How to Stop Overthinking: आज के डिजिटल और तेज़ दौर में हमारी जिंदगी इतनी तेज़ी से चल रही है कि हमारा दिमाग भी लगातार दौड़ता रहता है। हर छोटी बात पर सोच-विचार करना, “क्या होगा अगर…” की बातें मन में बार-बार गूंजना, यानी ओवरथिंकिंग (अधिक सोच) हमारे दिमाग का एक आम हिस्सा बन गया है। ऐसा लगता है जैसे हम समस्याओं का हल निकाल रहे हों, लेकिन असल में हम एक मानसिक दलदल में फंस जाते हैं, जहां से निकलना मुश्किल हो जाता है।
ओवरथिंकिंग की समस्या न सिर्फ हमारे मानसिक स्वास्थ्य पर असर डालती है, बल्कि यह हमें सक्रिय होने से भी रोकती है। मन में घुमते विचार कभी-कभी चिंता, डर, और असमंजस की जाल में फंसा देते हैं। लेकिन, अगर हम देखें तो आधुनिक साइकोलॉजी और प्राचीन भारतीय ज्ञान – खासकर भगवद गीता – के पास ऐसे समाधान हैं जो हमारे मन को स्थिरता और स्पष्टता दे सकते हैं।
How to Stop Overthinking मस्तिष्क क्यों करता है अधिक सोच?
साइकोलॉजिस्ट बताते हैं कि ओवरथिंकिंग के पीछे अक्सर चिंता, अनिश्चितता का डर, परफेक्शन की चाहत, असफलता का भय, या आत्म-सम्मान की कमी होती है। हमारा दिमाग हर परिस्थिति को नियंत्रित करने की कोशिश करता है, लेकिन इसी प्रयास में यह बार-बार “क्या होगा अगर…” के सवाल उठाता रहता है। यह बार-बार सोचने का चक्र, जिसे रुमिनेशन (रिपीटिव नेगेटिव थिंकिंग) कहा जाता है, न केवल चिंता और डिप्रेशन को बढ़ाता है, बल्कि हमारे समस्या सुलझाने की क्षमता को भी कमजोर कर देता है।
डॉ. सुसान नोलन-होकेस्मा के अनुसार, जितना अधिक हम सोचेंगे, उतना कम हम सक्रिय होंगे। यानी, अधिक सोचने से हम फंसे हुए महसूस करते हैं और कुछ करने से डरते हैं।
How to Stop Overthinking भगवद गीता क्या कहती है मानसिक उलझनों के बारे में?
भगवद गीता में अर्जुन का मन एकदम उलझा हुआ और घबराया हुआ है, जैसे हमारा मन होता है जब हम अधिक सोचते हैं। श्रीकृष्ण अर्जुन को समझाते हैं कि हमें अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए, लेकिन परिणाम की चिंता नहीं करनी चाहिए। गीता का प्रसिद्ध श्लोक है, “कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन” (गीता 2.47)। इसका मतलब है कि अपना काम पूरी लगन से करो, पर फल की चिंता छोड़ दो। यही मानसिक उलझनों से बाहर निकलने की चाबी है।
गीता हमें सिखाती है कि मन को अपने अहंकार और आसक्ति से दूर रखकर वर्तमान क्षण में रहना चाहिए। यह ध्यान और मानसिक अनुशासन आधुनिक मनोवैज्ञानिक तरीकों जैसे माइंडफुलनेस और कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी से भी मेल खाता है।
How to Stop Overthinking मस्तिष्क को शांत करने के आसान उपाय-
सबसे पहले, जब कोई नकारात्मक या घबराने वाला विचार आए, तो उसे पहचानो और अलग कर दो। उदाहरण के लिए, “मैं फेल हो जाऊंगा” की जगह कहो, “यह मेरा दिमाग डर महसूस कर रहा है”। इससे हम विचारों को खुद से अलग कर पाते हैं, जो गीता के दृष्टिकोण से “स्वयं से दूर होना” है।
इसके बाद, सोच के चक्र को तोड़ने के लिए कोई छोटा काम करो। चाहे वह टहलना हो, कोई लिस्ट बनाना हो या एक साधारण काम पूरा करना हो। गीता कहती है कि कर्म करना जरूरी है, चाहे परिणाम जैसा भी हो। सक्रियता मन को जमीन पर लाती है।
धीमी और गहरी सांस लेना भी बहुत प्रभावी होता है। 4-7-8 तकनीक में चार सेकंड सांस लेना, सात सेकंड रोकना और आठ सेकंड धीरे-धीरे छोड़ना होता है। गीता में भी प्राण को नियंत्रित करने के महत्व की बात कही गई है, जिससे मन को शांति मिलती है।
जर्नलिंग-
अपनी भावनाओं और डर को समझने के लिए जर्नलिंग (लेखन) करें। जो भी डर या चिंता हो, उसे लिखें और उसकी तार्किकता पर विचार करें। यह प्रक्रिया गीता में स्वयं के ज्ञान और आत्मचिंतन के महत्व से जुड़ी है।
फिर, परिणाम को लेकर अपने नजरिये को बदलें। असफलता को खतरे की बजाय एक सीख और बढ़ने का अवसर समझें। “क्या होगा अगर मैं सफल हो जाऊं?” जैसे सकारात्मक सवाल पूछें। गीता में बिना आसक्ति के कार्य करने की बात इसी दृष्टिकोण को दर्शाती है।
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अंत में, हर दिन कुछ समय के लिए मोबाइल और स्क्रीन से दूर रहें। चुप बैठें, सांस लें, प्रकृति को देखें। गीता में कहा गया है कि योगी इन्द्रियों को अपने आप से पीछे कर लेता है, यानी बाहरी उत्तेजनाओं से खुद को दूर करता है। आज के समय में यह डिजिटल डिटॉक्स की तरह है।
अपने मन के रथ को संभालें-
गीता में श्रीकृष्ण मन को घोड़ों के समान बताते हैं और आत्मा को रथी। जब तक हम अपने मन को नियंत्रित नहीं करेंगे, ये घोड़े हमें कहीं भी ले जा सकते हैं। ओवरथिंकिंग कोई दोष नहीं है, बल्कि हमारा दिमाग अपनी सुरक्षा के लिए ऐसा करता है। लेकिन हमें इसे समझदारी से नियंत्रित करना होगा।
आज जब आपका मन अधिक सोचने लगे, याद रखें कि सोचना बंद करने की जरूरत नहीं, बल्कि अपने विचारों को पहचानने और उन्हें आपके ऊपर हावी होने से रोकने की जरूरत है। साइकोलॉजी और भगवद गीता दोनों की ये सीख आपके मानसिक शांति के लिए अमूल्य हैं।
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