Gaganyaan Mission: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने देश के पहले मानव अंतरिक्ष मिशन गगनयान की तैयारियों में एक और अहम परीक्षण सफलतापूर्वक पूरा कर लिया है। यह टेस्ट भारत के स्पेस प्रोग्राम के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हो सकता है। 3 नवंबर को किए गए, इस परीक्षण ने यह साबित कर दिया, कि भारतीय वैज्ञानिक अंतरिक्ष यात्रियों की सुरक्षा को लेकर पूरी तरह सजग और तैयार हैं।
पैराशूट सिस्टम की अहम जांच-
इस बार का टेस्ट खास तौर पर क्रू मॉड्यूल की स्थिरता को परखने के लिए डिजाइन किया गया था। सवाल यह था, कि अगर किसी वजह से मुख्य पैराशूटों में से एक खुलने में देरी हो जाए, तो क्या होगा? क्या अंतरिक्ष यात्री फिर भी सुरक्षित धरती पर लौट पाएंगे? इस सवाल का जवाब ढूंढने के लिए ISRO ने इंडियन एयर फोर्स के IL-76 विमान का इस्तेमाल किया। इस विमान ने 7.2 टन वजनी कैप्सूल मास सिम्युलेटर को उठाया और उत्तर प्रदेश के बाबीना फील्ड फायरिंग रेंज से उड़ान भरी।
विमान ने ढाई किलोमीटर की ऊंचाई से डमी कैप्सूल को छोड़ा और उसी पल गगनयान के पैराशूट सिस्टम की डिप्लॉयमेंट शुरू हो गई। यह पूरी प्रक्रिया बेहद जटिल और सटीक थी, जहां हर सेकंड मायने रखता था।
दस पैराशूट का अनोखा सिस्टम-
ISRO के मुताबिक, गगनयान क्रू मॉड्यूल में एक जटिल पैराशूट सिस्टम लगाया गया है, जिसमें कुल 10 पैराशूट हैं। इनमें से दो पैराशूट कैप्सूल के प्रोटेक्टिव कवर को अलग करने का काम करते हैं। फिर दो ड्रोग पैराशूट कैप्सूल को स्थिर करते हैं और उसकी रफ्तार कम करते हैं। इसके बाद तीन पायलट पैराशूट आते हैं जो तीन मुख्य पैराशूटों को खोलने में मदद करते हैं। ये मुख्य पैराशूट ही कैप्सूल की स्पीड को सबसे ज्यादा कम करते हैं और सुरक्षित लैंडिंग सुनिश्चित करते हैं।
मुख्य पैराशूट एक खास क्रम में खुलते हैं और डिसरीफिंग प्रक्रिया से गुजरते हैं, यानी पहले वे आंशिक रूप से खुलते हैं और फिर पूरी तरह फूल जाते हैं। सबसे खास बात यह है कि इस सिस्टम में रिडंडेंसी का ध्यान रखा गया है। मतलब, तीनों मुख्य पैराशूटों में से सिर्फ दो के सही तरीके से काम करने पर भी सुरक्षित लैंडिंग हो सकती है। यही वह सेफ्टी फीचर है जो अंतरिक्ष यात्रियों की जान बचा सकता है।
चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में सफलता-
3 नवंबर के टेस्ट में एक नॉन-स्टैंडर्ड और चुनौतीपूर्ण स्थिति बनाई गई। सिर्फ दो मुख्य पैराशूट खोले गए और असिमेट्रिक लोड यानी असमान भार डाला गया। ISRO के अधिकारियों ने बताया, कि इस टेस्ट ने सिस्टम की स्ट्रक्चरल इंटीग्रिटी और लोड डिस्ट्रीब्यूशन को असिमेट्रिक डिसरीफिंग परिस्थितियों में परखा। यह असल मिशन के दौरान होने वाले सबसे क्रिटिकल लोड सिनेरियो में से एक था।
परिणाम बेहद उत्साहजनक रहे। पैराशूट सिस्टम योजना के अनुसार खुला, पूरी प्रक्रिया बिल्कुल सही तरीके से हुई, और टेस्ट आर्टिकल ने स्थिर उतरान और सॉफ्ट लैंडिंग हासिल की। इससे पैराशूट डिजाइन की मजबूती साबित हो गई। ISRO ने इसे मानव अंतरिक्ष यात्रा के लिए पैराशूट सिस्टम को क्वालिफाई करने की दिशा में एक और महत्वपूर्ण कदम बताया।
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व्योममित्र के साथ तीन मानवरहित उड़ानें-
पहली क्रूड गगनयान मिशन से पहले अभी कई बड़े माइलस्टोन बाकी हैं। ISRO की योजना कैप्सूल की तीन मानवरहित टेस्ट फ्लाइट्स करने की है। इन उड़ानों में व्योममित्र नाम का एक आधा-ह्यूमनॉइड रोबोट भेजा जाएगा जो डेटा इकट्ठा करेगा। व्योममित्र का मतलब संस्कृत में “अंतरिक्ष मित्र” होता है। अगर ये टेस्ट शेड्यूल के अनुसार चलते रहे, तो ISRO के अधिकारियों को उम्मीद है कि भारत के पहले अंतरिक्ष यात्री 2027 की शुरुआत में अपनी ऐतिहासिक यात्रा पर निकल सकते हैं।
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