Swiss Scientist: आज के समय में जब पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण से जूझ रही है, ऐसे में एक ऐसी खोज सामने आई है, जो इमारतों को सिर्फ रहने की जगह नहीं बल्कि पर्यावरण को शुद्ध करने वाला जीवित संरचना बना सकती है। स्विट्ज़रलैंड के वैज्ञानिकों ने एक क्रांतिकारी निर्माण सामग्री विकसित की है जो हवा में मौजूद कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) को सोखकर वातावरण को साफ करती है। यह न सिर्फ एक वैज्ञानिक उपलब्धि है, बल्कि एक नई सोच है, कि कैसे हमारी इमारतें भी जलवायु संकट से लड़ने में भागीदार बन सकती हैं।
Swiss Scientist सायनोबैक्टीरिया-
यह विशेष निर्माण सामग्री किसी सामान्य ईंट या सीमेंट की तरह नहीं है। इसे एक खास प्रकार की सूक्ष्म जीव, यानी नीले-हरे शैवाल (सायनोबैक्टीरिया) की मदद से बनाया गया है। ये सूक्ष्म जीव प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया के ज़रिए हवा में मौजूद CO₂ को ऑक्सीजन और शर्करा में बदलते हैं। यही प्रक्रिया अब इमारतों की दीवारों में भी होने लगे तो कल्पना कीजिए, हमारी दीवारें सिर्फ ढांचे का हिस्सा नहीं बल्कि एक जीवंत, साँस लेने वाली प्रणाली बन जाएंगी।
Swiss Scientist जलयुक्त जैल के आधार-
इस सामग्री को एक जलयुक्त जैल के आधार पर तैयार किया गया है, जिसे वैज्ञानिकों ने छिद्रदार (पोरस) बनाया है ताकि इसमें प्रकाश, जल और वायु आसानी से प्रवेश कर सकें। इस रचना में मौजूद शैवाल न केवल खुद में CO₂ को संचित करते हैं, बल्कि उसे खनिजों, जैसे चूना पत्थर (लाइमस्टोन), में बदलकर स्थायी रूप से सुरक्षित कर देते हैं। इसका मतलब यह है, कि यह सामग्री एक ओर हवा को साफ करती है, तो दूसरी ओर खुद को भी मजबूत बनाती है।
30 दिन के बाद शैवाल की वृद्धि-
लगभग 400 दिनों तक चली एक प्रयोगशाला जांच में यह देखा गया कि यह सामग्री लगातार CO₂ को अवशोषित करती रही। प्रत्येक ग्राम सामग्री में लगभग 26 मिलीग्राम CO₂ को ठोस खनिज के रूप में संचित किया गया। दिलचस्प बात यह है कि भले ही 30 दिन के बाद शैवाल की वृद्धि धीमी हो जाए, लेकिन खनिज बनने की प्रक्रिया लगातार चलती रहती है, जिससे दीवारों की संरचना और भी सशक्त बनती है।
बाहरी सतहों पर लेप-
वैज्ञानिकों की योजना है. कि इस सामग्री को इमारतों की बाहरी सतहों पर लेप के रूप में इस्तेमाल किया जाए। इससे भवनों की दीवारें खुद-ब-खुद हवा को साफ करने लगेंगी और शहरों में वायुमंडलीय CO₂ का स्तर घटेगा। इटली के वेनिस शहर में एक वास्तुकला प्रदर्शनी में ETH ज्यूरिख के वैज्ञानिकों ने इस सामग्री को पेड़ के तनों की तरह बनाए गए ढांचों में प्रदर्शित किया। अनुमान है कि यह निर्माण सामग्री प्रति वर्ष लगभग 18 किलोग्राम CO₂ सोख सकती है, जो कि 20 साल पुराने एक देवदार वृक्ष के बराबर है।
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प्रकाश संश्लेषण-
इस तकनीक को और अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए वैज्ञानिक प्रयासरत हैं। उनका मानना है कि अगर शैवाल को आनुवंशिक रूप से इस तरह संशोधित किया जाए कि वे अधिक तेज़ी से प्रकाश संश्लेषण करें, तो यह सामग्री और भी ज्यादा CO₂ अवशोषित कर सकती है। साथ ही, पोषण तंत्र को भी और बेहतर बनाने की दिशा में काम चल रहा है ताकि यह सामग्री लंबे समय तक सक्रिय बनी रहे।
यह खोज सिर्फ एक तकनीकी सफलता नहीं है, बल्कि एक नई दिशा है, एक ऐसा भविष्य जहां हमारी इमारतें भी जलवायु परिवर्तन से लड़ने में योगदान देंगी। जहां हम सिर्फ “हरित भवन” नहीं बल्कि “जीवित भवन” बनाएंगे। ऐसा लगता है कि आने वाले समय में घर बनवाते वक्त सिर्फ डिज़ाइन और मजबूती ही नहीं, बल्कि पर्यावरण के प्रति उसका योगदान भी देखा जाएगा।
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