Weapons of God: महाभारत काल के पांच ऐसे डिवाइन वैपन्स, जो आज भी इस धरती पर मौजूद है और नंबर एक पर मौजूद अस्त्र अभी शांत अवस्था में मौजूद है। लेकिन जैसे ही कल्की अवतार होगा, उस दिन ये अस्त्र अपनी शक्तियों को हासिल कर अपने असली मालिक के पास वापस चला जाएगा। हमारी ये दुनिया अलग-अलग मिस्ट्रीज़ से भरी पड़ी है। ज़मीन को थोड़ा और खोदने पर मिट्टियों की अलग-अलग किस्म मिल जाती है, थोड़ा और खोदने पर नेचुरल रिसोर्सेस गोल्ड, सिल्वर और कोल मिलने लगती है। लेकिन ज्याद खोदने पर हमारे भारत का इतिहास नजर आता है।
आज के इस लेख में हम बात करेंगें, इन अस्त्रों शस्त्रों की जो महाभारत काल से इस धरती पर मौजूद है या वह दिव्य अस्त्र-शस्त्र देवताओं ने इस्तेमाल किया। वह शक्तिशाली वीर योद्धा तो अपने-अपने परमधाम और अपने-अपने लोकों में चले गए। लेकिन उन्होंने पृथ्वी पर छोड़ दिए, अपने शक्तिशाली अस्त्र और आज भी वह अस्त्र पृथ्वी में अलग-अलग जगह पर मौजूद हैं, तो बिना देरी करे जानते हैं, उन शक्तिशाली अस्त्रों के बारे में, जो आज भी इस धरती पर मौजूद हैं।
1. अर्जुन का गांडीव धनुष तरकश(Weapons of God)-
महाभारत के युद्ध में पांडव पुत्र अर्जुन के पास गांडीव नाम का एक धनुष था, जो बहुत ही पावरफुल था। साथ ही एक ऐसा तरकश जिसमें कभी भी तीर खत्म नहीं होते थे। अब जैसे, कि हम सब जानते हैं, कि महर्षि दधीचि की हड्डियों से बने तीन धनुषों में से एक था, गांडीव धनुष। कहते हैं गांडीव धनुष बहुत ही अलौकिक था, वह पहले वरुष देव के पास था। वरुष देव ने उसे अग्नि देव को दिया और खांडव प्रस्थ के दौरान अग्नि देव इसे अर्जुन को दे दिया। अब इसे कोई भी अस्त्र-शस्त्र तोड़ नहीं सकता था और ये एक साथ कई लाखों धनुषों का मुकाबला कर सकता था। साथ ही अर्जुन के अक्षय तरकश के बांण कभी भी खत्म नहीं होते थे। लेकिन अब बड़ा सवाल यह उठता है, कि आखिर अर्जुन की अर्जुन की मृत्यु के पश्चात, उसका गांडीव धनुष कहा गया। क्या आज भी इस धरती पर वह गांडीव धनुष पर मौजूद है। (Weapons of God)
अब यह सटीक जानकारी महाभारत के गीता प्रेस संस्करण से ली गई है। कहा जाता है कि महाभारत खत्म होने के 36 वर्षों तक युधिष्ठिर ने चक्रवर्ती सम्राट के रूप में पूरे भारतवर्ष में राज्य किया। 36 वर्ष बाद जब भगवान श्री कृष्ण ने अपना देह त्याग दिया, तब उसके बाद सभी पांडवों ने निश्चय किया, कि वह महाप्रस्थान करेंगे यानी कि स्वर्ग की यात्रा शुरू करेंगे और स्वर्ग की तरफ बढ़ेंगे। उन्होंने राजा परीक्षित को पूरा का पूरा राजपाल सौंप दिया और सभी महाप्रस्थान के निकल गए। कहा जाता है कि महाप्रस्थान के समय केवल और केवल अर्जुन को छोड़कर बाकी सभी पांडवों ने अपने अस्त्र-सत्र को त्याग दिया था। लेकिन अर्जुन एकमात्र ऐसे पांडव थे, जिन्होंने अपने गांडीव धनुष को अपने सीने से लगाए रखा और उसे अलग नहीं किया। कहा जाता है, कि महाप्रस्थान करते समय जब सभी पांडव सागर के तट पर पहुंचे, तब उनके सामने स्वयं अग्नि देवता प्रकट हुए और उन्होंने अर्जुन को रोक लिया और कहा की अब गांडीव धनुष का काम पूरा हो चुका है। ऐसे में उसे सागर में प्रवाहित करना होगा।
गांडीव धनुष को प्रवाहित(Weapons of God)-
