Uttarakhand UCC: आज एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए, उत्तराखंड सरकार ने समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) को लागू कर दिया है। इस फैसले के साथ ही उत्तराखंड, गोवा के बाद देश का दूसरा राज्य बन गया है, जहां सभी धर्मों के लोगों के लिए शादी, तलाक, संपत्ति और विरासत से जुड़े कानून एक समान होंगे। यह कदम राज्य में सामाजिक समानता और न्याय को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है। राज्य विधानसभा में करीब एक साल पहले पारित हुए, इस बिल को आज से लागू कर दिया गया है।
Uttarakhand UCC ज़रुरी बदलाव-

यह भारतीय जनता पार्टी के 2022 के विधानसभा चुनाव के प्रमुख वादों में से एक था। नए कानून के तहत, लिव-इन रिलेशनशिप की अनिवार्य रजिस्ट्रेशन से लेकर विवाह की न्यूनतम आयु तक, कई महत्वपूर्ण बदलाव किए गए हैं। नए कानून के मुताबिक, सभी धर्मों में शादी की न्यूनतम उम्र लड़कों के लिए 21 वर्ष और लड़कियों के लिए 18 वर्ष निर्धारित की गई है। इसका मुख्य उद्देश्य युवाओं को शादी से पहले अपनी शिक्षा पूरी करने का अवसर प्रदान करना है।
Uttarakhand UCC कानूनी मान्यता और सुरक्षा-
साथ ही, सभी विवाहों का पंजीकरण अनिवार्य कर दिया गया है, जिससे दंपतियों को कानूनी मान्यता और सुरक्षा मिलेगी। कानून ने बहुविवाह, बाल विवाह और तीन तलाक जैसी प्रथाओं पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया है। हालांकि, अनुसूचित जनजातियों को इस कानून से छूट दी गई है, और वे अपने परंपरागत कानूनों का पालन करना जारी रख सकेंगे। नए कानून में लिव-इन रिलेशनशिप को लेकर कड़े प्रावधान किए गए हैं।
लिव-इन रिलेशनशिप पर नए प्रावधान-

रिश्ते को रजिस्टर नहीं कराने या गलत जानकारी देने पर तीन महीने की जेल, 25,000 रुपये का जुर्माना या दोनों सजाएं हो सकती हैं। 21 साल से कम उम्र के व्यक्तियों को लिव-इन रिलेशनशिप में जाने के लिए माता-पिता की अनुमति आवश्यक होगी।
मुस्लिम समुदाय से जुड़ी प्रथाओं पर बैन-
नई संहिता ने निकाह हलाला और इद्दत जैसी प्रथाओं पर प्रतिबंध लगा दिया है। निकाह हलाला के तहत तलाकशुदा महिला को अपने पूर्व पति से दोबारा शादी करने से पहले किसी अन्य व्यक्ति से विवाह और फिर तलाक लेना पड़ता था। इद्दत के तहत महिला को तलाक या पति की मृत्यु के बाद एक निश्चित अवधि तक प्रतीक्षा करनी पड़ती थी।
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विरासत में समान अधिकार-

नए कानून ने विरासत के मामले में भी क्रांतिकारी बदलाव किए हैं। अब सभी समुदायों के लोगों को संपत्ति में समान अधिकार मिलेंगे। लिव-इन रिलेशनशिप से जन्मे बच्चों को भी कानूनी मान्यता मिलेगी और उन्हें विरासत में बराबर का हक मिलेगा। कानून में बेटे-बेटियों के लिए केवल "संतान" शब्द का प्रयोग किया जाएगा, जिससे लैंगिक भेदभाव समाप्त होगा।
यह कानून उत्तराखंड में सामाजिक-कानूनी व्यवस्था में एक नया अध्याय शुरू करेगा। इससे न केवल कानूनी प्रक्रियाएं सरल होंगी, बल्कि समाज में लैंगिक समानता और न्याय को भी बढ़ावा मिलेगा। हालांकि, इस बदलाव को जमीनी स्तर पर लागू करने में कुछ चुनौतियां आ सकती हैं, लेकिन यह निश्चित रूप से एक प्रगतिशील कदम है।
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