Arattai WhatsApp Integration
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    Arattai WhatsApp Integration: पिछले कुछ हफ्तों में भारत में एक नया मैसेजिंग ऐप चर्चा में आया है, Zoho का अरट्टई। यह WhatsApp का देसी विकल्प बनकर उभरा है और इसकी एंट्री के बाद से ही मैसेजिंग की दुनिया में हलचल मची हुई है। लेकिन अब खबर आई है, कि WhatsApp अपने प्लेटफॉर्म को दूसरे ऐप्स के साथ जोड़ने की तैयारी कर रहा है। जी हां, अब आप WhatsApp से निकले बिना ही अरट्टई जैसे दूसरे ऐप्स के यूजर्स को मैसेज कर सकेंगे।

    Meta की मालिकाना हक वाले इस पॉपुलर मैसेजिंग ऐप में क्रॉस-प्लेटफॉर्म मैसेजिंग फीचर आ सकता है, जो करोड़ों यूजर्स के लिए गेम चेंजर साबित हो सकता है। WaBetaInfo ने इस हफ्ते इस नए फीचर को स्पॉट किया है, हालांकि फिलहाल यह यूरोपियन रीज़न के बीटा टेस्टर्स के लिए ही उपलब्ध है।

    क्या अरट्टई के आने से घबरा गया WhatsApp?

    Zoho के चीफ श्रीधर वेम्बू ने अरट्टई को लॉन्च करते समय साफ कहा था, कि वे इसे क्रॉस-प्लेटफॉर्म बनाना चाहते हैं ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग इसका इस्तेमाल कर सकें। भले ही WhatsApp का यह कदम सीधे तौर पर अरट्टई से जुड़ा न हो, लेकिन यह महज एक संयोग नहीं माना जा सकता, कि WhatsApp भी अचानक इसी तरह का फीचर टेस्ट करने लगा है।

    हालांकि, सच्चाई यह भी है, कि WhatsApp यूरोपियन यूनियन के रेगुलेटर्स के दबाव में भी यह कदम उठा रहा है। EU ने टेक कंपनियों को आदेश दिया है, कि वे अपने प्रोडक्ट्स को दूसरे ऐप्स के लिए खोलें और WhatsApp भी इसी कैटेगरी में आता है। यानी Meta को मजबूरन यह फीचर लाना पड़ रहा है, लेकिन इसका फायदा यूजर्स को ही मिलेगा।

    Security और Encryption की चुनौती-

    WhatsApp को दूसरे प्लेटफॉर्म्स के साथ जोड़ने में सबसे बड़ी चुनौती सिक्योरिटी और एन्क्रिप्शन स्टैंडर्ड्स की है। WhatsApp अपनी end-to-end encryption के लिए जाना जाता है, जो यूजर्स की प्राइवेसी को सुरक्षित रखता है। यही कारण है, कि हर कोई WhatsApp पर भरोसा करता है और अपनी निजी बातें शेयर करने में हिचकिचाता नहीं।

    लेकिन अरट्टई अभी तक end-to-end encryption को सपोर्ट नहीं करता है, जिससे इसे WhatsApp के साथ इटेग्रेट करना मुश्किल हो जाता है। यह एक बड़ी समस्या है, क्योंकि अगर दोनों ऐप्स के बीच मैसेज भेजे जाएं और वे पूरी तरह से सुरक्षित न हों, तो यूजर्स की प्राइवेसी खतरे में पड़ सकती है।

    हालांकि, Signal और Telegram जैसे ऐप्स हैं, जो पहले से ही मजबूत एन्क्रिप्शन का इस्तेमाल करते हैं। इन ऐप्स को WhatsApp के साथ आसानी से cross-link किया जा सकता है। यानी भविष्य में आप WhatsApp से Signal या Telegram के यूजर्स को भी मैसेज कर सकेंगे, बिना उन ऐप्स को खोले।

