Vastu Tips: जब भी कोई नया घर बनाता है, तो सबसे पहला सवाल होता है, कि मंदिर कहां रखें। यह सवाल इतना आम है, क्योंकि हर हिंदू परिवार अपने घर में एक पवित्र स्थान चाहता है, जहां वह रोज़ पूजा-पाठ कर सकें और भगवान से जुड़ सकें। लेकिन बहुत से लोग यह गलतफहमी पाले रहते हैं, कि अगर मंदिर सही दिशा में रख दिया, तो घर की सारी वास्तु समस्याएं खत्म हो जाएंगी। असलियत में मंदिर की स्थापना आध्यात्मिक वास्तु के दायरे में आती है, न कि स्थापत्य वास्तु में। इन दोनों के बीच के अंतर को समझना बेहद जरूरी है ताकि आप सही विशेषज्ञ से सही सलाह ले सकें।
आध्यात्मिक वास्तु और पंडित जी की महत्वपूर्ण भूमिका-
आध्यात्मिक वास्तु का मतलब है, वे सारे अनुष्ठान, धार्मिक क्रियाएं और संस्कार जो घर के निर्माण के दौरान बाधित हुई पृथ्वी की ऊर्जाओं को संतुलित करने के लिए किए जाते हैं। जब घर बनता है, तो जमीन की खुदाई होती है, नींव डाली जाती है और इस प्रक्रिया में पृथ्वी का प्राकृतिक ऊर्जा प्रवाह बाधित होता है। इसे फिर से संतुलित करने के लिए भूमि पूजा, नींव पूजा और वास्तु पूजा जैसे अनुष्ठान किए जाते हैं।
यह सारा काम पंडित जी या गुरुजी ही करते हैं, क्योंकि वे प्राचीन परंपराओं और पवित्र ग्रंथों के जानकार होते हैं। जब आप मंदिर की स्थापना के बारे में पूछते हैं, तो यह भी पंडित जी ही तय करते हैं, कि कौन सी मूर्ति किस दिशा में रखी जाएगी, शुभ मुहूर्त क्या होगा और प्राण प्रतिष्ठा के लिए कौन से मंत्र बोले जाएंगे। यह काम वास्तु सलाहकार का नहीं बल्कि धार्मिक गुरु का है।
विज्ञान और डिज़ाइन का मेल-
अब बात करते हैं स्थापत्य वास्तु की जो कि पूरी तरह भौतिक डिज़ाइन और वैज्ञानिक सिद्धांतों पर आधारित होता है। इसमें घर की दिशा यानी किस ओर मुख्य द्वार है, कमरों के अनुपात यानी लंबाई और चौड़ाई का सही अनुपात, प्राकृतिक रोशनी और हवा का उचित संचार देखा जाता है। इसमें कमरों की व्यवस्था, रंगों और सामग्री का मनोविज्ञान, और कोनों को पौधों या रोशनी से सक्रिय करने की तकनीकें शामिल हैं। यह विद्या तत्वमीमांसा, ज्यामिति और आंतरिक डिज़ाइन की गहरी समझ मांगती है।
कॉन्शस वास्तु मंदिर की अहमियत-
कॉन्शस वास्तु एक नवीन दृष्टिकोण है, जो सिर्फ बाहरी संरचना से आगे जाकर समय और मानव चेतना को भी ध्यान में रखता है। यह मानता है कि हर इंसान एक आध्यात्मिक सत्ता है। हमारे शरीर की हर कोशिका एक दिव्य रचना है, जो सकारात्मक, नकारात्मक और तटस्थ ऊर्जाएं धारण करती है। यह भीतरी मंदिर हमारे विचारों, भावनाओं और कर्मों का मार्गदर्शन करता है। जब हम अपने भीतर के इस मंदिर को सम्मान देते हैं, तभी असली बदलाव होता है।
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मंदिर रखने के सरल सुझाव और दैनिक आदतें-
पंडित जी से परामर्श लेने के बाद कुछ बातों का ध्यान रखें। मंदिर को शयनकक्ष या स्नानघर के पास न रखें, शहतीर के नीचे न रखें और खिड़की की सीध में रखने से बचें। सबसे महत्वपूर्ण है अपने भीतरी मंदिर को पोषित करना। हर व्यक्ति को सम्मान दें, शांति से संवाद करें, नकारात्मक बातों से बचें और छोटे-छोटे उपकार करें। ये सूक्ष्म आदतें आपकी भीतरी ऊर्जा को मजबूत बनाती हैं।
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