Voyager One
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    दूसरे सौर मंडल में पहुंचा Voyager One, स्पेस क्राफ्ट ने वहां क्या देखा, जानें यहां

    Last Updated: 17 सितम्बर 2024

    Author: sumit

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    Voyager One: आज से 40 साल पहले 1977 में स्पेस एजेंसी नासा ने दो ऐसे अंतरिक्ष यान धरती से रवाना किए थे, जिनका उद्देश्य ब्रह्मांड में मौजूद ग्रहों और उसके उपग्रहों कि बाहरी सीमाओं पर या उससे भी आगे की जानकारी हासिल करना है। अंतरिक्ष यान पृथ्वी से भी कुछ ऐसा ले जा रहा था, जिससे यदि इस यान का कोई एलियंस जैसे दूसरी दुनिया से सामना हो जाए, तो वह उन्हें हमारी पृथ्वी पर पाई जाने वाली मानव जाति के बारे में संदेश दे सके। जी हां इसके साथ एक ऐसा ग्रामोफोन जिससे तांबे की गोल्ड प्लेटेड डिस जोड़ी गई थी, जिसमें रोते हुए बच्चे की आवाज रिकॉर्ड की गई, पक्षियों हवाओं लहरों की आवाज़, तरह-तरह के संगीत, तस्वीर और 55 अलग-अलग भाषाओं में शुभकामनाएं रिकॉर्ड करके भेजी गई थी। कुल मिलाकर इसमें वह हर संभव वस्तु रखी गई, जो किसी को धरती और वहां रहने वाले प्राणियों की जानकारी दे सके।

    मंगल ग्रह पर कॉलोनी बसाने की दिशा में काम-

    दोस्तों हम इंसानों ने चांद पर कदम रख लिया है, स्पेस स्टेशन बना लिया है। मंगल ग्रह पर कॉलोनी बसाने की दिशा में काम कर रहे हैं। यहां तक की सूरज, जिसका टेंपरेचर 1.5 करोड़ डिग्री सेल्सियस है और उसके करीब भी सोलर प्रूफ नाम का एक स्पेसक्राफ्ट भेज चुके हैं। ऐसे में कहा जा सकता है कि हमने स्पेस को काफी कंट्रोल कर लिया है और उसके बारे में बहुत सारी जानकारी हासिल कर चुके हैं। लेकिन यह बिल्कुल गलत है, क्योंकि आपको जानकर हैरानी होगी, कि इतने सालों में दुनिया भर की स्पेस एजेंसीज की लाखों शोधों के बावजूद भी हमने ब्रह्मांड का सिर्फ 4% हिस्सा ही एक्सप्लोर किया है।

    आए दिन नए-नए स्पेस मिशन लॉन्च-

    हालांकि इसके रहस्य से पर्दा उठाने के लिए हम आए दिन नए-नए स्पेस मिशन लॉन्च करते रहते हैं और उन्हीं मिशन में से एक था वॉयज़र प्रोब जिसे 1977 में नासा ने लांच किया था। इस मिशन में दो स्पेसक्राफ्ट अंतरिक्ष की गहराइयों में भेजे गए थे। जिसमें से एक था वॉयज़र वन और दूसरा वॉयज़र टू। दोस्तों इन स्पेसक्राफ्ट ने हमसे अरबों दूर मौजूद दुनिया की ऐसी-ऐसी तस्वीरें भेजीं, जिसने साइंटिस्ट की नींद उड़ा दी। लेकिन सवाल यह है कि आखिर वॉयज़र ने ब्रह्मांड में ऐसा क्या देखा, यह प्रोग्राम कब तक चलता रहेगा और यह कब तक हमें दुनिया से जुड़ी इनफॉरमेशन को शेयर करता रहेगा।

