Nepal Social Media Ban
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    Nepal News: नेपाल इस समय गहरे राजनीतिक संकट से गुजर रहा है। प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को भ्रष्टाचार विरोधी प्रदर्शनों के कारण अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा है। यह स्थिति तब और गंभीर हो गई जब सरकार ने सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगाया और प्रदर्शन हिंसक हो गए। इन दंगों में कम से कम 19 लोगों की मौत हो गई है, जिनमें से अधिकतर छात्र थे। यह आंदोलन जल्दी ही पुराने राजनीतिक अभिजात वर्ग के खिलाफ एक व्यापक आंदोलन में बदल गया।

    2008 में राजशाही के खत्म होने के बाद से यह नेपाल के नवजात लोकतंत्र का सबसे बड़ा संकट है। इस अशांति ने राजनीतिक कुलीन वर्ग और देश के बेचैन युवाओं के बीच गहरी दरार को उजागर कर दिया है। अगले कुछ हफ्ते यह तय करेंगे, कि नेपाल के नेता प्रदर्शनकारियों से बातचीत कर सकते हैं, संवैधानिक बदलाव का प्रबंधन कर सकते हैं, या और अधिक अस्थिरता की तरफ बढ़ सकते हैं।

    प्रदर्शनों की शुरुआत कैसे हुई?

    भ्रष्टाचार विरोधी प्रदर्शनों में सोमवार को तेजी आई, जब सरकार ने Facebook, X और YouTube सहित दो दर्जन से अधिक सोशल मीडिया साइटों को बंद कर दिया। सरकार का आरोप था, कि ये कंपनियां रजिस्टर करने और सरकारी निगरानी के तहत आने से इनकार कर रही थीं। जो कुछ सेंसरशिप के खिलाफ गुस्से के रूप में शुरू हुआ था, वह एक बहुत व्यापक आंदोलन में बदल गया।

    अक्सर Gen Z कहे जाने वाले कई युवाओं ने भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद और युवाओं में बढ़ती बेरोजगारी के कारण निराशा व्यक्त की। हजारों लोग रोजाना नौकरी की तलाश में विदेश जा रहे हैं। मंगलवार तक प्रदर्शन हिंसक हो गए, प्रदर्शनकारियों ने संसद, राष्ट्रपति भवन और प्रधानमंत्री कार्यालय पर धावा बोला, सरकारी और मीडिया भवनों को आग लगाई और राजनेताओं पर हमला किया। विदेश मंत्री अर्जू राणा देउबा और उनके पति, पूर्व प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा पर भीड़ ने हमला किया।

    अभी क्या हो रहा है?

    फिलहाल काठमांडू में सेना का नियंत्रण है। सैनिकों ने काठमांडू पर कब्जा कर लिया है, कर्फ्यू लगाया है और जेल से भागने की कोशिश करने वालों को रोकने के लिए चेतावनी की गोलीबारी की है। सुरक्षा बलों ने व्यवस्था बहाली के लिए संघर्ष करते हुए 27 से अधिक संदिग्ध लुटेरों को गिरफ्तार किया है।

    राष्ट्रपति राम चंद्र पौडेल ने ओली का इस्तीफा स्वीकार कर लिया है और उन्हें तब तक कार्यवाहक सरकार का नेतृत्व करने को कहा है, जब तक कोई उत्तराधिकारी नियुक्त नहीं हो जाता। लेकिन ओली का ठिकाना और स्थिति स्पष्ट नहीं है और प्रदर्शन शुरू होने के बाद से वह सार्वजनिक रूप में नजर नहीं आए हैं।

    सेना ने प्रदर्शनकारियों से एक बातचीत टीम बनाने को कहा है, लेकिन आंदोलन के नेतृत्वविहीन होने के कारण यह स्पष्ट नहीं है, कि भीड़ का प्रतिनिधित्व कौन करता है।

    आगे क्या होगा?

    नेपाल के 2015 के संविधान में इस स्थिति के लिए स्पष्ट प्रक्रिया है, जब सत्तारूढ़ सरकार गिर जाती है। राष्ट्रपति को संसद में बहुमत वाली पार्टी को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करना होगा। यदि किसी पार्टी के पास बहुमत नहीं है, तो कोई भी सदस्य जो बहुमत हासिल कर सकता है, उसे नियुक्त किया जा सकता है, लेकिन उसे 30 दिनों के भीतर विश्वास मत के जरिए इसे साबित करना होगा। यदि सभी कोशिशें असफल हो जाती हैं, तो संसद को भंग किया जा सकता है और नए चुनाव कराए जा सकते हैं।

    चुनौती यह है, कि कई स्थापित पार्टी नेता प्रदर्शनकारियों की नजर में बदनाम हो चुके हैं, कुछ पर हमले भी हुए हैं या वे छुप रहे हैं। इससे यह संदेह पैदा होता है, कि संवैधानिक रास्ते को स्वीकार किया जाएगा या नहीं।

    अंतरिम सरकार की संभावना-

    संविधान में इसका उल्लेख नहीं है, लेकिन नेपाल को एक अस्थायी, व्यापक आधार वाले प्रशासन की जरूरत हो सकती है, जो प्रदर्शनकारियों के लिए स्वीकार्य हो। संवैधानिक विशेषज्ञ बिपिन अधिकारी ने Reuters को बताया, “ऐसी सरकार उस बदलाव के एजेंडे को आगे बढ़ा सकती है, जो Gen Z चाहता है और छह महीने के भीतर नई संसद के लिए चुनाव भी करा सकती है।”

    युवाओं का समर्थन किसे मिल सकता है?

    जैसे-जैसे प्रदर्शन जारी हैं, दो प्रमुख व्यक्तित्व सामने आए हैं। बालेंद्र शाह, 35 वर्षीय काठमांडू के मेयर और rapper हैं, जो भ्रष्टाचार विरोधी छवि और युवा-अनुकूल दृष्टिकोण के लिए प्रशंसित हैं। दूसरे हैं रबी लामिछाने, एक पूर्व TV पत्रकार जिन्होंने 2022 में राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी की स्थापना की। मंगलवार को प्रदर्शनकारियों ने उन्हें जेल से मुक्त भी कराया, जहां वह वित्तीय कदाचार के आरोपों में मुकदमे की प्रतीक्षा कर रहे थे।

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    नए संविधान की मांग-

    कुछ प्रदर्शनकारी 2015 के चार्टर को फिर से लिखने की मांग कर रहे हैं, जो अपनाए जाने के समय भी विवादास्पद था। हालांकि संविधान संसद के माध्यम से संशोधन की अनुमति देता है, प्रदर्शनकारियों का कहना है, कि मौजूदा राजनीतिक वर्ग पर सार्थक सुधारों का नेतृत्व करने के लिए भरोसा नहीं किया जा सकता। नेपाल की राजनीतिक व्यवस्था पर व्यापक पुनर्विचार की मांग तेज होती जा रही है।

    फिलहाल काठमांडू कर्फ्यू के तहत है, जहां सैनिक कई दिनों की अशांति के बाद शांति बहाली की कोशिश कर रहे हैं। आगे क्या होगा। यह इस बात पर निर्भर करेगा, कि राजनीतिक प्रतिष्ठान प्रदर्शनकारियों के साथ जुड़ने का रास्ता खोज सकता है या फिर गतिरोध लंबी अस्थिरता में बदल जाता है।

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