Mystery of The Oceans: अगर मैं आपसे यह सवाल को पूछूं, कि अंतरिक्ष और समुद्र में किसको ज्यादा अच्छे से खोजा गया है, तो आप में से ज्यादातर लोगों कहेंगे समुद्र को, जो काफी ज्यादा आसान भी लगता है। क्योंकि एक तो अंतरिक्ष बहुत विशाल और अनंत है और तो और ना ही हमारे पास इतनी ज्यदा एडवांस्ड टेक्नोलॉजी है, कि हम इतने बड़े अंतरिक्ष को पूरी तरह से खोज पाएं। दूसरी तरफ है हमारी पृथ्वी पर मौजूद समुद्र, जो अनंत नहीं हैं और यह पूरी तरह से हमारे ही ग्रह पर मौजूद है और इन पर हम ना जानें कितनी सदियों से यात्रा भी कर रहे हैं।
हम कई बार इन्हीं समुद्रों के किनारो पर छुट्टियां मनाने जाते हैं। वहीं इनके किनारों पर कई शहर भी बसे हुए हैं। वहीं अंतरिक्ष के बारे में रिसर्च करना हमने मात्र एक सदी पहले ही शुरू किया है और उसमें भी अगर बात करें, तो अंतरिक्ष में जाने वाली बात 50-60 साल पुरानी है। अब इससे सीधा जवाब यहां ये मिलता है कि हमें समुद्रों के बारे में ही ज्यादा पता होगी। लेकिन क्या होगा अगर हम आपसे यह कहें, कि हमारा समुद्र अंतरिक्ष से भी कहीं ज्यादा रहस्यमई है और इसके बारे में वैज्ञानिक अंतरिक्ष के मुकाबले में काफी कम जानते हैं।
वैज्ञानिकों की रिसर्च (Mystery of The Oceans)-
असल में इस सवाल का उत्तर ढूंढना काफी ज्यादा कॉम्प्लिकेटेड है, भले ही हम समुद्रों ना जाने कितने सालों से यात्रा कर रहे हों, लेकिन हमने कभी भी उसके एक रिसर्च के नज़रिए से नहीं देखा। लेकिन आधुनिकता आने की वजह से हम हर चीज़ को एक रिसर्च पर्सपेक्टिव से देखने लगे हैं। जिसकी वजह से समुद्र भी वैज्ञानिकों की रिसर्च का एक केंद्र बन गए हैं। यमुद्र से ही हमारी पृथ्वी पर जीवन शुरू हुआ था और इसलिए इसके बारे में ज़्यादा से ज़्यादा जानकारी इकट्ठा करना, हमारे लिए काफी ज्यादा फायदेमंद साबित हो सकता है। क्योंकि इससे हम यह पता लगा सकते हैं, कि अंतरिक्ष में बाकी जगहों पर कैसे जीवन शुरू हुआ। हम इंसानों का सनुद्र के साथ बहुत पहले से ही एक अच्छा रिश्ता रहा है। लेकिन फिर भी इसके जितने पार्ट को अभी तक वैज्ञानिकों ने खोज कर रिसर्च किया, उसे जानकर आप हैरान रह जाएंगे, तो आईए सबसे पहले जानते हैं, कि हमने समुद्र के कितने हिस्से को डिस्कवर किया है।
अंतरिक्ष में रिसर्च(Mystery of The Oceans)-
सबसे पहले तो आपको यह बात पता होनी चाहिए, कि अगर हम अंतरिक्ष में रिसर्च करते हैं और उसके बारे में जानकारी इकट्ठा करते हैं, तो उसे स्पेस एक्प्लोरेशन कहा जाता है और जब के बारे में जानकारी इक्ट्ठा करते हैं और अगर समुद्र के बीच में किसी पनडुब्बी को भेजा जाता है, तो उसे नॉटिकल एक्सप्लोर कहा जाता है। यहां नॉटिकल शब्द का मतलब होता है, समुद्र से जुड़ा हुआ। यह शब्द पुरानी बाइबल की किताबों से आया है। ऐसे ही कई किताबों में समुद्र में टहलने भगवानों का भी जिक्र किया गया है और सिर्फ इतना ही नहीं अगर हिस्ट्री में हम थोड़ा और आगे बढ़ते हैं, तो हमें ऐसे ही कई सारे एक्सप्लोरर के नाम भी सुनने को मिलते हैं। जिनमें से कुछ के नाम तो आप बहुत अच्छे से जानते हो। जैसे कि क्रिस्टोफर कॉलम्बस और वास्कोडिगामा। क्रिस्टोफर कॉलम्बस पहले ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने यमुद्र तट की खोज की थी। यानी यह पहले ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने वह रास्ता खोज लिया था, जिससे आज हम समुद्र के ज़रिए अमेरिका तक जा सकते हैं।