    ब्रह्मांड के कुछ रहस्य-

    आईए वॉयज़र की नज़र से एक अलग दुनिया देखते हैं और जानते हैं ब्रह्मांड के कुछ रहस्य के बारे में, तो साथियों आज से 46 साल पहले नासा एक ऐसे स्पेसक्राफ्ट को अंतरिक्ष की अंधेरी दुनिया में भेजा, जिसका मकसद था हमसे करोड़ किलोमीटर दूर मौजूद शनि और जुपिटर ग्रह के बारे में जानकारी इकट्ठा करना। साथ ही इसका काम उनके चंद्रमा के बारे में भी जानकारी इकट्ठा करके पृथ्वी पर सेंड करना था। इन सब लक्ष्यों को अपने साथ लेकर वॉयज़र स्पेसक्राफ्ट अपनी मंजिल की तरफ तेजी से बढ़ रहा था और हर गुजरते वक्त के साथ ऐसी ऐसी तस्वीर भेज रहा था। जिसमें ब्रह्मांड का एक ऐसा रूप सामने आया, जिसकी हम इंसानों ने कभी कल्पना भी नहीं की थी।

    दूसरी दुनिया के राज़ से पर्दा-

    वॉयज़र स्पेसक्राफ्ट ना सिर्फ दूसरी दुनिया के राज़ से पर्दा उठाने के लिए आगे बढ़ रहा था, बल्कि अपने साथ पृथ्वी से भी कुछ ऐसा ले जा रहा था, जिससे एलियंस को हमारे बारे में संदेश मिल सके। यह अपने साथ एक ऐसा ग्रामोफोन लेकर जा रहा है, जिसमें पक्षी हवाओं लहरों और अलग-अलग तरह के संगीत को रिकॉर्ड किया गया। इसके अलावा इसमें कई तरह की वीडियो भी डाली गई थी। आपको बता दें कि स्पेसक्राफ्ट में अपना कॉन्ट्रिब्यूशन देने के वाले साइंटिस्ट काल सागन के बेटे निक सागन की आवाज भी इस ग्रामोफोन में डाली गई थी। जिसमें वह इंग्लिश लैंग्वेज में एलियन का अभिवादन कर रहे हैं।

    वॉयज़र बहुत ही ज्यादा फास्ट-

    इसके अलावा हमें नहीं पता की इंग्लिश हिंदी या दुनिया की ऐसी कौन सी भाषा है, जिसे एलियन समझते हैं। इसलिए इसमें नासा ने 55 अलग-अलग लैंग्वेज में भी शुभकामनाएं रिकॉर्ड की थी। इस ग्रामोफोन को हाई क्वालिटी के तांबे से बनाया गया है और इसकी खासियत है कि यह एक अरब साल तक इसमें रिकॉर्ड सभी चीज सही सलामत रखेगा। आपको बता दें कि वॉयज़र वन को वॉयज़र टू से 15 दिन बाद लांच किया गया था और अगर रफ्तार की बात की जाए, तो यह वॉयज़र बहुत ही ज्यादा फास्ट था। यही रीजन है कि यह स्पेसक्राफ्ट एस्टेरॉइड बेल्ट के एरिया को बाद में लॉन्च होने के बावजूद भी वॉयज़र टू से पहले ही पार कर गया था। करीब 2 साल की लंबी यात्रा करने के बाद यह स्पेसक्राफ्ट 5 मार्च 1979 को जुपिटर प्लेनेट यानी बृहस्पति ग्रह के करीब पहुंच गया और वहां से जुपिटर और उसके चांद की हाई रेजोल्यूशन तस्वीर खींच के धरती पर भेजने लगा।

