Badar Khan Suri
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    Badar Khan Suri: जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी में कार्यरत भारतीय मूल के स्कॉलर बदर खान सूरी को अमेरिकी ट्रंप प्रशासन ने हिरासत में ले लिया है। न्यूज एजेंसी रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, उन पर सोशल मीडिया पर हमास के पक्ष में प्रचार और एंटीसेमिटिज्म (यहूदी विरोधी) सामग्री साझा करने का आरोप है। अमेरिकी गृह सुरक्षा विभाग (डीएचएस) ने अमेरिकी विदेश नीति से जुड़ी चिंताओं के कारण सूरी को देश से निष्कासित करने की मांग की है।

    कौन हैं Badar Khan Suri?

    बदर खान सूरी जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी के अलवलीद बिन तलाल सेंटर फॉर मुस्लिम-क्रिश्चियन अंडरस्टैंडिंग में पोस्ट-डॉक्टोरल फेलोशिप के साथ एक शोधकर्ता हैं। उन्होंने 2020 में जामिया मिलिया इस्लामिया के नेल्सन मंडेला सेंटर फॉर पीस एंड कॉन्फ्लिक्ट रिजॉल्यूशन से शांति और संघर्ष अध्ययन में पीएचडी की है। वह स्टूडेंट वीजा पर अमेरिका में रह रहे हैं और एक अमेरिकी नागरिक से विवाहित हैं। हाल ही में, सूरी को वर्जीनिया के रॉसलिन में उनके घर के बाहर से संघीय एजेंटों ने गिरफ्तार किया था। रॉयटर्स के अनुसार, वर्तमान में वे लुइसियाना के अलेक्जेंड्रिया में हिरासत में हैं, जहां वे इमिग्रेशन कोर्ट में अपनी पेशी का इंतजार कर रहे हैं।

    Badar Khan Suri पर क्या हैं आरोप?

    अमेरिकी गृह सुरक्षा विभाग ने बदर खान सूरी पर फिलिस्तीनी आतंकवादी संगठन हमास से संबंध रखने का आरोप लगाया है। रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, उन पर सोशल मीडिया पर हमास का प्रचार और यहूदी विरोधी सामग्री फैलाने का भी आरोप है।फॉक्स न्यूज के साथ साझा किए गए एक बयान में इन आरोपों का उल्लेख किया गया है। हालांकि, व्हाइट हाउस के डिप्टी चीफ ऑफ स्टाफ स्टीफन मिलर द्वारा बाद में रीपोस्ट किए गए फॉक्स न्यूज को दिए गए डीएचएस के बयान के साथ कोई सबूत नहीं दिया गया। बयान में कहा गया है कि विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने निर्णय लिया है कि सूरी के कार्यों ने उन्हें "निष्कासन योग्य बना दिया है।"

    Badar Khan Suri ट्रंप प्रशासन की नीति और विवाद-

    यह मामला ऐसे समय में सामने आया है जब ट्रंप अक्टूबर 2023 में हमास के हमले के बाद गाजा में इजरायल की कार्रवाइयों के खिलाफ फिलिस्तीन समर्थक प्रदर्शनों में शामिल विदेशियों को निष्कासित करने का लक्ष्य रख रहे हैं। इन उपायों ने नागरिक अधिकार और आप्रवासी समूहों से प्रतिक्रिया को जन्म दिया है, जो कहते हैं कि उनका प्रशासन अनुचित रूप से उन लोगों को निशाना बना रहा है जो सरकार के खिलाफ बोलते हैं।

    मानवाधिकार संगठनों की चिंता-

    नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं ने इस कार्रवाई को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला बताया है। कई मानवाधिकार संगठनों ने चिंता जताई है कि ट्रंप प्रशासन फिलिस्तीन समर्थक विचारों को रखने वाले लोगों को निशाना बना रहा है, जो अमेरिकी संविधान द्वारा गारंटीकृत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के विरुद्ध है। एमनेस्टी इंटरनेशनल जैसे संगठनों ने इस प्रकार के मामलों पर चिंता व्यक्त की है और कहा है कि किसी व्यक्ति को केवल उसके विचारों के आधार पर हिरासत में लेना या निष्कासित करना अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार मानकों का उल्लंघन है।

    शैक्षणिक स्वतंत्रता का मुद्दा-

    जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी के कुछ प्रोफेसरों और छात्रों ने इस कार्रवाई की निंदा की है और शैक्षणिक स्वतंत्रता के सिद्धांत का हवाला दिया है। उनका तर्क है कि एक शोधकर्ता के रूप में, सूरी के पास संवेदनशील और विवादास्पद विषयों पर अपने विचार व्यक्त करने का अधिकार है, भले ही वे लोकप्रिय विचारों से अलग हों। विश्वविद्यालय के एक प्रवक्ता ने कहा कि वे मामले की जांच कर रहे हैं और अपने छात्रों और कर्मचारियों के अधिकारों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं।

    भारतीय दूतावास की प्रतिक्रिया-

    अभी तक वाशिंगटन डीसी में भारतीय दूतावास की ओर से कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया गया है। हालांकि, सूत्रों के अनुसार, भारतीय अधिकारी मामले की निगरानी कर रहे हैं और अपने नागरिक के लिए कानूनी सहायता प्रदान करने के लिए तैयार हैं। विदेश मंत्रालय के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, "हम स्थिति पर करीब से नज़र रख रहे हैं और अमेरिकी अधिकारियों के साथ संपर्क में हैं। हमारा प्राथमिक कर्तव्य यह सुनिश्चित करना है कि हमारे नागरिक के साथ उचित व्यवहार किया जाए और उन्हें कानूनी प्रक्रिया का अधिकार मिले।"

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    अब आगे क्या?

    अब सूरी को इमिग्रेशन कोर्ट में पेश किया जाएगा, जहां वे अपना पक्ष रख सकेंगे। उनके पास निष्कासन के आदेश को चुनौती देने का अधिकार है, और वे अपनी अमेरिकी पत्नी के माध्यम से स्थायी निवास की स्थिति के लिए भी आवेदन कर सकते हैं।

    कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि इस प्रकार के मामलों में निर्णय लेने में महीनों या यहां तक कि वर्षों का समय लग सकता है। इस बीच, सूरी के समर्थकों ने एक याचिका शुरू की है, जिसमें उनकी रिहाई और उन पर लगे आरोपों की निष्पक्ष जांच की मांग की गई है। यह मामला अमेरिका में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, आप्रवास नीति और विदेश नीति के मुद्दों पर चल रही बहस का हिस्सा बन गया है। ट्रंप प्रशासन द्वारा की गई इस कार्रवाई से अमेरिका में अकादमिक समुदाय और नागरिक अधिकार समूहों के बीच तनाव बढ़ गया है।

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