India-Pakistan Tension: अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रूबियो ने बुधवार देर रात भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ से फोन पर बातचीत की। इस दौरान उन्होंने दोनों देशों के बीच बढ़ते तनाव को कम करने और शांति बनाए रखने का आग्रह किया। पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद से दोनों देशों के बीच संबंध और अधिक खराब हो गए हैं।
अमेरिकी विदेश विभाग की प्रवक्ता टैमी ब्रूस ने कहा, "विदेश मंत्री मार्को रूबियो ने आज भारतीय विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर से बात की। उन्होंने पहलगाम में हुए भयानक आतंकवादी हमले में हुई जान की हानि पर दुख व्यक्त किया और आतंकवाद के खिलाफ भारत के साथ सहयोग के लिए अमेरिका की प्रतिबद्धता को दोहराया। उन्होंने भारत से पाकिस्तान के साथ मिलकर तनाव कम करने और दक्षिण एशिया में शांति और सुरक्षा बनाए रखने के लिए काम करने को भी प्रोत्साहित किया।"
India-Pakistan Tension पाकिस्तान से भी की गई अपील-
रूबियो ने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ से बातचीत के दौरान 22 अप्रैल को हुए पहलगाम आतंकी हमले की निंदा करने और जांच में पूरी तरह सहयोग करने पर जोर दिया। उन्होंने इस हमले को "अमानवीय कृत्य" बताते हुए पाकिस्तानी अधिकारियों से जांच में पूरी तरह सहयोग करने का आह्वान किया।
उन्होंने आगे पाकिस्तान से भारत के साथ संवाद करके तनाव कम करने, सीधे संचार चैनलों को बहाल करने और दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय शांति और स्थिरता बनाए रखने का आग्रह किया।
India-Pakistan Tension शरीफ का भारत पर आरोप-
हालांकि, इस्लामाबाद से जारी एक बयान के अनुसार, शरीफ ने भारत पर "उकसावे और उत्तेजक व्यवहार" करने का आरोप लगाया। उनके कार्यालय द्वारा जारी बयान के अनुसार, शरीफ ने कहा, "भारत की उकसावेबाजी केवल पाकिस्तान को आतंकवाद को हराने के अपने चल रहे प्रयासों से, विशेष रूप से आतंकवादी समूहों से, भटकाने का काम करेगी।"
पहलगाम हमले के बाद बिगड़े हालात-
22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले में 26 नागरिकों की जान चली गई थी, जिनमें ज्यादातर पर्यटक शामिल थे, और कई लोग घायल हुए थे। इस हमले के बाद से जम्मू-कश्मीर में नियंत्रण रेखा (एलओसी) के साथ पाकिस्तान द्वारा संघर्ष विराम के उल्लंघन में तेजी से वृद्धि देखी गई है। पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों द्वारा किए गए इस हमले के बाद भारत ने कई कड़े कदम उठाए हैं।
भारत की प्रतिक्रिया और कदम-
भारत सरकार ने इस हमले के बाद कई राजनयिक और रणनीतिक कदम उठाए हैं। इनमें सिंधु जल संधि को निलंबित करना, अटारी में एकीकृत चेक पोस्ट को बंद करना और उच्चायोगों की ताकत को कम करने की दिशा में कदम उठाना शामिल है। इसके अलावा, सशस्त्र बलों को एक उपयुक्त जवाब की प्रकृति और समय निर्धारित करने के लिए पूरी परिचालन स्वतंत्रता दी गई है।
तनाव का बढ़ता ग्राफ-
पहलगाम हमले के बाद से भारत-पाकिस्तान के रिश्तों में तनाव लगातार बढ़ता जा रहा है। पाकिस्तान द्वारा नियंत्रण रेखा पर संघर्ष विराम का उल्लंघन, भारत के कड़े कदम और अब अमेरिका का हस्तक्षेप इस बात के संकेत हैं कि स्थिति गंभीर है।
रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि भारत ने इस बार अपनी रणनीति में बदलाव किया है। एक विशेषज्ञ के अनुसार, "भारत ने अब संयम बरतने के बजाय आक्रामक रुख अपनाया है। सिंधु जल संधि का निलंबित करना और व्यापारिक गतिविधियों को बंद करना इसी का हिस्सा है।"
क्षेत्रीय शांति का सवाल-
दक्षिण एशिया में शांति और स्थिरता बनाए रखना न केवल भारत-पाकिस्तान बल्कि पूरे क्षेत्र के लिए महत्वपूर्ण है। अंतरराष्ट्रीय संबंधों के विशेषज्ञ प्रोफेसर राजेश कुमार के अनुसार, "दोनों देशों के बीच तनाव से क्षेत्रीय व्यापार, पर्यटन और आर्थिक विकास प्रभावित होता है। इसलिए संवाद और कूटनीति ही समाधान का मार्ग है।"
अमेरिका का हस्तक्षेप बताता है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय भी इस स्थिति पर नजर रखे हुए है। हालांकि, भारत का रुख स्पष्ट है कि आतंकवाद और बातचीत एक साथ नहीं चल सकते।
आम जनता पर प्रभाव-
इस तनाव का सबसे अधिक प्रभाव सीमावर्ती क्षेत्रों में रहने वाले लोगों पर पड़ता है। जम्मू-कश्मीर के रहने वाले 56 वर्षीय रवि शर्मा बताते हैं, "हर बार तनाव बढ़ने पर हमारा जीवन प्रभावित होता है। स्कूल बंद हो जाते हैं, यातायात प्रभावित होता है और रोजमर्रा की जिंदगी अस्त-व्यस्त हो जाती है।"
पर्यटन व्यवसाय से जुड़े लोग भी चिंतित हैं। कश्मीर घाटी में पर्यटन व्यवसाय से जुड़े आसिफ खान कहते हैं, "पहलगाम हमले के बाद बुकिंग रद्द हो गई हैं। लोग डर रहे हैं। हमारा व्यवसाय बुरी तरह प्रभावित हुआ है।"
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क्या होगा आगे?
विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले दिनों में स्थिति और अधिक तनावपूर्ण हो सकती है। भारत ने साफ कर दिया है कि वह आतंकवाद के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति पर चल रहा है और इसके लिए हर संभव कदम उठाएगा।
हालांकि, कूटनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका जैसे प्रभावशाली देशों के हस्तक्षेप से दोनों देशों के बीच संवाद की संभावना बन सकती है। लेकिन इसके लिए आतंकवाद पर ठोस कार्रवाई और प्रतिबद्धता दिखाना होगा। अब देखना यह है कि क्या अमेरिकी विदेश मंत्री के प्रयास दोनों देशों के बीच तनाव कम करने में मदद करते हैं या फिर स्थिति और बिगड़ती है।
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