अब अर्जुन भी अग्नि देवता की बात कहा टालते, उन्होंने भी उस सागर में उसी समय गांडीव धनुष को प्रवाहित कर दिया। सिर्फ यही नहीं अर्जुन ने गांडीव धनुष के साथ अक्षय तरकश को भी जल में प्रवाहितक कर दिया। अब कार्य सम्पन्न तो हुआ, अग्नि देव भी गायब हो गए। उसके बाद सभी पांडव भी आगे बढ़ गए। लेकिन गांडीव धनुष का उसके बाद कहीं पर भी उल्लेख नहीं मिलता। लेकिन जैसा, कि हर शास्त्रों में वर्णित है, कि शक्तिशाली अस्त्र शस्त्र सदैव अपने देवताओं के पास लौट जाते हैं, तो ऐसे में यह संभव है कि गांडीव धनुष स्वंय वरुष देव के पास पहुंच गया होगा, जो उसके पहले मालिक थे। लेकिन बहुत से बुद्धिजीवी ये भी मानते हैं, कि स्वर्गा रोहष के समय अर्जुन ने अपने गांडीव धनुष को उत्तराखंड के चंपावत जिले में बयान अधूरा मंदिर में रखा था और वहां पर यह आज भी मौजूद है। लेकिन कहां पर कोई नहीं जानता। लेकिन कुछ लोग कहते हैं, कि जब उन्होंने समुद्र में उसे प्रवाहित किया, तो वह ऐसी जगह पर जाकर रुक गया या छुप गया, जो वक्त आने पर यानी की कलयुग के अंत में ही एक दिव्य हथियार के रूप में कल्की अवतार को प्राप्त होगा।
2. कर्ण के कवच और कुंडल-
सूर्यपुत्र कर्ण को जन्म से ही सूर्य देव द्वारा आशीर्वाद के रुप में एक कवच प्राप्त हुआ, जो उनके शरीर से कुछ इस तरह से जुड़ा हुआ था, कि अगर कोई भी कर्ण पर हमला करने की कोशिश करता, तो वह कवच सक्रिय हो जाता था और कर्ण के प्राणों की रक्षा करता। अब कवच के साथ-साथ उनके पास थे, कुंडल, जो उन्हें युवा और स्फूर्तिवान योद्धा बनाते थे। खुद वेदव्यास जी, ने अपनी महाभारत में कर्ण को एक युवा योद्धा के तौर पर प्रस्तुत किया है। वैसे भी कर्ण का यह कवच और कुंडल अमृत से बना हुआ था। अब सबसे ज़रुरी बात, क्या आज भी कर्ण के कवच और कुंडल इस धरती पर मौजूद हैं। कहा जाता है, कि रहस्य को कितना भी छुपाओ, वह सच बनकर सबके सामने आ ही जाता है।
सब जानते हैं, कि युद्ध शुरू होने से पहले देवराज इंद्र ने एक ब्राह्मण का रूप धारण किया और कर्ण से उनकी सूर्य पूजा के दौरान दान मांगने भी पहुंच गए। क्योंकि अगर वह ऐसा नहीं करते, तो अर्जुन कभी भी कर्ण को परास्त नहीं कर पाते। कर्ण ने भी उन्हें हंसते-हंसते अपने कवच कुंडल दान में दे दिए। उसके बाद इंद्रदेव उस कवच और कुंडल को लेकर वहां से निकल गए। उसके बाद इंद्रदेव कवच और कुंडल लेकर अपने रथ से स्वर्ग की तरफ प्रस्थान कर रहे थे। ऐसा कहा जाता है, जब वह कवच और कुंडल लेकर जा रहे थे। उसी समय वहां एक आकाशवाणी हुई, जिसमें देवराज इंद्र को कहा गया, कि आपने बहुत बड़ा पाप किया है। इसलिए आप स्वर्ग में प्रवेश नहीं कर सकते। जब तक की आपके पास यह कवच और कुंडल रहेंगे। ऐसे में इंद्रदेव ने उसे ओम पर्वत की तलहटी पर छुपा दिया। लेकिन उसके बाद चंद्र देव ने उन्हें चुराने का प्रयास किया।
जिसके बाद इंद्रदेव ने वापस कवच और कुंडल लेकर सूर्य देव की सहायता से उसे कोणार्क में स्थित सूर्य मंदिर के अंदर छुपा दिया। कहा जाता है, कि सूर्य मंदिर की तलहटी यानी कि नीचे एक बहुत बड़ी गुफा मौजूद है, जिसमें कर्ण के कवच और कुंडल आज भी सेफ हैं और कहा यह भी जाता है, कि आने वाले कलयुग के अंत में भगवान विष्णु के अवतार यानी कि कल्की अवतार उस कवच और कुंडल को धारण करेंगे।
3. समयंतक मणी(Weapons of God)-