    जुपिटर के मून ईयो की तस्वीर-

    इस स्पेसक्राफ्ट ने जुपिटर के चुंबकीय चित्र के बारे में जानकारी सेंड की। अपने सफ़र के दौरान इस स्पेसक्राफ्ट ने जुपिटर के मून ईयो की तस्वीर भी भेजी। जिसने सबको हैरान कर दिया। इस स्पेसक्राफ्ट ने ईयो पर वोल्कानो होने की पुष्टि की। जिससे साफ होता है कि जिस तरह से हमारी पृथ्वी पर ज्वालामुखी फटते हैं। वैसे ही इस चंद्रमा के ऊपर भी विस्फोट होते रहते हैं, वॉयज़र जब जुपिटर के करीब से गुज़र रहा था, तो उसने लगभग 19000 तस्वीरें क्लिक की और पृथ्वी पर भेजी। जिससे वहां से जुड़ी कई नई-नई चीजों के बारे में पता चला। जुपिटर को पार करते करते हुए वॉयज़र शनि ग्रह की तरफ चल दिया। काफी लंबी यात्रा के बाद आखिरकार 12 नवंबर 1980 को यह शनि ग्रह के करीब पहुंच गया था। अगर हम इसके और शनि के बीच के सबसे कम दूरी की बात करें, तो वह 1,23,000 किलोमीटर के करीब थी।

    एक बहुत बड़ी मिस्ट्री-

    अब सभी के लिए शनि ग्रह के आसपास घूमती हुई रिंग एक बहुत बड़ी मिस्ट्री बनी हुई थी। जिसके बारे में वॉयज़र वन ने कई जानकारियां सेंड की। इतना ही नहीं इसने एक और नए रिंग की खोज की, जिसके बारे में हमारे वैज्ञानिक कुछ भी नहीं जानते थे। यहां पर रहते हुए उसने शनि ग्रह के कई चंद्रमाओं की खोज की। इनमें से एक था सैटर्न का मून टाइटन। जब वॉयज़र वन ने टाइटन की तस्वीर पृथ्वी पर भेजी, तो इसने सबको हैरान कर दिया। इस स्पेसक्राफ्ट ने सूचना दी, कि मून टाइटन पर जिस तरह के एटमॉस्फेयर और वातावरण हैं। वैसा वातावरण इंसानों की उत्पत्ति से पहले पृथ्वी का हुआ करता था।

    वॉयज़र वन स्पेसक्राफ्ट-

    ऐसे में अगर वहां पर भी पृथ्वी के साथ जो प्राकृतिक घटनाएं हुई, अगर वैसा ही होता है तो काफी संभावना है कि उसे जगह पर जीवन पनप सकता है। अब सेटर्न प्लेनेट को गुड बाय करने के बाद वॉयज़र वन स्पेसक्राफ्ट बहुत दूर अंतरिक्ष की गहराइयों में चल दिया और जाते-जाते उसने पृथ्वी की ओर मुड़कर 14 फरवरी 1990 को पृथ्वी की एक आखरी तस्वीर ली, जिसे पेले प्लू डॉट के नाम से जाना जाता है। इस तस्वीर को 6 अरब किलोमीटर की दूरी से लिया गया था। इसे क्लिक करने के बाद वॉयज़र वन ने अपना कैमरा बंद कर दिया और मानो अलविदा कहते हुए किसी गहरे अंधेरे में नई दुनिया की तलाश में निकल पड़ा।

    इंटरेस्टेलर स्पेस में एंटर-

    अगस्त 2012 में वॉयज़र वन हमारे सौरमंडल की बाउंड्री जिसे एनोस्फिया कहा जाता है. उसे पार करके इंटरस्टेलर स्पेस में प्रवेश कर गया और इस तरह यह पहला स्पेसक्राफ्ट बना, जो हमारे सौरमंडल से बाहर निकलकर इंटरस्टेलर स्पेस में दाखिल हुआ। वहीं इसके पहले लॉन्च किए गए वॉयज़र टू को इस जगह पहुंचाने में और 6 साल का समय लग गए और यह नवंबर 2018 में इंटरेस्टेलर स्पेस में एंटर हुआ था। नासा के वैज्ञानिकों के अकॉर्डिंग वॉयज़र वन और टू का लाइव्स प्लान सिर्फ 10 साल का था। लेकिन लक्कीली चार टकेट्स गुजरने के बाद भी आज तक वह सही काम कर रहे हैं।

