Varuthini Ekadashi 2025: वरूथिनी एकादशी, जिसे बरुथनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है, वैशाख माह (अप्रैल-मई) के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। यह पवित्र दिन भगवान विष्णु के पांचवें अवतार, भगवान वामन को समर्पित है। इस दिन भक्त कठोर उपवास रखते हैं और सुरक्षा, समृद्धि और आध्यात्मिक विकास के लिए प्रार्थना करते हैं।
वर्ष 2025 में वरूथिनी एकादशी गुरुवार, 24 अप्रैल को मनाई जाएगी। एकादशी तिथि 23 अप्रैल को शाम 4:43 बजे से शुरू होकर 24 अप्रैल को दोपहर 2:32 बजे तक रहेगी। पारण, यानी व्रत तोड़ने की विधि, 25 अप्रैल को सुबह 6:01 से 8:35 बजे के बीच संपन्न की जानी चाहिए।
Varuthini Ekadashi 2025 के व्रत का महत्व-
वरूथिनी एकादशी का व्रत हिंदू परंपरा में गहराई से जुड़ा हुआ है और पूरे देश में भक्तों द्वारा बड़ी श्रद्धा और अनुशासन के साथ मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि वरूथिनी एकादशी का व्रत रखने से पापों का नाश होता है और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। यह नकारात्मक प्रभावों से सुरक्षा प्रदान करता है और मोक्ष की ओर ले जाता है।
पद्म पुराण में वरूथिनी एकादशी के महत्व पर प्रकाश डाला गया है, जहां भगवान कृष्ण राजा युधिष्ठिर को इसका महत्व समझाते हैं। इस एकादशी के पालन से भक्तों को दुर्भाग्य से सुरक्षा मिलती है और उन्हें धर्म और भक्ति के मार्ग की ओर ले जाती है। एक पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार राजा मांधाता ने कठोर तपस्या की और भगवान विष्णु से आशीर्वाद मांगा। प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें वरूथिनी एकादशी के व्रत के बारे में बताया, जिसे रखने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
Varuthini Ekadashi 2025 व्रत विधि और पूजा पद्धति-
वरूथिनी एकादशी के दिन भक्त 24 घंटे का उपवास रखते हैं, जिसमें अनाज, दालें और कुछ सब्जियों से परहेज किया जाता है। कुछ लोग निर्जला व्रत रखते हैं, जिसमें केवल पानी का सेवन किया जाता है, जबकि अन्य फल और दूध का सेवन कर सकते हैं।
दिन की शुरुआत स्नान के साथ होती है, जिसके बाद भगवान वामन की पूजा फूल, धूप और दीप के साथ की जाती है। विष्णु सहस्रनाम का जाप और पवित्र ग्रंथों का पाठ आम प्रथाएं हैं। जरूरतमंदों को दान देना, गरीबों को भोजन कराना और वंचित लोगों की मदद करना प्रोत्साहित किया जाता है, क्योंकि इन कार्यों से व्रत के आध्यात्मिक लाभों को बढ़ाने में मदद मिलती है।एक भक्त, रमेश शर्मा बताते हैं, "मैं हर साल वरूथिनी एकादशी का व्रत रखता हूं। इस दिन पूरी तरह से भगवान विष्णु के ध्यान में रहकर जाप और पूजा करता हूं। व्रत से न केवल आध्यात्मिक शांति मिलती है, बल्कि मन और शरीर भी शुद्ध होता है।"
पारण का महत्व और समय-
व्रत को अगले दिन, द्वादशी (12वें चंद्र दिवस) के दौरान, पारण समय में समाप्त किया जाता है। वरूथिनी एकादशी 2025 के लिए, पारण 25 अप्रैल को सुबह 6:01 से 8:35 बजे के बीच किया जाना है। पूर्ण आध्यात्मिक लाभ प्राप्त करने के लिए इस अवधि के भीतर व्रत तोड़ना आवश्यक है। ज्योतिषाचार्य पंडित सुनील शर्मा कहते हैं, "पारण का समय व्रत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। द्वादशी तिथि में सूर्योदय के बाद और हरि वासर समाप्ति से पहले व्रत तोड़ना चाहिए। इस समय का पालन न करने से व्रत के फल में कमी आ सकती है।"
शुभ मुहूर्त और पूजा सामग्री-
वरूथिनी एकादशी 2025 के लिए शुभ मुहूर्त इस प्रकार हैं:-
एकादशी तिथि प्रारंभ: 23 अप्रैल, 2025 को शाम 4:43 बजे एकादशी तिथि समाप्त: 24 अप्रैल, 2025 को दोपहर 2:32 बजे पारण समय: 25 अप्रैल, 2025 को सुबह 6:01 से 8:35 बजे तक
ये समय उज्जैन, भारत के आधार पर हैं और स्थान के अनुसार थोड़े भिन्न हो सकते हैं। पूजा के लिए आवश्यक सामग्री में शामिल हैं: पीले फूल, तुलसी पत्ते, चंदन, कुमकुम, अक्षत (चावल), धूप, दीप, नैवेद्य (फल, मिठाई), पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और चीनी का मिश्रण) और पानी।
आधुनिक समय में व्रत का महत्व-
आज के व्यस्त जीवन में, कई लोग पूरे दिन के व्रत को अपनी दिनचर्या में समायोजित करने में कठिनाई महसूस करते हैं। ऐसे में, वे अपनी क्षमता और स्वास्थ्य के अनुसार व्रत रख सकते हैं। आध्यात्मिक गुरु स्वामी आनंद कहते हैं, "व्रत का मूल उद्देश्य शरीर और मन की शुद्धि है। आज के समय में, लोग अपनी सुविधानुसार फलाहार कर सकते हैं या सात्विक भोजन ले सकते हैं। महत्वपूर्ण है भगवान के प्रति समर्पण और सच्ची भक्ति।" कई लोग व्रत के दिन सामाजिक कार्यों में भी भाग लेते हैं, जैसे गरीबों को भोजन कराना, अनाथालयों में दान देना, या पर्यावरण संरक्षण के कार्य। ये कार्य व्रत के आध्यात्मिक महत्व को बढ़ाते हैं और समाज के प्रति जिम्मेदारी का भाव जगाते हैं।
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देश भर में मनाए जाने वाले विशेष उत्सव-
वरूथिनी एकादशी पर देश के विभिन्न हिस्सों में विशेष उत्सव मनाए जाते हैं। उत्तर भारत में, मंदिरों में विशेष पूजा और भजन कीर्तन का आयोजन किया जाता है। दक्षिण भारत में, भगवान वामन के मंदिरों में विशेष अभिषेक और आरती की जाती है।वाराणसी के एक प्रसिद्ध मंदिर के पुजारी राम प्रसाद शुक्ला बताते हैं, "वरूथिनी एकादशी पर हमारे मंदिर में हजारों भक्त दर्शन करने आते हैं। पूरे दिन भजन-कीर्तन और सत्संग का आयोजन होता है। शाम को विशेष आरती की जाती है, जिसमें भक्त बड़ी संख्या में शामिल होते हैं।"
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वरूथिनी एकादशी की कहानी से प्रेरणा-
वरूथिनी एकादशी की कहानी हमें सिखाती है कि भक्ति और समर्पण से सभी बाधाएं दूर की जा सकती हैं। इस दिन व्रत रखकर हम न केवल अपने पापों से मुक्ति पाते हैं, बल्कि अपने जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार भी करते हैं।