    यूरोप में पहले, फिर बाकी दुनिया में-

    इस फीचर का पहला चरण मुख्य रूप से यूरोपियन यूनियन मार्केट पर फोकस करेगा। EU के रेगुलेटर्स पहले भी Meta पर कई बार भारी जुर्माना लगा चुके हैं और कंपनी नहीं चाहती, कि यह सिलसिला जारी रहे।

    लेकिन सवाल यह है, कि क्या WhatsApp वाकई एक interoperable प्लेटफॉर्म बन पाएगा, जहां आप दूसरे ऐप्स के यूजर्स के साथ चैट कर सकें? यह देखना दिलचस्प होगा, कि Meta इस फीचर को कितनी गंभीरता से लेता है और क्या इसे भारत जैसे दूसरे बड़े मार्केट्स में भी लॉन्च करता है।

    अगर यह फीचर सफल रहता है, तो यह मैसेजिंग की दुनिया में एक नया अध्याय खोल सकता है। लोगों को अलग-अलग ऐप्स के बीच स्वीच करने की जरूरत नहीं पड़ेगी और सभी बातचीत एक ही जगह हो सकेगी।

    स्थानीय Apps की असली चुनौती-

    अरट्टई जैसे मेड इन इंडिया ऐप्स बहुत उत्साह और दिलचस्पी के साथ शुरू होते हैं। लोग देशभक्ति की भावना से इन्हें डाउनलोड करते हैं और इस्तेमाल करने की कोशिश करते हैं। लेकिन कुछ समय बाद जब शुरुआती उत्साह कम हो जाता है, तब असली समस्या सामने आती है।

    लोग समझ जाते हैं, कि उन्हें ऐसे प्लेटफॉर्म या ऐप पर होना जरूरी है जहां बाकी सभी लोग मौजूद हैं। आप अकेले किसी नए ऐप पर क्या करेंगे अगर आपके दोस्त, परिवार और सहकर्मी सभी WhatsApp पर ही हैं? यही कारण है, कि कई नए ऐप्स शुरुआती चर्चा के बाद धीरे-धीरे गुमनामी में खो जाते हैं।

    एक नया ऐप बनाना तो ठीक है, लेकिन जब तक आप उसे दूसरे लोगों के साथ इस्तेमाल नहीं कर सकते, तब तक वह सिर्फ आपके फोन में पड़ा एक और इंस्टॉल रह जाता है, जो जल्दी ही अनइंस्टॉल हो सकता है। यहां UPI का उदाहरण बिल्कुल सटीक बैठता है।

    UPI से सीखें सबक-

    UPI ने भारत में डिजिटल पेमेंट्स में क्रांति इसलिए ला दी, क्योंकि यह interoperable है। आप Google Pay से PhonePe यूजर को पैसे भेज सकते हैं, Paytm से BHIM यूजर को ट्रांसफर कर सकते हैं। किसी को भी एक ही ऐप तक सीमित नहीं रहना पड़ता। यही वजह है, कि UPI इतना सफल हुआ।

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    अगर मैसेजिंग ऐप्स भी इसी मॉडल को अपनाएं, तो यूजर्स के लिए यह बहुत फायदेमंद होगा। लोग अपनी पसंद का ऐप चुन सकेंगे और फिर भी सभी से जुड़े रह सकेंगे। यह एकाधिकार को तोड़ेगा और कॉम्पटीशन को बढ़ावा देगा, जिससे अंततः बेहतर सर्विसेज मिलेंगी।

    WhatsApp का यह कदम, भले ही यूरोपियन दबाव के कारण हो, लेकिन यह सही दिशा में उठाया गया कदम है। अगर यह सफल रहता है, तो यह न सिर्फ अरट्टई जैसे नए ऐप्स को मौका देगा बल्कि यूजर्स को भी ज्यादा फ्रीडम देगा। आने वाले महीनों में यह देखना दिलचस्प होगा, कि क्या WhatsApp वाकई इस फीचर को ग्लोबली रोल-आउट करता है या नहीं।

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