IAS Arti Dogra: आज के जमाने में जब लोग बाहरी दिखावे से किसी को परखते हैं, आरती डोगरा की कहानी पढ़ाई-लिखाई की ज]बरदस्त ताकत दिखाती है। केवल साढ़े तीन फुट की लंबाई के साथ, उन्होंने सबकी सोच को बदल दिया है और साबित किया है, कि दिमाग का कद और मजबूत इरादे किसी भी शारीरिक कमी से कहीं ज्यादा बड़े होते हैं।
आरती डोगरा 2006 बैच की राजस्थान कैडर की आईएएस अधिकारी हैं, जिन्होंने पहले ही प्रयास में यूपीएससी में 56वीं रैंक हासिल की थी। उनका सफर सिर्फ मुसीबतों को झेलने की दास्तान नहीं है, बल्कि यह मिसाल है कि कैसे एक पक्की नींव बनाकर देश की सबसे कठिन परीक्षा को पास किया जा सकता है।
घर का माहौल-
देहरादून में कर्नल राजेंद्र डोगरा और स्कूल प्रिंसिपल कुमकुम डोगरा के घर में पैदा हुई आरती का पालन-पोषण सीखने, धैर्य और आत्मविश्वास के माहौल में हुआ। उनके माँ-बाप ने कभी भी उनकी शारीरिक बनावट को उनके सपनों की राह में रुकावट नहीं बनने दिया। उल्टे, उन्होंने हमेशा आरती को हिम्मत दी, कि वह पढ़ाई में तरक्की करे, हर काम में पूरे दिल से हिस्सा ले और बिना किसी झिझक के बड़े सपने देखे।
कर्नल डोगरा की सख्त फौजी पृष्ठभूमि और श्रीमती कुमकुम के शिक्षा जगत के तजुर्बे ने मिलकर आरती में वह हौसला भरा, जो आगे चलकर उनकी सफलता का राज़ बना। घर में हमेशा यह माहौल रहा, कि असली ताकत शारीरिक बनावट में नहीं, बल्कि दिमाग की तेज़ी और दिल की मजबूती में होती है।
शुरुआती संघर्ष-
स्कूल और कॉलेज के दिनों में आरती को अपनी कद-काठी की वजह से काफी परेशानी झेलनी पड़ी। कई बार लोग उनका मजाक भी बनाते थे। लेकिन आरती ने इन सब बातों को दिल पर नहीं लिया और अपनी पढ़ाई पर ध्यान लगाया। उन्होंने हमेशा से ही अपनी किताबों में खुद को खो दिया और ज्ञान को अपना सबसे बड़ा हथियार बनाया।
स्कूल के दिनों से ही आरती के शिक्षक उनकी तेज़ बुद्धि और मेहनत की तारीफ करते थे। वह हमेशा कक्षा में आगे रहती थीं और अपने सहपाठियों के लिए एक मिसाल बनती गईं। धीरे-धीरे लोगों की नज़र में आरती की छवि एक होशियार छात्रा की बनती गई।
यूपीएससी की तैयारी-
दिल्ली विश्वविद्यालय से अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद आरती ने यूपीएससी की तैयारी शुरू की। यह वो समय था, जब उन्होंने अपनी सारी ऊर्जा और ध्यान को एक ही लक्ष्य पर लगाया। सुबह से शाम तक पढ़ाई, दोहराव और अभ्यास परीक्षाओं में खुद को व्यस्त रखा।
आरती की तैयारी की रणनीति बहुत व्यवस्थित थी। उन्होंने हर विषय को गहराई से समझने पर ध्यान दिया और समसामयिक घटनाओं को भी गंभीरता से लिया। नकली परीक्षाओं के जरिए अपनी कमियों को पहचानकर उन पर काम किया। उनकी मेहनत और लगन देखकर परिवारजन भी उनका पूरा साथ देते रहे।
पहली कोशिश में कामयाबी-
आरती ने अपने पहले ही प्रयास में यूपीएससी को पास करके 56वीं रैंक हासिल की। यह उन सबके लिए करारा जवाब था, जिन्होंने कभी उनकी शारीरिक बनावट की वजह से उनकी काबिलियत पर सवाल खड़े किए थे। उनकी सफलता ने यह साबित कर दिया, कि यूपीएससी जैसी कठिन परीक्षा में सफलता पाने के लिए शारीरिक रूप-रंग नहीं, बल्कि दिमागी शक्ति और कड़ी मेहनत की जरूरत होती है।
