Chaitra Purnima 2025: हिंदू चंद्र कैलेंडर में चैत्र पूर्णिमा का विशेष महत्व है। यह वर्ष की पहली पूर्णिमा होती है और इसी दिन हनुमान जयंती के रूप में मनाई जाती है। 'पूर्णिमा' शब्द संस्कृत से आया है, जिसका अर्थ होता है 'पूर्ण चंद्रमा'। यह चंद्रमा की सबसे चमकीली अवस्था है और चंद्र पक्ष के 15वें दिन होती है। पूर्णिमा के खत्म होने के साथ ही कृष्ण पक्ष शुरू होता है, जो 15 दिनों का घटता हुआ चरण होता है। पूर्णिमांत प्रणाली में यह नए महीने की शुरुआत का प्रतीक भी है।
Chaitra Purnima 2025 तिथि और समय-
इस वर्ष चैत्र पूर्णिमा 12 अप्रैल 2025, शनिवार को मनाई जाएगी। पूर्णिमा तिथि 12 अप्रैल को सुबह 03:21 बजे से शुरू होकर 13 अप्रैल को सुबह 05:51 बजे तक रहेगी। इस दौरान कई शुभ मुहूर्त हैं, जिनमें अभिजित मुहूर्त सुबह 11:56 से दोपहर 12:48 तक और अमृत काल सुबह 11:23 से दोपहर 01:11 तक है।
Chaitra Purnima 2025 का वैज्ञानिक और आध्यात्मिक महत्व-
चैत्र पूर्णिमा, जिसे चित्रा पूर्णिमा भी कहा जाता है, तब होती है जब सूर्य मेष राशि में उच्च स्थिति में होता है और चंद्रमा तुला राशि में चित्रा नक्षत्र के साथ संरेखित होता है। यह पूर्णिमा सृजन और प्रकटीकरण के लिए शुभ समय मानी जाती है। मेष राशि में उच्च स्थित सूर्य आत्मा को ऊर्जा देता है और व्यक्तियों को ऐसे बुद्धिमान विकल्प चुनने के लिए सशक्त बनाता है जो उनके भाग्य का निर्धारण करते हैं। पूर्ण चंद्रमा मन और उसके विचारों में संतुलन लाता है।
Chaitra Purnima 2025 का धार्मिक महत्व-
हिंदू परंपरा में चैत्र पूर्णिमा का बहुत महत्व है। यह चित्रगुप्त को समर्पित है, जो कि कर्म के रखवाले हैं और व्यक्ति के सकारात्मक और नकारात्मक कर्मों का रिकॉर्ड रखते हैं। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, चित्रगुप्त के रिकॉर्ड मृत्यु के बाद किसी व्यक्ति के भाग्य का निर्धारण करते हैं। इस दिन भक्त अपने पापों के लिए क्षमा मांगते हैं और धर्मपरायण जीवन जीने का प्रयास करते हैं। चैत्र पूर्णिमा हनुमान जयंती के साथ मनाई जाती है, जिससे यह एक अत्यंत शुभ अवसर बन जाता है। हनुमान जी को शक्ति, भक्ति और साहस का प्रतीक माना जाता है, और उनका जन्मदिन पूरे देश में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है।
Chaitra Purnima 2025 पूजा विधि और उपाय-
इस शुभ दिन को मनाने के लिए, सूर्योदय से पहले स्नान कर के शुरुआत करें। भगवान विष्णु और भगवान हनुमान की पूजा करें और उनका आशीर्वाद प्राप्त करें। सुबह में, रामायण या भगवद गीता का पाठ करना अच्छा माना जाता है क्योंकि ये पवित्र ग्रंथ आध्यात्मिक मार्गदर्शन और ज्ञान प्रदान करते हैं। भगवान विष्णु के भक्त सत्यनारायण व्रत भी रख सकते हैं, उनकी कथा का पाठ कर सकते हैं और भगवान को भोग अर्पित कर सकते हैं। पूजा के दौरान, भगवान विष्णु को केले के पत्ते, सुपारी, फल, अगरबत्ती, मौली और चंदन का लेप सहित विभिन्न चीजें अर्पित की जाती हैं।
अन्न दान, यानी भोजन दान करना भी एक महान कार्य माना जाता है। इसके अलावा, जरूरतमंदों को कपड़े और अन्य आवश्यक सामान भी दान किए जाते हैं। आध्यात्मिक विकास के लिए, भक्त 'ओम नमो नारायण' या गायत्री मंत्र का 108 बार जाप करते हैं। पूजा का समापन चंद्रमा को अर्घ्य देकर किया जाता है।
चैत्र पूर्णिमा के सामाजिक पहलू-
चैत्र पूर्णिमा केवल धार्मिक त्योहार ही नहीं है, बल्कि सामाजिक एकता और सामुदायिक भावना को बढ़ावा देने का अवसर भी है। इस दिन, परिवार और समुदाय एक साथ इकट्ठा होते हैं, पूजा-अर्चना करते हैं, और भोजन साझा करते हैं। यह दिन हमें याद दिलाता है कि हम सभी एक बड़े परिवार का हिस्सा हैं और हमें एक-दूसरे की मदद करनी चाहिए।
कई जगहों पर चैत्र पूर्णिमा के अवसर पर मेले और सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं, जहां लोग अपनी परंपराओं और संस्कृति का जश्न मनाते हैं। ये आयोजन स्थानीय कलाकारों और कारीगरों को अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका देते हैं और साथ ही स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी बढ़ावा देते हैं।
ये भी पढ़ें- देवताओं के 5 पवित्र मंदिर जहां वो आज भी हैं विराजमान!
चैत्र पूर्णिमा और आधुनिक जीवन-
आज के व्यस्त जीवन में, हम अक्सर अपनी परंपराओं और संस्कृति से दूर हो जाते हैं। चैत्र पूर्णिमा जैसे त्योहार हमें अपनी जड़ों से जुड़ने और आध्यात्मिकता का महत्व समझने का अवसर देते हैं। यह दिन हमें याद दिलाता है कि हमारे जीवन में संतुलन और शांति बनाए रखना कितना महत्वपूर्ण है। आधुनिक समय में भी, चैत्र पूर्णिमा के पीछे के वैज्ञानिक और आध्यात्मिक सिद्धांत प्रासंगिक हैं। चंद्रमा का प्रभाव हमारे शरीर और मन पर पड़ता है, और पूर्णिमा के दिन यह प्रभाव अपने चरम पर होता है। इसलिए, यह आत्म-चिंतन और आंतरिक शांति प्राप्त करने का अच्छा समय है।
ये भी पढ़ें- श्री राम के वो 10 फैसले जो बदल देंगे आपका धर्म के बारे में सोचने का तरीका!
चाहे आप पारंपरिक तरीके से चैत्र पूर्णिमा मनाएं या आधुनिक तरीके से, इस दिन का मूल संदेश हमेशा एक ही रहता है - सद्भावना, दया और परोपकार। आइए इस चैत्र पूर्णिमा पर हम सभी मिलकर एक बेहतर और अधिक सौहार्दपूर्ण समाज बनाने का संकल्प लें।