Karnataka Murder Case
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    Karnataka Murder Case: कभी-कभी सच इतना डरावना होता है, कि उस पर यकीन करना मुश्किल हो जाता है। कर्नाटक के दावणगेरे जिले में भी कुछ ऐसा ही हुआ, जब 19 साल की उषा ने अपनी मां पर पिता की हत्या का आरोप लगाया। कई सालों तक किसी को इस बात का अंदाजा नहीं था, कि एक शांत घर के अंदर कितना बड़ा अपराध छुपा हुआ है।

    बेटी की जिद और पुलिस की नाकामी-

    द् इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, अगस्त 2015 में उषा ने दावणगेरे के होनाल्ली पुलिस स्टेशन में जाकर एक चौंकाने वाला दावा किया। उसने कहा, कि उसकी मां गंगम्मा ने उसके पिता लक्ष्मण की हत्या कर दी है और शव को घर में ही छुपा दिया है। शुरुआत में पुलिस अधिकारियों ने इस बात को सिरे से नकार दिया। उस समय के इंस्पेक्टर महेश्वर गौड़ा एस यू ने बताया, “यह बात सच लगती ही नहीं थी। लेकिन उषा के बार-बार आने से हमें इस मामले को गंभीरता से देखना पड़ा।”

    उषा का छोटा भाई, जो उस समय 9 साल का था और बोर्डिंग स्कूल में पढ़ता था, वह भी अपने पिता की गैरमौजूदगी को लेकर सवाल पूछने लगा। धीरे-धीरे गांव वालों ने भी उषा का साथ दिया और गहरी जांच की मांग की। पुलिस को आखिरकार इस मामले को आगे बढ़ाना पड़ा।

    पूजा घर से निकला डरावना सच-

    12 अगस्त 2015 को पुलिस ने बेंगलुरु से करीब 330 किमी दूर नेलाहोने गांव में उषा के घर की तलाशी ली। फॉरेंसिक टीम और स्थानीय अधिकारियों के साथ पहुंची। उषा ने सीधे घर के पूजा घर की तरफ इशारा किया। पुलिस को जो कुछ मिला, वह कहीं ज्यादा भयानक था उनकी कल्पना से भी।

    इंस्पेक्टर गौड़ा ने अपना अनुभव साझा करते हुए कहा, “मैं हैरान रह गया। भले ही कोई शव दफनाया गया हो, लेकिन कौन इसे पूजा घर में दफनाने के बारे में सोचेगा, जहां भगवान की मूर्तियां रखी जाती हैं।” जांचकर्ताओं ने देखा, कि कमरे में हाल ही में कुछ रेनोवेशन का काम हुआ था। जब उन्होंने खुदाई शुरू की तो सिर्फ 2-3 फीट नीचे ही हड्डियों का ढांचा मिल गया। उषा का दावा बिल्कुल सच था। बोन मैरो टेस्ट से पुष्टि हो गई, कि ये अवशेष लक्ष्मण के ही थे। इसके बाद गंगम्मा को गिरफ्तार कर लिया गया और एक महीने बाद उसके प्रेमी 54 वर्षीय जगदीश को भी पकड़ा गया।

    15 साल की उम्र में देखा था पिता का खून-

    उषा ने बाद में वह डरावनी कहानी बताई, जिसे उसने 15 साल की उम्र में 2010 में अपनी आंखों से देखा था। उसके माता-पिता के बीच अक्सर झगड़े होते थे और उसकी मां का गांव के ही जगदीश के साथ अफेयर चल रहा था। जब इस बात की अफवाहें फैलने लगीं तो घर में तनाव बढ़ गया।

    एक दिन लक्ष्मण घर लौटा और गंगम्मा से भयानक झगड़ा हुआ, जिस दौरान जगदीश भी मौजूद था। उषा के कोर्ट स्टेटमेंट के अनुसार, जब लक्ष्मण ने गंगम्मा को मारा तो जगदीश ने उसे लात मारी और दोनों ने मिलकर उसे तकिए से दबाकर मार डाला। यह सब कुछ उषा की आंखों के सामने हुआ था। दोनों अपराधियों को डर था, कि अगर वह शव को बाहर ले जाकर फेंकेंगे, तो पकड़े जाएंगे।

    इसलिए अगली शाम उन्होंने लक्ष्मण के शव को पूजा घर के फर्श के नीचे दफना दिया, उस पर cement डालकर जगह को बराबर कर दिया और फिर से धार्मिक मूर्तियां रख दीं, जैसे कुछ हुआ ही न हो। उषा को धमकी देकर चुप कराया गया। उसकी मां ने पड़ोसियों से कहा, कि लक्ष्मण तमिलनाडु-केरल बॉर्डर के पास किसी प्लांटेशन में काम करने गया है। समय के साथ लोगों ने पूछना भी बंद कर दिया।

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    न्याय मिला, लेकिन कीमत भारी पड़ी-

    उषा की बहादुरी और 34 गवाहों की गवाही के साथ-साथ DNA रिपोर्ट सहित लगभग 40 सबूतों की बदौलत कोर्ट ने गंगम्मा और जगदीश को दोषी पाया। 14 जुलाई इस साल दावणगेरे की पहली अतिरिक्त जिला एवं सत्र अदालत ने दोनों को उम्रकैद की सजा सुनाई। बचाव पक्ष ने जगदीश की उम्र और स्वास्थ्य समस्याओं और गंगम्मा की अपने पोते की जिम्मेदारी का हवाला देते हुए नरमी की गुहार लगाई। लेकिन जज एम एच अन्नयनावर ने कहा, “शवों को जलाया या दफनाया जाता है, लेकिन आरोपियों ने इसे पूजा घर में दफनाया। अगर आप इसे देखें तो वे कुछ भी करने से नहीं हिचकते।”

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    दुखद बात यह है, कि उषा 2020 में एक आग में अपनी जान गंवा बैठी, इससे पहले कि वह न्याय होते देख पाती। एक पुलिस अधिकारी ने टिप्पणी की, “फैसले का दिन पुलिस अधिकारियों के लिए भी भावनात्मक क्षण था। उषा को वहां होना चाहिए था, क्योंकि उसने न्याय के लिए इतना लंबा इंतजार किया था। उसका भाई अब गांव में अकेला रहता है।”