समुद्र से जुड़े कई सारे फैक्ट्स(Mystery of The Oceans)-
कुछ ऐसे ही थे वास्कोडिगामा, जो बंगाल के एक बंदरगाह पर आकर रुके थे और जो पहले ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने भारत आने का समुद्री रास्ता खोजा था। सिर्फ इतना ही नहीं रोमन और ग्रीक किताबों में भी समुद्र से जुड़े कई सारे ऐसे ही फैक्ट्स लिखे हुए हैं और ऐसी बातों का जिक्र किया गया है, जिनके बारे में वैज्ञानिक ज्यादा कुछ नहीं जानते। यहां पर आपको एक बात बता दूं, कि हमने बचपन में पढ़ा है, कि भारत की वास्कोडिगामा ने खोज की थी, तो आपको यहां पर करेक्ट कर दूं, कि वास्कोडिगामा ने कोई भारत की खोज नहीं की थी, बल्कि उन्होंने भारत आने का एक समुद्री रास्ता खोजा था। भारत पहले से ही मौजूद था, यह बाते हमें बचपन में गलत सिखाई गईं हैं। इसलिए इन्हें यहां करेक्ट करना ज़रुरी है। चलिए अब अपने टॉपिक पर चलते हैं, तो अगर आज 21वीं सदी में भी हम समुद्र यात्रा को देखें, तो आज भी हम समुद्रों पर उतना ही डिपेंडेंट है, जितना की 500 से 600 साल पहले हुआ करते थे। किसी भी बहुत भारी और ज्यादा मात्रा के समान को एक देश दूसरे देश तक ले जाने के लिए समुद्रों का ही इस्तेमाल किया जाता है। क्योंकि यह किसी बड़े सामान को दूसरे देश तक ले जाने का सबसे सेफ और सस्ता तरीका है।
शिपिंग इंडस्ट्री(Mystery of The Oceans)-
हमारी शिपिंग इंडस्ट्री यानि पृथ्वी पर जितना भी सामान इधर से उधर ले जाने का काम होता है। सब समुद्र के ज़रिए होता है। आपने कभी अमेजॉन से शॉपिंग तो की होगी, लेकिन क्या आपको पता है, कि अमेजॉन का ज़्यादातर सामान इन्वेंटरी के लिए अमेरिका से समुद्र के रास्ते ही लाया जाता है और सिर्फ इतना ही नहीं भारत अगर किसी दूसरे देश से तेल इंपोर्ट करता है, तो उसका भी कॉन्वेंस समुद्र द्वारा ही किया जाता है। क्योंकि इसके अलावा कोई भी ऐसा तरीका नहीं है, इस जिससे सस्ते में और सेफ तरीके से सामान को इतनी दूर तक पहुंच जाए। लग्जरी चार्ट के मुताबिक, हर रोज 1000 नॉटिकल माइल्स के रास्ते को सिर्फ शिपिंग करने के लिए कवर किया जाता है। अब यह नॉटिकल माइल्स भले ही थोड़ा कॉम्प्लिकेटेड लगे। लेकिन असल में एक नॉटिकल माइल का मतलब होता है, करीब 1.8 किलोमीटर। इतना ज्यादा ट्रेवल होने के बाद भी समुद्र आज तक की सबसे कम खोजी गई चीज़ों में से एक हैं। तो आखिर हम अभी तक समुद्र का कितना प्रतिशत हिस्सा खोज पाए हैं। अगर नेशनल ऑशियन के रिपोर्ट की मानें, तो हम अभी तक समुद्र का 5 प्रतिशत हिस्सा ही खोज पाए हैं।
एक्सप्लोरिंग में कई सारी चीज़ें(Mystery of The Oceans)-
