RG Kar Rape Murder Case
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    RG Kar Rape Murder Case: कुछ समय पहले कोलकाता आरजी कर मेडिकल कॉलेज में हुई हत्या और बलात्कार के मामले में संजय रॉय को मौत की सज़ा नहीं सुनाई। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को सजा का ऐलान करते हुए कहा, कि यह दुर्लभ मामलों में से नहीं है। यह फैसला तब आया, जब सीबीआई ने इसे मौत की सजा की मांग के लिए दुर्लभ मामला कहा था। इस मामले ने देशभर में आक्रोश का माहौल बना दिया है। जब पिछले साल 9 अगस्त को 31 वर्षीय डॉक्टर का शव कॉलेज के एग्जाम हॉल में मिला था। उसके बलात्कार और हत्या की पुष्टि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में की गई। संजय रॉय, जो की कोलकाता पुलिस के पूर्व सिविक वॉलिंटियर थे, को 10 अगस्त को गिरफ्तार किया गया था। जज अनिर्बान दास ने इस मामले की सुनवाई के दौरान कहा, कि मैं सोचता हूं कि यह दुर्लभ केस नहीं है।

    क्यों नहीं दी मौत की सज़ा? (RG Kar Rape Murder Case)

    इसलिए आपको मृत्यु तक की सजा दे रहा हूं, उनके मुताबिक यह अपराध कुछ ऐसा नहीं था। जिसमें मृत्युदंड दिए जाने का आधार बनता है। अदालत ने संजय रॉय को भारतीय न्याय संहिता की धाराओं 64 बलात्कार 66 (बलात्कार से मृत्यु का कारण बनने वाली चोट) और 103 हत्या के तहत दोषी पाए हैं। इस फैसले से पीड़िता के परिवार में निराशा छा गई है। क्योंकि उन्होंने सीबीआई की न्यायिक व्यवस्था पर भरोसा किया था। सीबीआई की ओर से वकील ने इस मामले को दुर्लभ बताया और मृत्युदंड की मांग की। उन्होंने कहा कि यह घटना पूरे समाज को हिला देने वाली है।

    डॉक्टर भी सुरक्षित नहीं-

    अगर डॉक्टर भी सुरक्षित नहीं है, तो समाज में विश्वास कैसे बहाल हो सकता है। वहीं अदालत ने निर्दिष्ट किया, कि राज्य को पीड़ित के परिवार को 17 लाख रुपए का मुआवजा देना होगा। जिससे यह साफ होता है, की अदालत सिर्फ सजा का निर्धारण नहीं कर रही, बल्कि न्याय की प्रक्रिया में भी उसकी जिम्मेदारी है। अदालत में संजय राय ने अपनी बेगुनाही का दावा किया और कहा, कि उन्हें झूठे आरोप में फसाया जा रहा है। उनका कहना है, कि मैं बिना किसी कारण के फसाया गया हूं। मैंने कहा था, कि मैं हमेशा रुद्राक्ष की माला पहनता हूं। अगर मैंने अपराध किया होता, तो यह घटना स्थल पर टूट जाती। मुझे बोलने का मौका नहीं दिया गया।

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    फोरेंसिक रिपोर्ट पर भरोसा-

    वहीं अदालत ने फोरेंसिक रिपोर्ट पर भरोसा किया, जिसने घटना स्थल पर संजय रॉय की मौजूदगी का प्रमाण पेश किया और मृत डॉक्टर के शरीर पर उसके डीएनए की पुष्टि की। इस केस ने हर किसी को एक बार फिर से सोचने पर मजबूर कर दिया है, कि क्या भारतीय न्याय प्रणाली सही मायने में न्याय दिला पा रही है। बलात्कार और हत्या जैसे अपराधों के लिए किस प्रकार की सजा होनी चाहिए? इस पर समाज में एक गंभीर चर्चा चल रही है। क्या अदालत का यह फैसला सच में न्याय है? क्या इस प्रकार के मामलों में कठोरता जरूरी है। यह वह सवाल है, जिसका जवाब सिर्फ न्यायपालिका को ही नहीं बल्कि समाज के सभी हिस्सों को देना होगा।

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