Pakistan Eid Ban: पाकिस्तान में धार्मिक अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव का एक और केस सामने आया है। लाहौर हाई कोर्ट बार एसोसिएशन (LHCBA) ने पंजाब पुलिस चीफ से कहा है, कि अहमदिया समुदाय को ईद-उल-अजहा (बकरीद) के टाइम इस्लामिक प्रैक्टिसेज करने से रोक दें। यह घटना एक बार फिर पाकिस्तान में रिलीजियस माइनॉरिटीज की स्थिति पर गंभीर सवाल खड़े करती है।
LHCBA की लेटर के अनुसार, ईद-उल-अजहा मुसलमानों के लिए एक पवित्र त्योहार है और इसकी रस्में जैसे नमाज और कुर्बानी केवल मुसलमानों के लिए हैं। लेटर में दावा किया गया है कि अहमदी एक गैर-मुस्लिम ग्रुप हैं और उन्हें लीगली या रिलीजियसली इस्लामिक सिंबल्स का यूज करने या इस्लामिक कस्टम्स फॉलो करने की परमिशन नहीं है।
Pakistan Eid Ban अहमदिया समुदाय पर बढ़ते अटैक्स और हैरासमेंट-
ईद-उल-अजहा (6-10 जून) से पहले अहमदियों को बढ़ती थ्रेट्स, हैरासमेंट और डेडली अटैक्स का सामना करना पड़ा। DAWN की रिपोर्ट के अनुसार, अप्रैल के बाद से कम से कम तीन अहमदियों को किल कर दिया गया है। यह आंकड़ा शो करता है कि पाकिस्तान में धार्मिक अल्पसंख्यकों की कंडीशन कितनी गंभीर है।
🚨 #Pakistan Bans #EidAlAdha for Ahmadis!#Ahmadiyya were forced to sign affidavits:
❌No Eid prayers
❌No QurbaniPunishment? FIRs, arrests & ₹5 lakh#Caste system exists in #Islam too, why no one talking about it?#StopAhmadiHateInPakistan Eid Mubarak #عيد_الأضحى_المبارك pic.twitter.com/fgMOCJzU7o
— Your Views Your News (@urviewsurnews) June 6, 2025
कई एरियाज में अथॉरिटीज ने अहमदियों को लीगल पेपर्स पर साइन करने के लिए फोर्स किया, जिसमें वे प्रॉमिस करते हैं कि वे ईद की नमाज नहीं पढ़ेंगे या जानवरों की कुर्बानी नहीं करेंगे। अगर वे इन टर्म्स को ब्रेक करते हैं, तो उन्हें 5 लाख पाकिस्तानी रुपए (लगभग ₹1.5 लाख) तक का फाइन हो सकता है या लीगल ट्रबल का फेस करना पड़ सकता है।
Pakistan Eid Ban कंस्टिट्यूशनल और लीगल विवाद की पूरी स्टोरी-
LHCBA के अकॉर्डिंग, अहमदिया समुदाय अभी भी खुद को मुसलमान के रूप में प्रेजेंट कर रहा है, जो इल्लीगल है। लेटर में क्लेम किया गया है, कि अहमदी ओपनली ईद के लिए इवेंट्स ऑर्गनाइज कर रहे हैं, जो इस्लामिक ट्रेडिशन्स के सिमिलर दिखते हैं। LHCBA इसे पाकिस्तान के कंस्टिट्यूशन, पीनल कोड और पिछले सुप्रीम कोर्ट के रूलिंग्स का वायलेशन बताता है।
पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में अहमदिया समुदाय के मेंबर्स से एफिडेविट्स पर साइन करने को कहा गया है, जिसमें वे प्रॉमिस करते हैं कि वे बकरीद नहीं मनाएंगे या रिलेटेड रिचुअल्स नहीं करेंगे। यह 2023 के एक ऑर्डर का फॉलो है जो उन लॉज को एन्फोर्स करता है जो अहमदियों को मुसलमान के रूप में आइडेंटिफाई करने या इस्लामिक ट्रेडिशन्स का प्रैक्टिस करने से बैन करते हैं।
