Rwanda
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    Rwanda: अगर हम आपसे यह कहें की कौन से देश के पार्लियामेंट में आपको सबसे ज्यादा महिलाएं देखने को मिलेंगी, तो शायद आपके दिमाग में फिनलैंड, नॉर्वे और स्वीडन जैसी कंट्रीज के नाम आएंगे। लेकिन आप यह जानकर हैरान हो जाएंगे, कि इस सवाल का जवाब एक अफ्रीकन कंट्री है, जी हां रवांडा। रवांडा एक ऐसा देश है जहां के पार्लियामेंट में आपको सबसे ज्यादा महिलाएं देखने को मिलेगी। लोअर हाउस ऑफ़ पार्लियामेंट में यानी उनके लोकसभा में 61.3% संख्या महिलाओं की है। सबसे इंट्रस्टिंग चीज तो यह है कि रवांडा का नाम अक्सर लीस्ट डेवलप्ड कंट्री और लो इनकम कंट्री की लिस्ट में आता है। इस महिलाओं को इतनी जगह दी गई, आखिर ऐसा कैसे हो पाया, आईए इस के बारे में जानते हैं-

    महिलाओं की पार्लियामेंट में जगह (Rwanda)-

    जब भी महिलाओं की पार्लियामेंट में जगह होने की बात आती है, तब पूरी दुनिया की ग्लोबल एवरेज इसमें सिर्फ 25.5% है। ज्यादातर देशों में 50% से कम परसेंट महिलाओं की है, जहां पर 50% से ज्यादा औरतों को पार्लियामेंट में जगह दी जाती है। आईए पहले लिस्ट देख लेते हैं, इसमें सबसे टॉप पर है, रवांडा जहां पर 61% जगह महिलाओं को दी जाती है। वहीं दूसरे नंबर पर है क्यूबा जहां पर महिलाओं को 53% जगह मिली है, उसके बाद आता है यूएई जहां पर 50% जगह महिलाओं को मिलती है। उसके बाद जितने भी देश आते हैं, उन सभी में महिलाओं को 50% से कम जगह दी गई है।

    Rwanda और क्यूबा-

    अब टॉप दो देशों की बात की जाए तो इनमें एक रवांडा और एक क्यूबा इन दोनों के बीच सिर्फ आठ परसेंट का फर्क है। लेकिन यह 8% का फर्क रवांडा कैसे आया, रवांडा बाकी देशों से आगे कैसे निकल गया और यह चीज रवांडा में एक सिर्फ पार्लियामेंट में देखने को नहीं मिलती है, बल्कि 42% केबिनेट मेंबर्स और 50% जज और भी कई क्षेत्रों में महिसाओं की संख्या ज्यादा है। लेकिन इतिहास में ऐसा नहीं होता था, 1990 का जो समय था। लेकिन इतना बड़ा बदलाव कैसे आया आईए इसके इतिहास पर थोड़ी नजर डालते हैं।

    भयंकर जेनोसाइड Rwanda-

    1994 में एक भयंकर जेनोसाइड रवांडा में हुआ था, ज्यादा टाइम बर्बाद ना करते हुए, इसे थोड़ा हम शॉर्ट में जानेंगे। रवांडा में दो ग्रुप थे, मेजोरिटी पापुलेशन में एक हूटू एथिक ग्रुप और एक माइनॉरिटी टुटसी एथिक ग्रुप था। जिन्होंने मेजोरिटी पापुलेशन में एक जेनोसाइड कंडक्ट किया था। जिसमें 8 लाख सिविलियन मारे गए थे, उनमें से ज्यादातर टूटसू लोग थे और हूटू लोग भी थे, जो मारे गए। इतनी भारी संख्या में सिविलियन लोग मारे गए और जब भी कोई ऐसी लड़ाई होती थी या सिविल वॉर होती थी तो आमतौर पर आदमी ही मारे जाते हैं। क्योंकि लड़ाईयों में औरतें कम ही पार्टिसिपेट करती हैं। जब यह जेनोसाइड खत्म हुआ, तो रवांडा की 70% की पापुलेशन फीमेल की हो गई, सिर्फ 30% मेल रह गए थे और इनमें से ज्यादातर औरतें एजुकेटेड नहीं थी।

    रवांडा के नए प्रेसिडेंट-

    वह कभी घर से बाहर नहीं निकली थी उनका करियर नहीं था और देश में बहुत बदलाव की जरूरत थी। रवांडा के नए प्रेसिडेंट पॉल कागेम ने डिसाइड किया कि अगर हमें देश को री डेवलप करना है, तो वहां पर औरतों को एक बड़ा रोल निभाना पड़ेगा। औरतों को पार्टिसिपेट करवाने के लिए, उन्हें काफी सारे रिफॉर्म्स करने पड़े इनिशिएटिव लेने पड़ेंगे। इक्वलिटी को प्रमोट करने के लिए। इसीलिए 2003 में उन्होंने एक नया कॉन्स्टिट्यूशन अडॉप्ट किया और एक मेजर चेंज. जो इसमें आया वह था जेंडर कोटा। इसके नाम से ही इसे समझना काफी आसान है कि जेंडर कोटा क्या है।

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    कास्ट बेस्ड रिजर्वेशन-

    जैसे हमारे देश में कास्ट बेस्ड रिजर्वेशन होती है और उसे रिलेटिव गवर्नमेंट जॉब्स कोटा होता है, सरकारी नौकरी और कॉलेजेस की सीट में। ऐसे ही उनके देश में जेंडर बेस्ड कोटा होता है। गैर और इक्वल रिप्रेजेंटेशन ऑफ़ वीमेन। इनके साल 2003 के कॉन्स्टिट्यूशन में लिखा गया है कि 10 स्टेट ऑफ़ रवांडा समिति इत्सेल्फ था, वूमेन अरे ग्रांटेड एट लिस्ट 30% का पोस्ट इन डिसीजन मेकिंग ऑर्गन्स। यानी 30% सेट रिजर्व्ड है लेजिसलेचर और पार्लियामेंट में औरतों के लिए होगा। सितंबर 2003 में जनरल इलेक्शन हुए तब न सिर्फ 30% सीटों पर रखा गया, बल्कि कुछ नॉन रिजर्व सीटों पर भी औरतों को रखा गया और उसके बाद जितने भी पार्लियामेंट्री इलेक्शन हुए, वहां पर कहीं 56% औरतों को पार्लियामेंट में सीट दी गई, तो कहीं पर 63% तक यह नंबर जा पहुंचा, आज के दिन यह नंबर 61% है।

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