यहां खोजने का मतलब यह है, कि हम उसे अच्छे से एक्सप्लोर किया है और एक्सप्लोरिंग में कई सारी चीज़ें आती है। जैसे उस एरिया के सभी पेड़ पौधों पर रिसर्च और सिर्फ पेड़-पौधों पर ही नहीं बल्कि वहां पर जितनी भी मछलियों की प्रजाति या समुद्री जीवों की प्रजाति है, उन पर भी अच्छे से रिसर्च करना। इसके साथ ही उस एरिया में मेटल और नॉन मेटल की क्वांटिटी भी साथ में गिनी जाती है। जब समुद्र का सिर्फ 5 प्रतिशत हिस्सा ही ढूंढा है, तब हमारे पास इतने सारे अलग-अलग जीवों की प्रजाति है, तो अगर बाकी बचे हुए 95% हिस्से को भी बहुत अच्छे से खोजा जाए, तो हमें ना जाने कैसे-कैसे समुद्री जीव देखने को मिलेंगे, जो शायद वैज्ञानिकों ने सपने में भी नहीं सोचे होंगे। अब इसे थोड़ा सा कंपेयर करते हैं, स्पेस एक्प्लोरेशन से।
आसानी से ट्रैक(Mystery of The Oceans)-
हमारे पास आज बुध ग्रह, मंगल ग्रह और चांद के बिल्कुल डिटेल्ड मैप हैं यानी अगर आप चांद के किसी भी लोकेशन पर खड़े हुए, तो वैज्ञानिक आसानी से आपको ट्रैक कर सकते हैं और उस एरिया की पूरी जानकारी बता सकते हैं। जैसे वहां पर कौन से मेटल पाए जाते हैं और कौन से नॉन मेटल पाए जाते हैं और वहां की मिनरल वैल्यू क्या है। इतना ही नहीं मंगल जैसे ग्रहों के मामले में वहां का तापमान, वायुमंडल का प्रेशर, हवा की गति और आने वाले एक साल में उस एरिया के साथ क्या होगा। जहां तक बताया जा सकता है, ये तो बहुत सीधे ही पता चलता है, कि वैज्ञानिक स्पेस एक्सप्लोरेशन में कई गुना ज्यादा आगे हैं, खैर स्पेस एक्सप्लोरेशन को हम थोड़ा बाद में जानेंगे।
ओशन एक्सप्लोर के बारे में चर्चा(Mystery of The Oceans)-
अभी सबले पहले ओशन एक्सप्लोर के बारे में थोड़ा और चर्चा करते हैं, तो आखिर क्यों समुद्र के बारे में इतना कम जानते हैं और क्यों वैज्ञानिकों ने उसके 95 प्रतिशत हिस्से को अभी तक अच्छे से एक्सप्लोर नहीं किया है। खैर नॉटिकल एक्प्लोरेशन के इतने ज्यादा मुश्किल होने के दो मुख्य कारण हैं। सबसे पहला कारण है टेक्नोलॉजी। हमारे पास ऑशियन एक्प्लोरेशन के लिए पहले से ही काफी सारे उपकरण हैं, क्योंकि हम इस विषय के बारे में बहुत पहले से जानकारी इक्ट्ठा करते हुए आ रहे हैं। अगर आप इतिहास की किताबों को उठाकर पढ़ते हैं, तो आपको पता चलेगा, कि मानव सभ्यता का सबसे पुराना विषय ही एस्ट्रोनॉमी यानी खगोल विज्ञान और यही विषय विज्ञान की पहली फील्ड था। इसके बाद फिजिक्स ने इसे और ज्यादा बड़ा बना दिया। ओशन एक्यप्लोरेशन में ओशन सैटेलाइट, डीपसी सबमरीन और रिमोट ले ऑपरेटेड व्हीकल यानी आरोवीज़ जैसे यंत्रों का इस्तेमाल किया जाता है और यह टेक्नोलॉजी हमारे पास 50 साल पहले थी ही नहीं। इसलिए समुद्र के बारे में खोज करना तो बहुत दूर की बात थी।
समुद्र पर रिसर्च(Mystery of The Oceans)-
जैसे-जैसे यह टेक्नोलॉजी और बढ़ती गई वैसे-वैसे वैज्ञानिकों ने समुद्र पर रिसर्च करना चालू किया और पिछले करीब तीन सालों में वैज्ञानिकों ने समुद्र के 5 प्रतिशत हिस्से को बहुत अच्छे से एक्सप्लोर कर लिया। वहीं टेक्नोलॉजी के बाद जो सबसे बड़ी दिक्कत आती है, वह यह है कि समुद्र बहुत ज्यादा गहरा और विशाल है। अब आप कहेंगे की विशाल तो अंतरिक्ष भी है और समुद्र से अनंत गुना ज़्यादा विशाल है। लेकिन फिर भी वैज्ञानिक इसे स्टडी करने में कोई कसर नहीं छोड़ते। ऐसा इसलिए है, क्योंकि स्पेस एक अप्रोचेबल जगह है। आईए इसे थोड़ा आसानी से समझते हैं। अगर हम समुद्र के सबसे गहरे पॉइंट की बात करें, तो करीब 7 मील गहरा है। यह एरिया हमारे यहां ट्रैंड्स के नाम से जाना जाता है। अब अगर हम अंतरिक्ष में 7 मील दूरी की जगह को देखें, तो यह बिल्कुल क्लियर दिखाई देगी।
