Chanakya Niti
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    Chanakya Niti: आज की तेज़ और उलझनों से भरी ज़िंदगी में बहसें आम हो चुकी हैं, ऑफिस में, घर में या सोशल मीडिया पर। हर कोई चाहता है कि उसकी बात आखिरी हो, उसकी आवाज़ सबसे ऊंची हो और वो ‘सही’ साबित हो। पर क्या वाकई बहस में जीत का मतलब यही है? दो हजार साल पहले भारत के महान राजनीतिज्ञ और विचारक चाणक्य ने इस सोच को चुनौती दी थी। उन्होंने कहा था, “मौन रहना ही असली ताकत है।”

    चाणक्य की नीति आज भी हमें सिखाती है कि हर बात का जवाब देना ज़रूरी नहीं होता। कभी-कभी चुप रहना ही सबसे समझदारी भरा उत्तर होता है। उनकी बातें केवल किताबों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि रोज़मर्रा की ज़िंदगी में बेहद कारगर हैं।

    Chanakya Niti हर बहस की कीमत होती है-

    बहुत बार हम केवल अहम के कारण बहस में कूद पड़ते हैं। चाणक्य कहते हैं कि अधिकांश बहसें सही या गलत के लिए नहीं, बल्कि इगो के टकराव की वजह से होती हैं। अगली बार जब कोई आपको उलझाने की कोशिश करे, तो खुद से एक सवाल पूछिए, क्या इस बहस से मुझे मानसिक शांति मिलेगी या और ज्यादा तनाव? मौन रहकर आप न केवल अपनी ऊर्जा बचाते हैं, बल्कि अपनी बुद्धिमत्ता का भी परिचय देते हैं। यह कमजोरी नहीं, बल्कि आत्म-संयम की सबसे बड़ी निशानी है।

    मूर्ख खुद को उजागर करता है-

    चाणक्य ने कहा था, “मूर्ख से बहस मत करो, देखने वाले फर्क नहीं कर पाएंगे कि मूर्ख कौन है।” यह वाक्य जितना सरल है, उतना ही गहरा भी। जब आप किसी गैर-जिम्मेदार या गुस्सैल व्यक्ति से बहस में उलझते हैं, तो आप भी उसी स्तर पर खिंच जाते हैं। लेकिन अगर आप चुप रहते हैं, तो उसकी असलियत खुद-ब-खुद सामने आ जाती है। दर्शक भी महसूस करते हैं कि शोर मचाने वाला कौन है और शांत रहने वाला कौन।

    कभी-कभी दूर जाना ही असली जीत होती है-

    लोग अक्सर सोचते हैं कि बहस छोड़ देना हार मान लेना है। पर चाणक्य इसे उल्टा मानते हैं। उनका कहना है कि खुद की गरिमा को बनाए रखना, और ऐसे झगड़े से बाहर निकल जाना जो कहीं नहीं जा रहा, सबसे बड़ा सम्मान है। जब आप बिना बोले पीछे हटते हैं, तो आप ये संदेश देते हैं। मेरी शांति, तुम्हारी बहस से ज्यादा ज़रूरी है। समय के साथ लोग समझते हैं कि आपको हर ड्रामे में घसीटा नहीं जा सकता।

    समय खुद बोलेगा-

    मान लीजिए ऑफिस में किसी ने आपके ऊपर झूठा आरोप लगा दिया। आप चाहें तो पलटकर जवाब दे सकते हैं, लेकिन चाणक्य कहते हैं कि परिणाम ही सबसे बड़ा प्रमाण होता है। जब आप बिना कहे अपना काम ईमानदारी से करते हैं, तो समय खुद दिखाता है कि सच्चा कौन था। यह शांत आत्मविश्वास ही आपकी असली ताकत बन जाता है।

    मौन का मतलब हमेशा चुप रहना नहीं होता

    यह सोचना गलत है कि चुप रहने का मतलब हर समय मौन रहना है। जब अन्याय हो, जब किसी को आपकी आवाज़ की जरूरत हो, तब बोलना ही सही होता है। चाणक्य भी यही मानते थे कि बुद्धिमत्ता का मतलब है, कब बोलना है और कब चुप रहना है, इसका विवेक होना। हर बहस को जीतने के लिए शब्दों का सहारा लेना ज़रूरी नहीं। कभी-कभी मौन ही सबसे बड़ा जवाब होता है।

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    हर दिन इस नीति को अपनाइएज

    अगर आप चाहते हैं, कि चाणक्य की यह नीति आपके जीवन में असर दिखाए, तो रोज़ाना इन तीन आदतों को अपनाइए:- जब गुस्सा आए या कोई आपको उकसाए, एक गहरी सांस लीजिए और कुछ पल चुप रहें। अगर बहस बेवजह लंबी हो रही है, वहां से हट जाइए। आपकी ऊर्जा अनमोल है। ध्यान दीजिए, कि जब आप कुछ नहीं कहते, तब सामने वाला क्या करता है, अक्सर वह खुद थककर चुप हो जाता है।

    शब्दों के बिना जीत की कला-

    चाणक्य हमें आज भी यही सिखाते हैं कि असली ताकत चीखने-चिल्लाने में नहीं, बल्कि शांत और स्थिर रहने में है। अगली बार जब कोई आपको बहस में खींचने की कोशिश करे, तो चाणक्य को याद कीजिए। शांत दिमाग, साफ दिल और बिना बोले कही गई बात, यही चाणक्य नीति का असली सार है।

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