Delhi Tandoor Ban
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    Delhi Tandoor Ban: दिल्ली की हवा एक बार फिर जहरीली हो चुकी है। कई इलाकों में एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) ‘सीवियर प्लस’ श्रेणी में पहुंच गया है। चारों तरफ धुंध की मोटी चादर छाई हुई है, जिससे न सिर्फ विज़िबिलिटी कम हो गई है, बल्कि लोगों की आंखों में जलन, सांस लेने में तकलीफ और फ्लाइट ऑपरेशंस पर भी असर पड़ रहा है। इसी बीच, वायु प्रदूषण से निपटने के लिए दिल्ली सरकार का एक फैसला चर्चा के केंद्र में आ गया है, तंदूर पर बैन।

    तंदूर पर बैन आदेश क्या है?

    दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (DPCC) ने पिछले हफ्ते आदेश जारी करते हुए कहा, कि राजधानी के सभी होटल, रेस्टोरेंट और खुले ढाबों में कोयला और लकड़ी से चलने वाले तंदूरों का इस्तेमाल तुरंत बंद किया जाए। इसके बजाय, सभी को इलेक्ट्रिक या गैस आधारित तंदूर अपनाने होंगे। यह फैसला ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान (GRAP) के तहत लिया गया है, जिसका मकसद हाई-पॉल्यूशन फेज में स्थानीय स्तर पर होने वाले उत्सर्जन को कम करना है।

    DPCC का कहना है, कि दिल्ली में AQI लगातार तय मानकों से ऊपर बना हुआ है और कोयले से की जाने वाली कुकिंग भी लोकल पॉल्यूशन में योगदान देती है। इसलिए तंदूर पर रोक को GRAP के स्टेज-I एक्शन के तौर पर लागू किया गया है।

    सोशल मीडिया पर गुस्सा और तंज-

    हालांकि, यह फैसला आते ही सोशल मीडिया पर बहस छिड़ गई। कई लोगों ने इसे जरूरत से ज्यादा कदम बताया। कुछ यूजर्स ने तंज कसते हुए कहा कि “तंदूर बैन करना ऐसा है जैसे ट्रैफिक कम करने के लिए साइकिल बैन कर देना।” किसी ने तंदूरी रोटी और कबाब के ‘खत्म होने’ का दुख जताया, तो किसी ने सवाल उठाया कि क्या अगला कदम अगरबत्ती और सिगरेट पर बैन होगा।

    एक Reddit यूजर ने लिखा, “तंदूर तो दीवाली के पटाखों से भी पुरानी परंपरा है, फिर उसी पर रोक क्यों?” इस तरह, फैसले ने पॉल्यूशन से ज्यादा पॉलिटिक्स और इमोशंस को हवा दे दी।

    क्या सच में तंदूरी से पॉल्यूशन कम होगा?

    सबसे बड़ा सवाल यही है, क्या सच में तंदूर बंद करने से दिल्ली की हवा साफ हो जाएगी? दरअसल तंदूर से निकलने वाला धुआं लोकल लेवल पर असर डालता है, खासकर भीड़भाड़ वाले इलाकों में। लेकिन दिल्ली जैसे बड़े शहर में प्रदूषण के बड़े कारण वाहन, इंडस्ट्रियल एमिशन, कंस्ट्रक्शन डस्ट और पराली का धुआं हैं। ऐसे में सिर्फ तंदूर बैन से AQI में बड़ा फर्क पड़ेगा या नहीं, इस पर लोग सवाल उठा रहे हैं।

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    सियासत भी गरमाई-

    इस पूरे मामले में राजनीति भी पीछे नहीं रही। दिल्ली के पर्यावरण मंत्री मंजिंदर सिंह सिरसा ने मौजूदा हालात के लिए पिछली आम आदमी पार्टी सरकार को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा, कि 9–10 महीनों में AQI पूरी तरह कंट्रोल करना संभव नहीं है।

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    आम जनता के मन में यह सवाल बना हुआ है, कि क्या ऐसे छोटे कदमों से वाकई सांस लेने लायक हवा मिलेगी? शायद जरूरत है, एक संतुलित और लॉन्ग-टर्म प्लान की, जिसमें परंपरा, रोजगार और पर्यावरण तीनों का ध्यान रखा जाए।