Diwali Gift Chicken Masala: महाराष्ट्र के पंढरपुर स्थित विठ्ठल मंदिर में काम करने वाले कर्मचारियों को मिले एक अजीब दिवाली उपहार ने भारी विवाद खड़ा कर दिया है। कर्मचारियों को दिवाली के तोहफे के रूप में चिकन मसाला के पैकेट दिए गए, जिसने धार्मिक भावनाओं को गहरा आघात पहुंचाया है। यह घटना सिर्फ एक गलती नहीं, बल्कि धार्मिक मान्यताओं की अनदेखी का एक गंभीर मामला बन गई है। एनडीटीवी की रिपोर्ट की मानें, तो ये उपहार BVG कंपनी द्वारा वितरित किए गए, जो विठ्ठल मंदिर में सुरक्षा गार्ड और अन्य कर्मचारियों की आउटसोर्स सेवाएं प्रदान करती है।
कंपनी के इस फैसले ने सोशल मीडिया पर तूफान खड़ा कर दिया है। लोग इस बात से नाराज हैं, कि एक ऐसे पवित्र स्थान पर, जहां शाकाहार को सर्वोच्च महत्व दिया जाता है, वहां के कर्मचारियों को मांसाहारी व्यंजन से जुड़ा उत्पाद कैसे दिया जा सकता है। यह घटना धार्मिक संवेदनशीलता और कॉर्पोरेट जिम्मेदारी के बीच के अंतर को उजागर करती है। कई भक्तों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस घटना को धार्मिक मान्यताओं का अपमान बताया है।
वारकरी संप्रदाय और शाकाहार का गहरा नाता-
पंढरपुर का विठ्ठल मंदिर वारकरी संप्रदाय का केंद्र है और देश भर के लाखों भक्तों द्वारा पूजा जाता है। वारकरी संप्रदाय के पवित्र सिद्धांतों में से एक शाकाहार का महत्व है। वारकरी संप्रदाय के विठ्ठल भक्तों के लिए शाकाहारी भोजन को सर्वश्रेष्ठ आहार माना जाता है। यह केवल एक खान-पान की आदत नहीं, बल्कि उनकी आध्यात्मिक साधना का एक अभिन्न हिस्सा है।
वारकरी समुदाय के लोग मांसाहार और मद्यपान को अपनी जीवनशैली से पूरी तरह दूर रखते हैं। यह उनकी धार्मिक पहचान और आस्था का मूल है। संत ज्ञानेश्वर, संत तुकाराम और संत नामदेव जैसे महान संतों ने वारकरी परंपरा को स्थापित किया और शाकाहार को एक आध्यात्मिक जीवन का आधार बताया। इसलिए स्वाभाविक रूप से यह विवाद उन लोगों के बीच भड़का है, जो इस कृत्य को कंपनी द्वारा उनकी धार्मिक मान्यताओं का उल्लंघन मानते हैं। कई लोगों ने इसे जानबूझकर की गई अनदेखी करार दिया है।
कंपनी की असंवेदनशीलता पर सवाल-
यह घटना कॉर्पोरेट कंपनियों की सांस्कृतिक और धार्मिक संवेदनशीलता की कमी को उजागर करती है। BVG कंपनी, जो एक धार्मिक स्थल पर सेवाएं प्रदान कर रही है, उसे वहां की परंपराओं और मान्यताओं का सम्मान करना चाहिए था। कर्मचारियों को दिवाली का तोहफा देने से पहले यह सोचना जरूरी था, कि वे किस तरह के धार्मिक वातावरण में काम कर रहे हैं। दिवाली जैसे पवित्र त्योहार पर ऐसा उपहार देना न केवल असंवेदनशीलता दिखाता है, बल्कि धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाता है।
कई सोशल मीडिया यूजर्स ने सवाल उठाया है, कि क्या कंपनी के पास कोई सांस्कृतिक प्रशिक्षण या दिशानिर्देश नहीं हैं। एक मंदिर परिसर में काम करने वाले कर्मचारियों के लिए ऐसे उपहार का चयन करना गंभीर लापरवाही का संकेत है। इस घटना के बाद मंदिर प्रशासन से भी जवाब मांगे जा रहे हैं, कि वे अपने आउटसोर्स कर्मचारियों के लिए किस तरह की कंपनियों को चुनते हैं और उन पर कैसी निगरानी रखते हैं।
पंढरपुर विठ्ठल मंदिर का ऐतिहासिक महत्व-
पंढरपुर का विठ्ठल मंदिर या विठोबा मंदिर, जो पुणे में स्थित है, 9वीं और 10वीं शताब्दी के बीच होयसल वंश द्वारा बनाया गया था। यह मंदिर चंद्रभागा नदी के तट पर स्थित है और वैष्णव परंपरा का एक महत्वपूर्ण केंद्र है। यहां हर साल लाखों भक्त दर्शन के लिए आते हैं और वारी यात्रा का आयोजन होता है, जो भारत की सबसे बड़ी धार्मिक यात्राओं में से एक है।
विठ्ठल शब्द की उत्पत्ति के बारे में कई सिद्धांत हैं, लेकिन स्थानीय लोककथाओं के अनुसार यह शब्द विट से आया है। जिसका अर्थ ईंट है और ठल का अर्थ स्थल या खड़ा होना है। पंढरपुर में भगवान विठ्ठल को एक काले रंग के युवा बालक के रूप में दर्शाया गया है, जिनके दोनों हाथ कमर पर हैं और वे एक ईंट पर खड़े हैं। यह मुद्रा अत्यंत अद्वितीय और प्रतीकात्मक है।
ये भी पढ़ें- Vande Bharat Sleeper की पहली तस्वीरें आईं सामने, देखिए हवाई जहाज जैसा दिखता है इंटीरियर
मंदिर का समृद्ध इतिहास-
इतिहासकारों का मानना है कि पुंडलिक, जिन्हें कई लोग मंदिर के मुख्य प्रेरणास्रोत मानते हैं, ने होयसल राजा विष्णुवर्धन 1108 से 1152 ईस्वी को पंढरपुर में मंदिर बनाने के लिए कहा था। वर्षों में मंदिर में कई परतें जोड़ी गई हैं। अंतिम बड़ा जीर्णोद्धार 17वीं शताब्दी में हुआ था, जब पहले का मंदिर मुगलों द्वारा क्षतिग्रस्त कर दिया गया था। इन सभी कठिनाइयों के बावजूद मंदिर की आस्था और परंपरा आज भी उतनी ही मजबूत है।
ये भी पढ़ें- इस शहर में पटाखे समेत सिंगल यूज़ प्लास्टिक पर लगा पूरी तरह से बैन, जानिए डिटेल
यह मंदिर महाराष्ट्र की सांस्कृतिक पहचान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। हर साल आषाढ़ी एकादशी और कार्तिकी एकादशी पर यहां विशाल मेला लगता है। लाखों वारकरी भक्त पैदल यात्रा करके यहां पहुंचते हैं। ऐसे पवित्र और ऐतिहासिक स्थल पर धार्मिक भावनाओं का सम्मान करना अत्यंत आवश्यक है।