    सारा डाटा पृथ्वी पर सेंड-

    इंटरस्टेलर स्पेस में जाने के बाद इन्होंने काफी सारा डाटा पृथ्वी पर सेंड किया। इसमें से बहुत डरावनी प्रतीत होने वाली आवाज थी। इसने और भी कई सारे सांउंड्स रिकॉर्ड करके भेजे। जिसे ध्यान से सुनने पर हम्म जैसी आवाज सुनाई देती है। लेकिन आपको बता दें कि अब धीरे-धीरे इन स्पेसक्राफ्ट के काम करने की ताकत कमजोर होती जा रही है और यह हमसे इतनी ज्यादा दूरी पर हैं, कि उनके भेजे गए इनफॉरमेशन को पृथ्वी पर रिसीव करने में बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

    जगह-जगह सैटेलाइट डिश-

    हालांकि नासा ने इन सिग्नल्स को जल्दी और आसानी से कैच करने के लिए पूरी दुनिया में जगह-जगह सैटेलाइट डिश लगा रखी है। पृथ्वी से इन स्पेसक्राफ्ट को संपर्क करने के लिए, यहां से लगभग 20 किलो वाट का सिग्नल भेजा जाता है। जिसे वोयाजर तक पहुंचने में 20 घंटे से भी ज्यादा का समय लग जाता है। इसके बाद यान का एन्टिना सिग्नल को कैच करके, वहां से 20 किलो वाट का सिग्नल पृथ्वी पर सेंड करता है, जो यहां तक पहुंचते पहुंचते बहुत ही वीक हो जाता हा ऐसे में यह जब तक पृथ्वी पर आता है, तो उसे डिटेक्ट करना एक बहुत ही चुनौती भरा टास्क बन चुका होता है।

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    खराब हो चुके टूल्स बंद-

    जो वैज्ञानिक इस मिशन से जुड़े हुए हैं, उनका कहना है कि इस समय एक ऐसी जगह पर मौजूद है जहां पर सर्द मौसम और अंधेरे के सिवा कुछ भी नहीं है। ऐसे में उसके खराब हो चुके टूल्स को बंद किया जा चुका है और इस सर्द जगह पर बिजली बचा कर, उसे गर्म रखने की मदद की जा रही है। फिलहाल यह यान पृथ्वी से 159.756 एस्टॉनोमिकल दूरी पर है। आपको बता दें कि एक एस्टॉनॉमिकल यूनिट में लगभग 15 करोड़ किलोमीटर होते हैं, इसी से आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि यह यान हमसे कितनी ज्यादा दूरी पर मौजूद है और यह दूरी हर एक सेकंड के साथ बढ़ती जा रही है।

    संपर्क करने में ज्यादा समय-

    ऐसे में यह कहना मुश्किल है कि हम कब तक इस स्पेसक्राफ्ट से संपर्क बनाकर रख सकते हैं। क्योंकि उसमें लगी बैटरी भी अपने जीवन की आखिरी मोड़ पर है। वैज्ञानिकों का मानना है कि जैसे-जैसे स्पेसक्राफ्ट हमसे दूर होता जा रहा है, हमें उससे संपर्क करने में उतना ही ज्यादा समय लग रहा है और हो सकता है कि 2025 तक इसकी बैटरी भी पावर सप्लाई करने लायक ना बचे। ऐसे में इसके उपकरण बंद हो सकते हैं और हमारा इन स्पेसक्राफ्ट से संपर्क टूट सकता है, तो जब ऐसा होगा, तब हमें लगेगी, कि मानो स्पेस की अंधेरी दुनिया में हमने अपने साथी को खो दिया। आज के लिए बस इतना ही वीडियो अच्छी लगी तो वीडियो को लाइक और चैनल सब्सक्राइब भी जरूर करें। मिलते हैं जल्दी ऐसी एक और वीडियो में तब तक के लिए बाय।

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