Farrukhabad Burning Alive
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    Farrukhabad Burning Alive: उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद जिले में एक और महिला पर हुए जघन्य अत्याचार की कहानी है, जो दिल दहला देती है। 33 साल की निशा सिंह की कहानी सिर्फ एक न्यूज़ नहीं है, बल्कि उस समाज की तस्वीर है, जहां औरतों को अपनी मर्जी से जीने का हक भी नहीं है। निशा ने सिर्फ एक आदमी से बात करने से मना कर दिया था और इसकी सजा उसे अपनी जान देकर चुकानी पड़ी।

    6 अगस्त को जो घटना हुई, वह किसी भी इंसान की आत्मा को हिला देने वाली है। निशा अपने पिता के घर से डॉक्टर के पास जा रही थी, जब दीपक नाम के एक शख्स ने उसका रास्ता रोका। यह वही व्यक्ति था, जो पिछले दो महीनों से निशा को परेशान कर रहा था और उससे बात करने के लिए दबाव डाल रहा था।

    जब इनकार की सजा मौत बनी-

    निशा ने जब दीपक से बात करने से साफ इनकार कर दिया, तो उसका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया। बहस के दौरान दीपक और उसके दोस्तों ने एक ऐसा काम किया, जिसकी कल्पना करना भी भयावह है। उन्होंने निशा को जिंदा जला दिया। एक महिला, जो सिर्फ अपनी मर्जी से जीना चाहती थी, उसे इस तरह की क्रूर सजा दी गई।

    आग की लपटों में जलती निशा चीखती-चिल्लाती अपना स्कूटर लेकर परिवारिक डॉक्टर के क्लिनिक तक पहुंची। उस समय का दृश्य कितना दर्दनाक रहा होगा, इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। एक औरत जो आग में जल रही हो, फिर भी अपनी जिंदगी बचाने के लिए संघर्ष कर रही हो।

    वरिष्ठ पुलिस अधिकारी संजय कुमार ने बताया, कि पीड़िता के पिता बलराम सिंह की शिकायत के आधार पर मामला दर्ज किया गया है। निशा को पहले स्थानीय अस्पताल में भर्ती कराया गया, फिर लोहिया अस्पताल भेजा गया। वहां से उसे सैफई अस्पताल रेफर किया गया, लेकिन रास्ते में ही उसकी मौत हो गई।

    पिता का दर्द और बेटी की आखिरी पुकार-

    निशा के पिता बलराम सिंह का दर्द शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता। वह बताते हैं, कि डॉक्टर का फोन आया था, कि जल्दी आइए, आपकी बेटी बहुत बुरी तरह जल गई है। जब वह अस्पताल पहुंचे, तो निशा की हालत देखकर उनकी रूह कांप गई।

    वह चिल्ला रही थी, पापा बचाओ, पापा बचाओ। जब मैंने उससे पूछा, कि यह कैसे हुआ तो उसने कहा कि दीपक ने उसे जलाया है। वह उससे बात करने के लिए दबाव डालता था, उससे मिलने के लिए कहता था।

    एक बाप के लिए इससे बड़ी कोई तकलीफ नहीं हो सकती, कि उसकी बेटी उसके सामने तड़प रही हो और वह कुछ भी न कर पाए। निशा की आखिरी आवाज अपने पापा को बचाने के लिए थी, लेकिन अब बहुत देर हो चुकी थी।

    परिवार की चुप्पी का दर्दनाक सच-

    निशा की बहन नीतू सिंह का बयान और भी दिल दहलाने वाला है। वह बताती है, कि उसे इस बारे में पता था, लेकिन उन्होंने माता-पिता को नहीं बताया था। “जब हमने उससे पूछा, तो उसने कहा, कि दीपक ने यह किया है। वह उसे प्रताड़ित करता था। वह उससे बात करने के लिए दबाव डालता था। वह यह नहीं करना चाहती थी। उसने कभी हमारी मां को नहीं बताया। सिर्फ मुझे पता था।”

    निशा के पति अमित चौहान भी इस सच्चाई से अनजान थे। उनका कहना है, “उसने कभी मुझसे शिकायत नहीं की। सबसे बड़ी समस्या यह है, कि उसने कभी शिकायत नहीं की। हमने शाम को बात की थी और सुबह भी (घटना से कुछ घंटे पहले) लेकिन उसने कभी इसका जिक्र नहीं किया।”

    न्याय की मांग और सुरक्षा के सवाल-

    पुलिस ने इस मामले में FIR दर्ज की है और आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए चार टीम बनाई गई हैं। लेकिन सवाल यह है, कि क्या न्याय मिलने से निशा वापस आ जाएगी? क्या उसके परिवार का दर्द कम हो जाएगा?

    यह घटना न सिर्फ फर्रुखाबाद की है, बल्कि पूरे देश की है। यह दिखाता है, कि औरतों की सुरक्षा को लेकर हमारे समाज में कितनी गंभीर समस्या है। एक महिला का अपनी मर्जी से जीना, किसी से बात न करना, यह उसका मौलिक अधिकार है। लेकिन दीपक जैसे लोग इसे अपना अपमान समझते हैं।

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    समाज को आईना दिखाती घटना-

    निशा सिंह की यह दुखद कहानी हमारे समाज को आईना दिखाती है। यह सवाल उठाती है, कि क्या औरतों को सुरक्षित माहौल मिल रहा है? क्या वे अपनी मर्जी से अपनी जिंदगी जी सकती हैं? निशा की मौत सिर्फ एक घटना नहीं है, बल्कि यह उस सोच का नतीजा है, जहां औरतों को पुरुषों की संपत्ति समझा जाता है।

    आज निशा हमारे बीच नहीं है, लेकिन उसकी कहानी हमें यह सिखाती है, कि हमें अपने समाज में बदलाव लाना होगा। हमें यह सुनिश्चित करना होगा, कि कोई और निशा इस तरह की यातना न झेले। महिला सुरक्षा सिर्फ कानून का मसला नहीं है, बल्कि यह हमारी मानसिकता बदलने का मसला है।

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