Indian Army: भारतीय सेना ने मंगलवार को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को एक पुराना अखबार दिखाकर करारा जवाब दिया है। सेना ने 1971 का एक अखबारी कतरन साझा करके यह याद दिलाया है, कि अमेरिका दशकों से पाकिस्तान का समर्थन करता आया है। यह पोस्ट उस दिन के बाद आई है, जब ट्रंप ने भारत को धमकी दी थी, कि वह रूसी तेल खरीदने के कारण भारतीय सामान पर काफी ज्यादा शुल्क लगाएंगे।
पूर्वी कमान की तरफ से साझा किया गया यह अखबारी कतरन 5 अगस्त 1971 का है। इसमें दिखाया गया है, कि कैसे अमेरिका 1971 के युद्ध की तैयारी के दौरान दशकों से पाकिस्तान को हथियार की आपूर्ति कर रहा था। सेना ने इस पोस्ट को कैप्शन दिया “इस दिन, उस साल युद्ध की तैयारी – 5 अगस्त 1971।”
1971 में कैसे अमेरिका ने पाकिस्तान की मदद की थी-
उस समय के अखबारी रिपोर्ट के अनुसार, तत्कालीन रक्षा उत्पादन मंत्री वीसी शुक्ला ने राज्यसभा में बताया था, कि नाटो देशों और सोवियत संघ से बांग्लादेश में पाकिस्तान की सशस्त्र आक्रामकता के मद्देनजर हथियारों की आपूर्ति के बारे में संपर्क किया गया था। जबकि सोवियत संघ और फ्रांसीसी सरकार ने पाकिस्तान को हथियार देने से इनकार कर दिया था, अमेरिका ने अपना समर्थन जारी रखा था। रिपोर्ट में यह भी कहा गया था, कि अमेरिका और चीन दोनों ने पाकिस्तान को बेहद सस्ती दरों पर हथियार बेचे थे। इसका मतलब यह था, कि पाकिस्तान ने 1971 का युद्ध भारत के खिलाफ उन हथियारों से लड़ा था, जो इन दो देशों ने उसे दिए थे।
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"This Day That Year" Build Up of War – 05 Aug 1971 #KnowFacts.
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— EasternCommand_IA (@easterncomd) August 5, 2025
दिलचस्प बात यह है, कि अमेरिका आज भी पाकिस्तान के साथ नरमी बरत रहा है। ट्रंप ने हाल ही में अमेरिकी कारोबार के पक्ष में वैश्विक व्यापार को नया आकार देने के लिए दर्जनों देशों पर भारी शुल्क लगाने का आदेश दिया है। लेकिन उन्होंने पाकिस्तान पर शुल्क घटाकर 19 प्रतिशत कर दिया है, जो पहले 29 प्रतिशत था।
ट्रंप की धमकी और भारत का जवाब-
भारत को रूसी तेल खरीदने के लिए ट्रंप लगातार बढ़ते शुल्क की धमकी दे रहे हैं, जबकि अमेरिका खुद रूस के साथ व्यापार जारी रखे हुए है। सोमवार को रिपब्लिकन नेता ने फिर से भारत को धमकी दी और कहा, कि वह भारतीय सामान पर काफी ज्यादा शुल्क लगाएंगे, जो पहले से लगे 25 प्रतिशत शुल्क से भी ज्यादा होगा।
ट्रंप ने ट्रुथ सोशल पर लिखा था, कि भारत न केवल बड़ी मात्रा में रूसी तेल खरीद रहा है, बल्कि उसे खुले बाजार में मोटे मुनाफे पर बेच भी रहा है। उनका कहना था, कि भारत को इस बात की परवाह नहीं है, कि यूक्रेन में कितने लोग रूसी युद्ध मशीन की वजह से मारे जा रहे हैं। लेकिन भारत ने ट्रंप को करारा जवाब दिया और उन्हें याद दिलाया, कि जब यूक्रेन संघर्ष के बाद भारत ने रूस से आयात शुरू किया था, तो अमेरिका ने खुद इस तरह के आयात को प्रोत्साहित किया था। विदेश मंत्रालय ने यूरोपीय संघ के रुख का भी जवाब दिया, जो भारतीय रिफाइनरियों को कच्चे तेल के निर्यात के लिए अकेले निशाना बना रहा था।
भारत ने दिए ठोस तथ्य-
विदेश मंत्रालय के अनुसार, जबकि भारत का आयात वैश्विक बाजार की स्थिति की मजबूरी है, उसकी आलोचना करने वाले देश खुद रूस के साथ व्यापार में लगे हुए हैं। जबकि उनके लिए यह व्यापार कोई जरूरी मजबूरी भी नहीं है। मंत्रालय ने उन देशों के रूस के साथ व्यापारिक समझौतों की सूची भी दी। मंत्रालय के आधिकारिक बयान के अनुसार, यूरोपीय संघ का 2024 में रूस के साथ सामान में 67.5 अरब यूरो का द्विपक्षीय व्यापार था।
इसके अलावा 2023 में सेवाओं में लगभग 17.2 अरब यूरो का व्यापार था। यह भारत के रूस के साथ कुल व्यापार से काफी ज्यादा है। 2024 में यूरोप के एलएनजी आयात ने 16.5 मिलियन टन का रिकॉर्ड बनाया, जो 2022 के 15.21 मिलियन टन के पिछले रिकॉर्ड से भी ज्यादा था।
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इतिहास की सीख-
भारतीय सेना का यह कदम बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह दिखाता है, कि भारत अपने इतिहास को भूला नहीं है। 1971 में जब भारत बांग्लादेश की आजादी के लिए लड़ रहा था, तब अमेरिका ने पाकिस्तान का साथ दिया था। आज जब भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए एक व्यावहारिक नीति अपना रहा है, तो अमेरिका उसे धमकी दे रहा है। यह घटना यह भी दिखाती है, कि अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में दोहरे मापदंड कैसे काम करते हैं। जो देश खुद रूस के साथ अरबों का व्यापार कर रहे हैं, वे भारत को उसकी ऊर्जा सुरक्षा के लिए लेक्चर दे रहे हैं। भारत ने साफ कर दिया है, कि वह अपने राष्ट्रीय हितों के अनुसार फैसले लेगा और किसी के दबाव में नहीं आएगा।
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