Advocates Amendment Bill 2023
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    Advocates Amendment Bill 2023: हाल ही में न्याय व्यवस्था में सुधार के लिए सरकार द्वारा एक अहम कदम उठाया गया है, विधायक 2023 को संसद द्वारा पास कर दिया गया है। इस विधेयक को राज्यसभा में संसद के पिछले सत्र में 3 अगस्त को पास कर दिया था। जबकि लोकसभा से उसे सोमवार 4 दिसंबर को मंजूरी मिली है। सरकार चाहती है की अदालत परिसरों में किसी भी दलाल का नामों-निशान मिट जाए। इसके पीछे सरकार की सोच है कि कानूनी मामले में फंसे लोग कोर्ट कचहरी के चक्कर से यूं ही परेशान रहते हैं और ऊपर से वह दलालों के शिकंजे में फंस जाते हैं, तो न्याय पाने की उनकी मुश्किलें और बढ़ जाती है।

    एडवोकेट बिल 2023-

    ऐसे में अदालत की चार दिवारी को दलाल मुक्त करने के लिए सरकार ने एडवोकेट बिल 2023 लाया और अब उसे संसद में दोनों सदनों से मंजूरी मिल गई है। एक बार राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के हस्ताक्षर होने के बाद से यह विधेयक कानून के रूप में पारित किया जाएगा। 1879 को निरस्त करने और अधिवक्ता अधिनियम 1961 में संशोधन करने के निर्णय लिए गए हैं। विधेयक में भी कहा गया कि सरकार पुराने और बेकार हो चुके।

    एडवोकेट एक्ट 1961 में संशोधन करने का फैसला-

    आजादी से पहले के कानून को हटाने की नीति के बारे में काउंसलिंग ऑफ इंडिया के साथ मिलकर लीगल प्रैक्टिशनर्स एक्ट 1879 को हटाने और एडवोकेट एक्ट 1961 में संशोधन करने का फैसला लिया है। इसके लिए एक्ट 1879 की धारा 36 को एडवोकेट एक्ट 1961 में शामिल किया जाएगा। इससे कानून की किताबों में अनावश्यक कानून की संख्या को खत्म कर दिया जाएगा, जिसकी वजह से वकालत को सिर्फ एक कानूनी एडवोकेट एक्ट 1961 के तहत नियमित करने में मदद मिलेगी।

    दलाल की पहचान-

    कानून की नजर में दलाल वह लोग हैं, जो किसी कानून से जुड़े कामकाज में किसी वकील को काम दिलाने के बदले में वकील से या उस काम में रुचि रखने वाले व्यक्तियों से पैसा ले लेते हैं या फिर जो इस काम के लिए अक्सर सिविल या क्रिमिनल कोर्ट के आसपास रिवेन्यू ऑफिस लैंडिंग स्टेट, रेलवे स्टेशन, लॉन्चिंग प्लेस या अन्य सार्वजनिक स्थानों पर घूमते रहते हैं।

    व्यक्ति दलाल कब नहीं-

    किसी भी व्यक्ति को दलाल तब माना जाएगा, जब वह किसी वकील को पैसों के लिए काम दिलाने में लगा हो और या फिर वह इस काम के लिए वकील से ही पैसे लेता हो। अगर इनमें से कुछ आपको नहीं दिखता है तो वह व्यक्ति दलाल नहीं कहलाएगा। अगर कोई मुफ्त में किसी वकील से बात करने की सलाह देता है या मुफ्त में किसी वकील को काम दिलाता है तो वह दलाल नहीं है, वह तभी दलाल बनेगा जब वह इस काम के लिए पैसे लेगा।