नॉर्मल कैमरा का इस्तेमाल(Mystery of The Oceans)-
क्योंकि अंतरिक्ष में कोई भी ऐसी चीज नहीं है, जो प्रकाश को बहुत सारी मात्रा में रोक सके। इसलिए हम एक नॉर्मल कैमरा का इस्तेमाल करके भी बहुत आसानी से रिसर्च कर सकते हैं, आईए एक और बहुत छोटे से एग्ज़ाम्पल से बहुत आसानी से समझते हैं, कि हम क्या कहना चाहते हैं, कि चांद हमारी पृथ्वी से तीन लाख 84 हज़ार किलोमीटर दूर है। लेकिन फिर भी हम एक नॉर्मल सैमसंग के मोबाइल का इस्तेमाल करते हुए, बहुत आसानी से उसकी सतह पर ज़ूम करके आसानी से देख सकते हैं और अगर वैज्ञानिकों के द्वारा यूज़ किए जाने वाले इंस्ट्रूमेंट का इस्तेमाल किया जाए, तो सिर्फ उसकी सतह का ही नहीं बल्कि सतह पर क्या चीज़ मौजूद है और कितनी मात्रा में मौजूद है। ये भी बहुत आसानी से पता लगाया जा सकता है।
समुद्र के नीचे पानी का दबाव-
लेकिन वही चीज अगर हम समुद्र में करने की सोचें, तो यह संभव नहीं है, क्योंकि पानी की वजह से लाइट समुद्र के नीचे वाले भाग में नहीं जा पाएगी। जिसकी वजह से वहां पर रिसर्च करना और भी ज्यादा कठिन हो जाता है। अगर हमें समुद्र से सबसे डीपेस्ट पॉइंट में रिसर्च करनी है, तो हमें किसी चीज़ को भेजना पड़ेगा और वह भी बहुत मजबूत सेंसर के साथ। यहां हमने मजबूत शब्द का इस्तेमाल इसलिए किया, क्योंकि समुद्र के नीचे पानी का दबाव इतना ज्यादा होता है, कि अगर आपको अचानक से वहां पर छोड़ दिया जाए, तो आपकी सारी हड्डियां चकनाचूर हो जाएंगी। ऐसे में किसी मशीन को भी संबालना काफी ज्यादा मुश्किल हो जाता है। सिर्फ इतना ही नहीं समुद्र का पानी नमकीन होता है। इसकी वजह से वह मेटल को बहुत तेजी से कोरोड करता है यानी उसमें जंग लगती है और इससे भी मशीन में खराबी आने लगती है, जो पूरे रिसर्च को खराब कर देती है।
ओशन सैटेलाइट-
अभी तक वैज्ञानिकों ने जितने भी ओशन सैटेलाइट बनाई हैं, वह सिर्फ सतह से थोड़ी नीचे मौजूद पानी को ही पहचान पाती है। इन सैटेलाइट की मदद से वहां के तापमान का पता लगाया जा सकता है और इन्हीं से पानी के रंग को देखा जा सकता है। जिससे यह पता चलता है कि वहां पर कौन से पेड़-पौधे मौजूद हैं। अगर इससे ज्यादा डीप में यह सैटेलाइट जाती है थोड़ी नीचे मौजूद पानी कोई पहचान पाती है फिर सेटेलाइट की मदद से वहां के तापमान का पता लगाया जा सकता है और पानी के रंग को देखा जा सकता है जिससे यह पता चलता है कि वहां पर कौन से पेड़ पौधे अगर इससे ज्यादा डीप में सैटेलाइट जाती है, तो उनके उत्तर सही नहीं होते या फिर यह सैटेलाइट खुद ही वहां पर फंक्शन करना बंद कर देती हैं। इन्हीं कुछ दिक्कतों की वजह से हम ओशन एक्सप्लोरेशन में आज भी काफी ज्यादा पीछे हैं।
रिसर्च करना काफी ज्यादा मुश्किल-