अब जैसा कि इस मणि का नाम ही है, समयंतक यानी कि जो समय से भी पर है। अब इस मणी का इस्तेमाल कर आप समय में कहीं पर भी विचरण कर सकते हैं। सिर्फ यही नहीं, जिसके पास भी यह माणी होती है, वह इसका उपयोग विभिन्न कार्य में कर सकता है। यह बहुत ही शक्तिशाली थी और यह भी आप कह सकते हैं, कि स्वयं जब भी भगवान श्री कृष्ण के पास, तो सोचिए की यह कितनी शक्तिशाली होगी। जो भगवान श्री कृष्णा इसे अपने पास रखा था। लेकिन इस मणि में शक्तियों के साथ-साथ कई सारे श्राप भी जुड़े हुए थे। कहते हैं, कि जो भी इस मणी को अपने पास रखता, उसके पूरे कुल का विनाश हो जाता है और ऐसा ही कुछ भगवान श्री कृष्ण के साथ भी हुआ था।
पुराणों में इस बात का वर्णन(Weapons of God)-
उसके बाद से ही यह मणी कहीं विलुप्त हो गई। लेकिन पुराणों में इस बात का वर्णन मिलता है, कि यह मणी जब भी किसी के पास रही है, वह यकीनन एक महान प्रतापी राजा बना है। लेकिन उसके अंत में उसके कुल का विनाश भी हुआ है, लेकिन बहुत से पौराणिक विद्वानों का मानना है, कि समयंतक मणी वही कोहिनूर का हीरा है, जो कभी भारत की शान हुआ करता था और इस समय यूनाइटेड किंगडम यानी कि यूके के एक म्यूजियम में रखा हुआ है, बहुत सी थ्योरीज़ यह भी कहती हैं, कि शायद अंग्रेजों को उस समय पता चल गया था, की समयंतक मणी ही कोहिनूर है और वह कितनी शक्तिशाली है, शायद उसके अंदर कुछ ऊर्जा का भंडार है, जो उस समय साइंटिफिक प्रूफ करके दिख गया हो, इस वजह से उस वक्त उन्होंने उसे अपने पास रख लिया और शायद, जो हम दुनिया को कोहिनूर हीरा दिखाया जाता है, वह नकली हो। असल में समयंतक मणी कहीं और उनकी प्रयोगशाला के अंदर दफन हो।
सुदर्शन चक्र(Weapons of God)-
ऋग्वेद के मुताबिक, भगवान श्री विष्णु की उंगली पर घूमता यह चक्र समय चक्र के रुप में भी परिभाषित किया जाता है। जिससे उन्होंने समय पर असुरों का संहार किया। इस सुदर्शन चक्र के बारे में भी ऐसा माना जाता है, कि यह चक्र बहुत अचूक है। यहां तक की अपने लक्ष्य का पीछा करता है और उसका काम तमाम करने के बाद ही वापस अपने धारण कर्ता के पास आता है। वहीं सुदर्शन चक्र से जुड़ी हुई, कई सारी पुरानी कथाएं है, जैसे ही सुदर्शन चक्र का उपयोग माता सती के शव के 51 टुकड़े करने के लिए हुआ था। जोकि अब 51 शक्तिपीठ बन चुके हैं। वहीं महाभारत में शिशुपाल का सिर सुदर्शन चक्र काटा गया था। समुद्र मंथन के दौरान राहु का सिर काटना और मंदार पर्वत को काटना, सब कुछ सुदर्शन चक्र से ही किया गया था।
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उड़ीसा के पुरी जिले में एक मंदिर-
लेकिन मोस्ट इंपोर्टेंट सवाल आखिर अब सुदर्श चक्र कहां है। कुछ लोगों का मानना है कि सुदर्शन चक्र उड़ीसा के पुरी जिले में एक मंदिर में मौजूद है। जहां श्री भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र की पूजा आज भी की जाती है। इस मंदिर में एक विशाल संरचना देखी जाती है, जो की मिट्टी में आधी दबी हुई है। जिसे सुदर्शन चक्र कहा जाता है। भविष्य पुराण की मानें, तो भविष्य पुराण में बताया गया है, कि सुदर्शन चक्र भगवान विष्णु और उनके अवतारों के सिवा कोई भी धारण नहीं कर सकता और ना कोई उसे चला सकता है। जब भगवान श्री कृष्ण ने देह त्यागा, तब सुदर्शन चक्र भी पृथ्वी पर समा गया और जब कलयुग के अंत में भगवान श्री कल्की अवतार धरती पर अवतार लेंगे, तब दोबारा यह सुदर्शन चक्र धारण करेंगे और इससे ही वह कली पुरुण का खात्मा करेंगे।
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