ह्यूमन राइट्स ऑर्गनाइजेशन्स की कंडेमनेशन-
ह्यूमन राइट्स ग्रुप्स ने इस मूव को अनफेयर और धार्मिक स्वतंत्रता के अगेंस्ट बताया है। एमनेस्टी इंटरनेशनल ने पाकिस्तानी अथॉरिटीज से अहमदिया समुदाय के साथ अनफेयर ट्रीटमेंट को स्टॉप करने की डिमांड की है। ऑर्गनाइजेशन ने उन्हें अहमदियों के धर्म का फ्रीली फॉलो करने के राइट की प्रोटेक्शन करने का डायरेक्शन दिया है।
एमनेस्टी ने पांच डिस्ट्रिक्ट्स के डॉक्यूमेंट्स की रिव्यू की और लाहौर, कराची और रावलपिंडी जैसे सिटीज में पुलिस ऑर्डर्स पाए जो अहमदियों के अगेंस्ट एक्शन की डिमांड करते हैं। यहां तक कि सियालकोट में भी अथॉरिटीज ने उन्हें ईद 2025 मनाने से रोकने के लिए डिटेंशन ऑर्डर्स जारी किए।
एमनेस्टी इंटरनेशनल के साउथ एशिया के डेप्युटी रीजनल डायरेक्टर इसाबेल लैसी ने ईद 2025 से पहले “अहमदियों के अगेंस्ट टारगेटेड वायलेंस और हैरासमेंट” के बारे में कंसर्न एक्सप्रेस किया। उन्होंने कहा कि न केवल लोकल अथॉरिटीज और एन्फोर्समेंट एजेंसीज अहमदियों की प्रोटेक्शन करने में फेल हो रहे हैं, बल्कि वे खुद एक्टिवली उनकी बिलीफ और रिलिजन की फ्रीडम के राइट्स को रिस्ट्रिक्ट कर रहे हैं।
अहमदिया समुदाय की रिलीजियस आइडेंटिटी का सवाल-
अहमदी खुद को मुसलमान कंसिडर करते हैं और फाइव पिलर्स और सिक्स आर्टिकल्स ऑफ फेथ जैसी कोर इस्लामिक बिलीफ्स का फॉलो करते हैं। वे मानते हैं कि मिर्जा गुलाम अहमद प्रॉमिस्ड मसीहा और एक प्रॉफेट थे, जबकि अभी भी प्रॉफेट मुहम्मद का रिस्पेक्ट करते हैं। हालांकि, कई मेनस्ट्रीम मुस्लिम्स इससे डिसएग्री करते हैं, यह कहते हुए कि यह बिलीफ इस आइडिया के अगेंस्ट जाता है कि मुहम्मद फाइनल प्रॉफेट थे।
अहमदियों को हज या उमरा परफॉर्म करने की परमिशन नहीं है और उन्हें सऊदी अरब में एंटर करने से बैन किया गया है। यह सिचुएशन दिखाती है कि रिलीजियस इंटरप्रिटेशन के मामले में कैसे एक कम्युनिटी को मार्जिनलाइज किया जा सकता है।
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इंटरनेशनल कम्युनिटी का रिएक्शन और फ्यूचर इंपैक्ट
यह इंसिडेंट एक बार फिर याद दिलाता है कि रिलीजियस फ्रीडम एक फंडामेंटल ह्यूमन राइट है और किसी भी कम्युनिटी को अपनी रिलीजियस बिलीफ्स के कारण पर्सिक्यूशन का फेस नहीं करना चाहिए। पाकिस्तान में अहमदिया समुदाय की सिचुएशन इंटरनेशनल कम्युनिटी के लिए कंसर्न का सब्जेक्ट बनी हुई है।
इस केस से पता चलता है, कि पाकिस्तान में माइनॉरिटी राइट्स की प्रोटेक्शन कितनी जरूरी है। गवर्नमेंट को चाहिए कि वो सभी सिटिजन्स के रिलीजियस राइट्स की गारंटी दे, चाहे वे किसी भी फेथ या सेक्ट से बिलॉन्ग करते हों। डेमोक्रेसी में सभी को इक्वल राइट्स मिलने चाहिए।
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