Bhool Chuk Maaf Review: फिल्म ‘भूल चुक माफ’ में वो सब कुछ है, जो एक बढ़िया बॉलीवुड मसाला फिल्म में होना चाहिए — टाइम लूप का यूनिक कॉन्सेप्ट, एक प्रेम कहानी, आस्था की गहराई, और राजकुमार राव का देसी ह्यूमर। लेकिन कागज़ पर सही दिखने वाली ये कहानी परदे पर आते-आते भटक जाती है। आज के दर्शकों के पास जब वर्ल्ड सिनेमा का एक्सेस है, तो उन्हें किसी भी स्तर पर कमजोर स्क्रिप्ट, फीका रोमांस और जेंडर बायस कंटेंट पेश नहीं किया जा सकता।
Bhool Chuk Maaf Review टाइम लूप नया है, लेकिन स्क्रिप्ट में लूप हो गए-
द इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, फिल्म की शुरुआत ही काफी धीमी है। जिस कॉन्फ्लिक्ट को ट्रेलर पहले ही रिवील कर चुका था, उसे फिल्म में सेटअप करने में एक घंटा लग जाता है। रंजन तिवारी (राजकुमार राव) और तितली (वामीका गब्बी) एक-दूसरे से प्यार करते हैं और शादी करना चाहते हैं। लेकिन लड़की के पिता की शर्त है कि रंजन दो महीने में सरकारी नौकरी पा ले। कहानी आगे बढ़ती है — जुगाड़, रिश्वत, और फिर एक मंदिर में किया गया वादा।
जब आखिरकार रंजन को नौकरी मिलती है, तभी वह एक टाइम लूप में फंस जाता है — अपनी शादी से ठीक एक दिन पहले। अब उसकी कोशिश है कि वह इस लूप से निकले, वरना शादी का दिन कभी आएगा ही नहीं।
Bhool Chuk Maaf review प्रेम कहानी में न केमिस्ट्री है, न लॉजिक-
समस्या यह है कि इस लव स्टोरी में न दिल की गहराई है, न कोई इमोशनल कनेक्शन। तितली को रंजन से कितना प्यार है, ये कभी साफ नहीं होता। न कोई रोमांटिक मोमेंट्स, न कोई ऐसा डायलॉग जो इन दोनों के प्यार को खास बनाता हो। उल्टा, फिल्म के कई हिस्सों में तितली का बिहेवियर ओवरएक्टिंग की हदें पार कर देता है — जैसे कोई जिद्दी बच्ची हो जो बस चिल्लाए जा रही हो।
एक पढ़ी-लिखी, आत्मनिर्भर लड़की सिर्फ एक बेरोजगार प्रेमी के लिए अपनी माँ के गहने बेचने को तैयार है — और उसकी जिंदगी का बस एक ही मकसद है: उससे शादी करना। आज के भारत की लड़कियाँ इससे कहीं ज्यादा चाहती हैं — करियर, स्वतंत्रता और अपने फैसले लेने का अधिकार।
राजकुमार राव की परफॉर्मेंस दमदार, लेकिन कहानी में दम नहीं-
राजकुमार राव हमेशा की तरह ईमानदार और फनी हैं। उनकी परफॉर्मेंस में जो मासूमियत और स्ट्रगल है, वो दिल को छूता है। लेकिन जब स्क्रिप्ट ही लचर हो, डायलॉग्स भटके हुए हों, और निर्देशन बिखरा हुआ लगे, तो एक्टिंग भी बहुत कुछ नहीं बचा सकती।
फिल्म की सबसे बड़ी खामी उसकी सोच में छिपी है। महिला किरदारों को लेकर इसमें कई बार ऐसे डायलॉग बोले गए हैं जो सीधे-सीधे मिसोजिनिस्टिक हैं। "बच्चा पैदा करना दुनिया का सबसे आसान काम है…" जैसे डायलॉग्स फिल्म में दोहराए गए हैं, जो आज के दौर में ना सिर्फ अजीब लगते हैं, बल्कि चौंकाते भी हैं।
ये भी पढ़ें- Spider Man 4 में कौन होगा विलेन? यहां जानें पीटर पार्कर को किन मुश्किलों का करना होगा सामना
सिनेमा को दर्शकों के साथ आगे बढ़ना होगा-
‘भूल चुक माफ’ जैसी फिल्में एक सबक हैं कि अब वक्त आ गया है जब बॉलीवुड को अपनी कहानियों पर फिर से सोचने की जरूरत है। दर्शक अब सिर्फ रंग-बिरंगे सेट्स, क्रिंग रोमांस और आउटडेटेड सोच पर नहीं टिके रहेंगे। उन्हें चाहिए रियल कहानियां, रिलेटेबल इमोशंस और रिस्पॉन्सिबल मैसेजिंग।
आस्था, प्रेम और टाइम लूप — तीनों मिलकर एक शक्तिशाली फिल्म बना सकते थे। लेकिन ‘भूल चुक माफ’ इन तीनों को सही से मिक्स नहीं कर पाई। अब सिनेमा को बदलना होगा, क्योंकि दर्शक अब कल में नहीं अटके हैं।
ये भी पढ़ें- Deepika Padukone क्यों हुईं संदीप रेड्डी वांगा की फिल्म स्पिरिट से बाहर? यहां जानें क्या है पूरा मामला