नतीजा आने पर आरती के घर में खुशी का माहौल था। माता-पिता की आंखों में गर्व के आंसू थे। उनके शिक्षकों और दोस्तों ने भी उनकी इस उपलब्धि की जमकर तारीफ की। आरती ने अपनी सफलता का श्रेय अपने माता-पिता के सहयोग और अपनी लगातार मेहनत को दिया।
सरकारी सेवा में योगदान-
आईएएस बनने के बाद आरती ने राजस्थान में कई महत्वपूर्ण पदों पर काम किया है। वे अजमेर में कलेक्टर रह चुकी हैं और वर्तमान में राजस्थान सरकार में विशेष सचिव के रूप में कार्यरत हैं। हर जगह उन्होंने अपनी काबिलियत का लोहा मनवाया है और लोगों की समस्याओं को हल करने में अपना पूरा योगदान दिया है।
प्रशासनिक अधिकारी के रूप में आरती का नजरिया हमेशा जनहितैषी रहा है। वे खेत-खलिहान में जाकर लोगों की मुसीबतों को समझती हैं और उनके व्यावहारिक समाधान निकालने की कोशिश करती हैं। उनका मानना है कि एक आईएएस अधिकारी की सबसे बड़ी जिम्मेदारी जनसेवा करना है।
समाज के लिए प्रेरणा-
आरती डोगरा की कहानी का सबसे बड़ा संदेश यह है, कि असली सीमाएं सिर्फ हमारे दिमाग में होती हैं। उन्होंने अपनी यात्रा के जरिए यह साबित किया है, कि जब बड़े सपने देखने का जुनून सही पढ़ाई और लगातार कोशिश के साथ मिल जाता है, तो कोई भी रुकावट ऐसी नहीं जिसे पार न किया जा सके।
उनकी कहानी उन तमाम नौजवानों के लिए उम्मीद की किरण है जो किसी भी तरह की शारीरिक या सामाजिक बाधाओं के कारण अपने सपनों को पूरा करने से हिचकिचाते हैं। आरती की मिसाल दिखाती है कि सफलता सिर्फ शारीरिक खूबियों पर निर्भर नहीं करती, बल्कि मानसिक मजबूती, पढ़ाई की पक्की बुनियाद, और कभी हार न मानने वाले रवैये पर टिकी होती है।
पढ़ाई की ताकत-
आरती की यात्रा शिक्षा की उस अद्भुत शक्ति को दिखाती है, जो सपनों को वास्तविकता में बदल देती है। उनके केस में पढ़ाई महज़ किताबों का रटना नहीं था, बल्कि एक संपूर्ण विकास की प्रक्रिया थी, जिसने उन्हें जिंदगी के हर पहलू में भरोसे से भरपूर बनाया।
ज्ञान, अनुशासन और सोची-समझी तैयारी का मेल आरती के जीवन में वह जादू करता गया, जो अंततः उन्हें हिंदुस्तान के सबसे मुश्किल क्षेत्र में सफलता दिलाने वाला था। उनकी कहानी साबित करती है कि सही शिक्षा और मजबूत मानसिकता के साथ कोई भी इंसान अपनी परिस्थितियों से बड़ा बन सकता है।
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आज की पीढ़ी के लिए सबक-
आरती डोगरा की कहानी आज के युवाओं के लिए एक शक्तिशाली याददाश्त है, कि असली सफलता शारीरिक दिखावे या समाज की उम्मीदों से नहीं, बल्कि बौद्धिक क्षमता, कड़ी मेहनत और अटूट दृढ़ता से मिलती है। उनकी यात्रा बताती है, कि शिक्षा केवल डिग्री हासिल करने का माध्यम नहीं है, बल्कि व्यक्तित्व को बदलने और समाज में सार्थक योगदान देने का साधन है।
उनकी जिंदगी यह भी सिखाती है, कि माता-पिता का सहयोग और परिवार का प्रोत्साहन बच्चे के सपनों को पूरा करने में कितना महत्वपूर्ण रोल अदा करता है। आरती के माता-पिता ने कभी भी उनकी शारीरिक कमी को उनकी कमजोरी नहीं बनने दिया, बल्कि उसे एक चुनौती मानकर और भी मजबूत बनाया।
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