Harvard University
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    Harvard University: अमेरिका में पढ़ने वाले हजारों भारतीय छात्रों के लिए एक बुरी खबर आई है। ट्रंप सरकार ने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी को विदेशी छात्रों का दाखिला लेने से रोक दिया है। इस फैसले से सबसे ज्यादा नुकसान भारतीय विद्यार्थियों का होगा, जिनकी संख्या हार्वर्ड में लगभग 800 के करीब है।

    अमेरिकी होमलैंड सिक्योरिटी विभाग ने हार्वर्ड के विदेशी छात्र कार्यक्रम की मंजूरी तुरंत रद्द कर दी है। इसका मतलब यह है कि जो विद्यार्थी पहले से हार्वर्ड में पढ़ रहे हैं, उन्हें या तो किसी दूसरी यूनिवर्सिटी में जाना होगा या फिर अमेरिका में अपना कानूनी दर्जा खोने का खतरा है।

    Harvard University भारतीय विद्यार्थियों पर सबसे बड़ा असर-

    हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की आधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक, हर साल लगभग 500 से 800 भारतीय शोधकर्ता और छात्र यहाँ दाखिला लेते हैं। फिलहाल 788 भारतीय विद्यार्थी हार्वर्ड में अपनी पढ़ाई कर रहे हैं। कुल मिलाकर हार्वर्ड में लगभग 6,800 विदेशी छात्र हैं जो कुल विद्यार्थियों का 27 प्रतिशत हिस्सा बनाते हैं। इनमें से अधिकतर स्नातकोत्तर विद्यार्थी हैं।

    यह निर्णय उन हजारों छात्रों और उनके परिवारों के लिए एक बड़ा धक्का है जिन्होंने अपने सपनों को पूरा करने के लिए अमेरिका का रुख किया था। बहुत से माता-पिता ने अपनी जमा-पूंजी लगाकर बच्चों को हार्वर्ड जैसी प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी में भेजा था।

    Harvard University क्या होगा इस साल स्नातक होने वाले छात्रों का?

    अच्छी खबर यह है कि जो विद्यार्थी इस सेमेस्टर में अपनी डिग्री पूरी कर रहे हैं, वे स्नातक हो सकेंगे। होमलैंड सिक्योरिटी सचिव क्रिस्टी नोएम के पत्र के अनुसार, यह रद्दीकरण सिर्फ 2025-2026 शैक्षणिक वर्ष से लागू होगा। इसका मतलब है कि हार्वर्ड के 2025 बैच के छात्र, जो अगले हफ्ते स्नातक होने वाले हैं, उन्हें अपनी डिग्री मिल जाएगी।

    लेकिन अभी भी जिन विदेशी छात्रों की पढ़ाई कुछ बाकी है, कानूनी तौर पर उन्हें अमेरिका में रहने के लिए किसी दूसरी संस्था में जाना पड़ेगा। यह प्रक्रिया काफी तनावपूर्ण और मुश्किल हो सकती है।

    नए दाखिला लेने वाले छात्रों की समस्या-

    सबसे बड़ी परेशानी उन विद्यार्थियों की है जो शरद 2025 में हार्वर्ड में दाखिला लेने वाले थे। अभी के हिसाब से, वे हार्वर्ड में दाखिला नहीं ले सकेंगे, जब तक कि सरकार अपना फैसला वापस न ले या कोई अदालत इसमें हस्तक्षेप न करे।

    सचिव नोएम ने हार्वर्ड को 72 घंटे की अंतिम चेतावनी दी है। अगर हार्वर्ड कुछ खास मांगों को पूरा करता है, तो उसकी विदेशी छात्रों को दाखिला देने की क्षमता वापस हो सकती है। इन मांगों में कैंपस पर विरोध प्रदर्शन की ऑडियो और वीडियो रिकॉर्डिंग जमा करना शामिल है, जिसे हार्वर्ड ने पहले देने से मना कर दिया था।

    हार्वर्ड और ट्रंप सरकार के बीच तनाव-

    यह विवाद अप्रैल में शुरू हुआ था जब हार्वर्ड ने सरकार के निर्देशों को मानने से इनकार कर दिया था। सरकार चाहती थी कि फिलिस्तीन समर्थक प्रदर्शनों को रोका जाए और विविधता, समानता और समावेश की नीतियों को बंद कर दिया जाए।

    होमलैंड सिक्योरिटी सचिव क्रिस्टी नोएम ने हार्वर्ड पर “हिंसा, यहूदी विरोध को बढ़ावा देने और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के साथ तालमेल” का आरोप लगाया है। इसके जवाब में, संघीय एजेंसियों जैसे होमलैंड सिक्योरिटी विभाग और राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान ने यूनिवर्सिटी अनुदान भी बंद कर दिए हैं। हार्वर्ड ने इसके विरोध में सरकार के खिलाफ मुकदमा भी दायर किया है ताकि फंडिंग वापस मिल सके और पाबंदियाँ हटाई जा सकें।

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    छात्रों और परिवारों के लिए अगले कदम-

    इस मुश्किल स्थिति में प्रभावित छात्रों को कानूनी और शैक्षणिक सलाह की जरूरत होगी। बहुत से विद्यार्थी और उनके माता-पिता अभी उलझन में हैं कि आगे क्या करना चाहिए। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी ने भी गुरुवार को एक बयान में कहा है कि वे प्रभावित छात्रों को उचित मार्गदर्शन देने की कोशिश कर रहे हैं।

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