Gram Panchayat Corruption
    Photo Source - Google

    Gram Panchayat Corruption: मध्य प्रदेश के शहडोल जिले की ग्राम पंचायतें एक बार फिर से अपने गणित के कमाल के लिए चर्चा में आ गई हैं। इस बार विवाद का केंद्र है, एक साधारण सी ईंट, जिसकी कीमत इन पंचायतों में आसमान छू रही है। जब आम आदमी 5-6 रुपये में एक ईंट खरीदता है, तो यहां सरकारी पैसे से 50 रुपये में एक ईंट खरीदी जा रही है।

    बुधार ब्लॉक की भतिया ग्राम पंचायत का एक बिल वायरल हो गया है, जिसमें 2500 ईंटों के लिए 1.25 लाख रुपये का भुगतान किया गया है। यह मतलब हुआ, कि हर ईंट की कीमत 50 रुपये रखी गई है, जो सामान्य दर से लगभग दस गुना ज्यादा है। यह सुनकर आम लोग हैरान रह गए हैं, कि आखिर यह कैसा गणित है।

    पेरीबहरा गांव का रहस्यमय व्यापारी-

    इस ईंट खरीदारी का बिल पेरीबहरा गांव के चेतन प्रसाद कुशवाहा के नाम से बना है। दिलचस्प बात यह है, कि यह सप्लाई बिल पतेरा टोला में आंगनवाड़ी भवन की चारदीवारी बनाने के लिए जारी किया गया है। इस बिल पर भतिया गांव के सरपंच और सचिव दोनों के हस्ताक्षर भी मौजूद हैं। यह बात और भी चिंताजनक बना देती है, कि यह कोई व्यक्तिगत गलती नहीं बल्कि एक संस्थागत समस्या लगती है।

    यह पहली बार नहीं है, जब शहडोल जिले की पंचायतें अपने अजीबोगरीब बिलों के लिए सुर्खियों में आई हैं। पिछले कुछ महीनों में यहां कई ऐसे मामले सामने आए हैं, जो आम लोगों की समझ से परे हैं।

    कुदरी पंचायत का फोटोकॉपी कारनामा-

    कुछ हफ्ते पहले ही कुदरी ग्राम पंचायत की एक और अजीबोगरीब कहानी सामने आई थी। यहां केवल दो पन्नों की फोटोकॉपी के लिए 4000 रुपये का बिल बनाया गया था। यह सुनकर लोगों को लगा, कि शायद यह कोई सोने-चांदी के पन्ने हों या फिर किसी खास तकनीक से बने हों। लेकिन वास्तविकता यह थी, कि यह सामान्य कागज की फोटोकॉपी थी, जिसकी असली कीमत 2-4 रुपये से ज्यादा नहीं होनी चाहिए थी। इस तरह के बिल देखकर आम जनता में गुस्सा और निराशा दोनों देखने को मिली है। लोग कह रहे हैं, कि यह उनके टैक्स का पैसा है, जो इस तरह बर्बाद किया जा रहा है।

    भधवाही गांव का ड्राई फ्रूट्स का त्योहार-

    जुलाई महीने में भधवाही गांव में जल गंगा संवर्धन अभियान के नाम पर हुई, खर्च की कहानी भी कम दिलचस्प नहीं है। बिलों के अनुसार, केवल एक घंटे के इस कार्यक्रम में 14 किलो ड्राई फ्रूट्स, 30 किलो नमकीन और 9 किलो फल खर्च किए गए। यह मात्रा इतनी ज्यादा है, कि लगता है, जैसे कोई बड़ा त्योहार मनाया गया हो।

    एक घंटे के कार्यक्रम में इतना सामान खपाना प्रैक्टिकली असंभव लगता है। यह सवाल उठता है, कि आखिर यह सामान गया कहां या फिर यह केवल कागजों पर ही खरीदा गया था।

    दुकानों की अजीबोगरीब कहानियां-

    इन बिलों से जुड़ी दुकानों की कहानियां और भी रोचक हैं। एक किराना दुकान जो बिल के अनुसार काजू-बादाम की आपूर्ति करती है, वास्तविकता में एक छोटी सी दुकान निकली, जिसके पास न तो बिल बुक है, न जीएसटी नंबर है और न ही एक किलो ड्राई फ्रूट्स का स्टॉक है। यह बात सामने आने के बाद लोगों में और भी ज्यादा गुस्सा देखने को मिला।

    एक और मजेदार मामला यह सामने आया, कि घी और फलों का बिल उस दुकान से आया जो वास्तव में रेत, बजरी और ईंटों का व्यापार करती है। यह देखकर लगता है, कि बिल बनाने वाले लोगों ने कोई तैयारी ही नहीं की थी।

    मऊगंज जिले का 10 लाख का कारनामा-

    जब ड्राई फ्रूट्स घोटाले की आवाज धीमी होने लगी थी, तो मऊगंज जिले ने एक नया अध्याय जोड़ दिया। यहां भी जल गंगा संवर्धन अभियान के नाम पर केवल 40 मिनट के कार्यक्रम की लागत 10 लाख रुपये से ज्यादा आई। यह रकम इतनी बड़ी है, कि इसमें एक छोटी सी शादी आराम से हो सकती है।

    सभी बिल एक रहस्यमय प्रदीप एंटरप्राइजेज के नाम से बने हैं। इन बिलों में किराने का सामान से लेकर तंबू, मिठाइयां और यहां तक कि गद्दे और चादरें भी शामिल हैं। सबसे हैरान करने वाली बात यह है, कि ये गद्दे-चादरें एक इलेक्ट्रॉनिक्स की दुकान से किराए पर लिए गए बताए गए हैं।

    कलेक्टर ने मानी समस्या-

    शहडोल के कलेक्टर डॉ केदार सिंह ने स्वीकार किया है, कि कुछ तो गड़बड़ लग रही है। उन्होंने क्लस्टर स्तर के अधिकारियों को निर्देश दिया है, कि वे रोजाना 10-12 पंचायतों का निरीक्षण करें और यह जांच करें, कि ऐसे बिल लापरवाही की वजह से हैं या फिर जानबूझकर धोखाधड़ी की गई है।

    ये भी पढ़ें- इंदौर की श्रद्धा ने रचाई जब वी मेट जैसी कहानी, रतलाम स्टेशन पर मिला प्यार

    यह एक अच्छी शुरुआत है, लेकिन सवाल यह है, कि क्या वास्तव में कोई कार्रवाई होगी या फिर यह भी दिखावे की राजनीति का हिस्सा है। आम जनता का भरोसा सरकारी व्यवस्था से उठता जा रहा है।

    जनता का गुस्सा और सरकार की चुनौती-

    इन सभी मामलों को देखकर आम जनता में भारी नाराजगी है। लोग कह रहे हैं, कि यह उनका हक छीना जा रहा है। विकास के नाम पर मिलने वाले पैसे का दुरुपयोग हो रहा है, जबकि गांवों में बुनियादी सुविधाओं की कमी है।

    ये भी पढ़ें- जानिए कौन हैं Ankur Bajaj? मां को दिल का दौरा पड़ने के बावजूद 6 घंटे सर्जरी कर बचाई 3 साल के बच्चे की जान