अगर हम समुद्र में 200 मीटर से ज्यादा नीचे जाते हैं, तो वहां पर सूर्य की रोशनी पूरी तरह से खत्म हो जाती है और बहुत ही गहरा अंधेरा होता है। जिस वजह से वहां पर रिसर्च करना काफी ज्यादा मुश्किल हो जाता है। समुद्र की नीचे वॉटर प्रेशर भी काफी ज़्यादा बढ़ जाता है। अगर आप समुद्र के 200 मीटर से नीचे वाले पॉइंट पर खड़ें हों, तो वहां पर आपके शरीर के उपरी भाग पर उतना ही वज़न होगा, जितना का आपके ऊपर 50 एरोप्लेन रख दिए जाएं तब होगा, तो इससे आप अंदाज़ा लगा सकते हैं, कि वहां पर किसी मशीन और किसी भी यंत्र को भेजना कितना ज्यादा मुश्किल होता होगा। अंतरिक्ष में इंसानों को भेजना काफी ज्यादा आसान है और इसलिए हर 6 महीने में ही अंकरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन पर इंसानों को भेजा जाता है और यहां तक कि हम तो चांद पर भी कदम रख चुके हैं। समुद्र में हमने अभी तक बहुत कम खोज की है, इसके और भी कुछ कारण है, जो शायद ही आपको कहीं देखने को मिलेंगे।
अच्छे से जस्टिफाई-
लेकिन यह भी इस सवाल को बहुत अच्छे से जस्टिफाई करते हैं। आपने यह कई बार सुना होगा, कि वैज्ञानिक पृथ्वी पर ही बैठे-बैठे टेलिस्कोप का इस्तेमाल करके कई अलग-अलग ग्रहों पर मौजूद समुद्रों और उसमें कैसी चीज़ें मौजूद हो सकती हैं, उनका पता लगा लेते हैं।लेकिन ऐसा हम अपनी पृथ्वी पर नहीं कर सकते, इसके लिए हमें या तो टेलीस्कोप को पृथ्वी से काफी दूर भेजना होगा, जो काफी ज्यादा महंगा भी होगा और काफी ज्यादा इन एफिशिएंट यानी प्रभावहीन भी या फिर हमें पृथ्वी को छोड़कर कहीं और जाकर बसना होगा। ताकि वहां से हम पृथ्वी के संदर्भ में नज़र डालें और यह पता लगा पाएं, कि यहां पर कैसाी-कैसी चीज़ें मौजूद हैं। हमारे लिए समुद्र में रिसर्च करना कठिन इसलिए भी हो जाता है, क्योंकि हम समुद्र में ही रहते हुए समुद्र की खोज करने की कोशिश कर रहे हैं।
मल्टीप्लेनेट्री स्पीशीज़-
लेकिन इसके अलावा हमारे पास कोई और ऑप्शन भी नहीं है। इसके अलावा, जो एक और कारण समुद्र के कम खोजे जाने पर निकाला जाता है, वह यह है कि समुद्र की खोज करने पर हमें कुछ ज्यादा हासिल नहीं होगा। जबकि वही रिसर्च हम स्पेस में करते हैं, तो हम आगे चलकर मल्टीप्लेनेट्री स्पीशीज़ बन जाएंगे और हम एक से ज्यादा ग्रहों पर इंसानी सभ्यता को बसा पाएंगे। वहीं अगर इतना ही बजट हम समुद्र की रिसर्च करने पर लगा दें, तो हमें कुछ नए तरह के जीव मिलेंगे या फिर कुछ नए तरह के पेड़-पौधे और अगर यह भी नहीं मिला, तो इतिहास से जुड़ी कुछ चीज़ें, जो हमारे लिए ज़रा भी ज़रुरी नहीं है। हमें इनसे कई सारी चीज़ें जानने और समझने को मिलेंगी।
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एक्प्लोरेशन से कंपेयर-
लेकिन अगर इसे स्पेस एक्प्लोरेशन से कंपेयर किया जाए, तो यह चीटीं के बराबर भी नहीं है और इसलिए अमेरिका जैसे बड़े-बड़े देश स्पेस में रिसर्च करने पर ज़्यादा पैसे लगाते हैं और ऐसे ही समुद्र को कम फंडिंग मिलती है। हालांकि टेक्नोलॉजी के तेज़ी से बढ़ने की वजह से ओशन एक्सफ्लोरेशन पर भी बहुत अच्छे से ध्यान दिया जा रहा है और इसके लिए अलग-अलग टेक्नॉलॉजी को डेवेलप भी किया जा रहा है और हो सकता है कि 20250 तक हम समुद्र के 95 प्रतीशत हिस्से को समझ पाएंगे।
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