    दलालों की सूची में नाम-

    अगर किसी व्यक्ति पर ऐसा संदेह है तो आप उसका नाम दलालों की सूची में डलवाने की प्रक्रिया को शुरू कर सकते हैं। इसके लिए दलाल की सूची बनाने और प्रकाशित करने के लिए एडवोकेट एक्ट 1971 के सत्र 45ए के तहत कोई भी प्राधिकरण दलाल होने या फिर संदिग्ध व्यक्ति का नाम किसी अधीनस्थ न्यायालय को भेज सकता है। उसमें न्यायालय को आदेश दे सकता है कि ऐसे व्यक्तियों से संबंध का कारण बताने का अवसर देने की भी जांच के भी आदेश दिए जाएंगे। प्राधिकरण द्वारा ऐसे व्यक्ति का नाम रिकॉर्ड किया जाएगा, जिसके आचरण से न्यायालय संतुष्ट हुआ है। इसके बाद अथॉरिटी द्वारा किसी व्यक्ति का नाम दलालों की सूची में शामिल किया जा सकता है।

    व्यक्ति की पहचान का प्रमाण-

    किसी भी रिवेन्यू ऑफिस या कोर्ट में लीगल प्रोफेशनल के रूप में प्रेक्टिस करने के हकदार व्यक्तियों के संघ की ओर से विशेष रूप से बुलाए गए बैठक में उपस्थित सदस्यों की बहुमत द्वारा किसी व्यक्ति को दलाल घोषित करने या फिर नहीं करने के प्रस्ताव पारित किया जाएगा। इस उपधारा का उद्देश्यों ऐसे व्यक्ति की पहचान का प्रमाण होगा। किसी व्यक्ति का नाम किसी ऐसी सूची में तब तक शामिल नहीं होगा, जब तक शामिल किए जाने वाले व्यक्ति के खिलाफ कोई कारण बताने का अवसर न मिले। दलालों की ऐसी सूची के प्रति हर उच्च न्यायालय में एक प्रति टांग कर रखी जाएगी, जिससे वह संबंधित है।

    शीतकाल सत्र का पहला विधेयक-

    यह विधेयक सोमवार से शुरू हुए शीतकाल सत्र में संसद के निचले सदन द्वारा पारित किया गया पहला विधेयक था। लोकसभा के विधेयक पर मंत्री अर्जुन राम मेघवाल और विस्तृत चर्चा के जवाब के बाद इसे स्वीकृति प्रदान की गई। विधायक में प्रावधान है कि प्रत्येक हाई कोर्ट और जिला जज दलालों की सूची बनाकर उन्हें प्रकाशित कर सकते हैं, जिससे कि लोग उनसे सावधान रहें। लोकसभा में विधेयक पर चर्चा जवाब देते हुए मेघवाल का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने तय किया है कि वह उन औपचारिक औपनिवेशिक कानून को निरस्त कर देगी जो इस्तेमाल के लायक नहीं है।

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    1486 औपनिवेशिक कानून समाप्त-

    उनका कहना है कि मौजूदा सरकार ने 1486 औपनिवेशिक कानून समाप्त किए हैं, जबकि सरकार के 10 साल के कार्यकाल में एक भी ऐसा कानून खत्म नहीं किया गय। कांग्रेस सांसद कीर्ति का कहना है कि छोटे मोटे दलालों के खिलाफ पहल करने के साथ ही केंद्र को बड़ी मछलियों को पकड़ने के लिए भी प्रावधान करना चाहिए। उनका कहना है कि कांग्रेस इस विधेयक के समर्थन में है। लेकिन जटिल सामाजिक असमानताओं और विविध प्रक्रियाओं की वजह से दलाल पैदा होते हैं।

    अनपढ़ और अशिक्षित लोग-

    भाजपा सांसद अंबिका पाल का कहना है कि अदालत में दलालों के चंगुल में सबसे ज्यादा गांव के अनपढ़ और अशिक्षित लोग फंस जाते हैं। उनका कहना है कि जब प्रधानमंत्री ने स्वच्छता अभियान चलाया है तो न्यायपालिका में भी इस तरह का ही स्वच्छता अभियान चलाने की जरूरत है। उनका कहना है कि विधेयक को दलाल परिसरों में दलालों की पहचान करने और उनके खिलाफ कार्यवाही करने में यह एक ऐतिहासिक कदम है।

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