी कई सोशल मीडिया साइट्स पर बोल चुका हैं। अगर हमें यूनिवर्स में मौजूद इन शुरुआती प्राइमोडियल के बारे में समझना है तो डिस्टेंस प्लेन कैबिनेट पेपर में पब्लिश दावों को प्रूफ करने के लिए और सबूत चाहिए और इस बात को मीडिया प्लेटफॉर्म पर भूल चुके हैं।
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फ्यूचर डिस्कवरीज में मैंने आपको बताया था कि ब्लैक होल जो नाम है, यह नाम इंडिया में 20 जून, जब आज का कोलकाता ब्रिटिशर्स के कब्जे में उस समय बंगाल के नवाब सिराजुल द्वारा अपने सैनिकों के साथ फोर्ट विलियम पर हमला कर दिया य़ा। तब अंग्रेजी सैनिकों ने आत्म समर्पण कर दिया था तब उन्होंने किसी भी तरह का नुकसान नहीं पहुंचाया गया था।
अंग्रेजी सैनिक और सिराजुद्दौला के सैनिक-
लेकिन रात होते ही अंग्रेजी सैनिक और सिराजुद्दौला के सैनिकों के बीच मुठभेड़ शुरू होने लगी और सिर्फ उसे रोकने के लिए अंग्रेजी सैनिकों को उस रात उस स्कूल के तहखाना में बनेकल यूजफुल कोठी में डाल दिया गया। उस काल कोठरी में केवल दो से तीन लोग रह सकते थे। वहां पर 170 कैदियों को डाल दिया गया। अब जून की गर्मी के कारण उस छोटी सी कोठरी में अंग्रेजों की दम गुटकर मौत हो गई और अगले दिन जब उस काल कोठरी के दरवाजे खोले गए तो अंदर से केवल 30 लोग जिंदा वापस आए। इस इंसिडेंट को नाम दिया गया था।
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ब्लैक होल कोलकाता-
ब्लैक होल कोलकाता, इस इंसिडेंट से प्रभावित होकर एक साइंस राइटर मार्कशीट ने लिखा कि ब्लैक सिस्टम में जा सकते हैं पर जिंदा वापस नहीं आ सकते। कई इतिहासकार मानते हैं कि यह कहानी बिल्कुल झूठी है और अंग्रेजों ने खुद ने को एक कारण मिल सके। इसलिए कोलकाता पर हमला करने का प्लान बनाया और एक्सीडेंट के तुरंत बाद यह किया। जिसे हम इतिहास में द् बैचल ऑफ़ प्लासी के नाम से जानते हैं। आपको काफी डिटेल में समझ में आ गया होगा तो इस वीडियो को लाइक कर देना और जाने से पहले वाकई में यह पॉसिबल है कमेंट में बताएं।