Mahakumbh 2025: 12 साल बाद एक बार फिर से महाकुंभ का मेला शुरू हो चुका है और महाकुंभ का यह मेला लोगों के बीच आकर्षण का केंद्र बना हुआ है और इसी महाकुंभ के मेले में नागा साधु लोगों का ध्यान खींच रहे हैं। जिनकी रहस्यमई दुनिया और तपस्वी जीवन शैली एक रहस्य हमेशा से बनी हुई है। निर्वस्त्र अवतार, लंबी जटाएं और शरीर पर भस्म लगाए, यह साधु कुंभ के दौरान विशेष पहचान लेकर आते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं, कि महाकुंभ के मेले के खत्म होने के बाद,यह नागा साधु कहां जाते हैं। यह कहां रहते हैं और किस तरह से अपना जीवन व्यतीत करते हैं। आज हम आपको इस आर्टिकल में इसके बारे में बताने जा रहे हैं।

प्रमुख आकर्षण का केंद्र(Mahakumbh 2025)-
नागा साधु हमेशा सारे लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचते रहे हैं और महाकुंभ के मेले में पूरे देश भर के नागा साधु शामिल होने आते हैं। यह कुंभ के मेले में प्रमुख आकर्षण का केंद्र भी बन जाते हैं। नागा साधु अपने दिगंबर रूप की वजह से काफी फेमस भी हैं। उनका मानना है की धरती उनका बिस्तर है और आसमान उनकी चादर, जो यह साधु अपने शरीर पर भस्म, लंबी जटाओं और अपने इस अवतार की वजह से लोगों में अलग नजर आते हैं। कुंभ के दौरान यह नागा स्वरूप में आते हैं और इस समय पर इनका प्रभाव अद्वितीय माना जाता है।

कुंभ के बाद कहां जाते हैं नागा साधु?
कुंभ के मेले के समाप्त होने के बाद यह नागा साधु कहां जाते हैं। इन नागा साधुओं का कहीं पता नहीं चलता। लाखों की संख्या में आने वाले साधु अचानक से ही गायब हो जाते हैं और फिर किसी को भी नजर नहीं आते। नागा साधू वाराणसी के महापरिनिर्वाण अखाड़ा और जूना अखाड़े से आते हैं। उन्हें कुंभ के दौरान शाही स्नान के लिए अनुमति दी जाती है और वह अन्य श्रद्धालुओं से पहले यहां पर स्नान करने के लिए आते हैं। कुंभ के मेले के खत्म होने के बाद नागा साधु अपने-अपने अखाड़े में लौटकर ध्यान और साधना में लीन हो जाते हैं और वह धार्मिक शिक्षा भी देते हैं। साथ ही अपने जीवन को तपस्वी तरीके से बिताते हैं।

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कुंभ के बाद निर्वस्त्र नहीं-
नागा साधु कुंभ के बाद निर्वस्त्र नहीं रहते, क्योंकि यह सामज में स्वीकार्य नहीं होता। इसलिए यह गमछा पहनकर आश्रम में निवास करते हैं और उनका दिगंबर स्वरूप सिर्फ कुंभ के दौरान ही नजर आता है। कई नागा साधु हिमालय के जंगलों में तपस्या करने जाते हैं। वह वहां कठोर साधना करते हैं। फल फूल खाकर जीवन निर्वाह करते हैं और आत्मज्ञान की प्राप्ति के लिए प्रयासरत रहते हैं। उनके बाद यह नागा साधु प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन जैसे प्रमुख स्थलों में निवास के लिए चले जाते हैं। वह वहां दीक्षा लेकर अपने जीवन के धार्मिक रूप को बिताते हैं और समय-समय पर धार्मिक यात्राएं करते हैं। नागा साधु और अपने अलग अवतार के लिए जाने जाते हैं। इसीलिए भी यह लोग कुंभ के मेले में लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचते हैं।
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