Stambheshwar Mahadev Temple
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    Stambheshwar Mahadev Temple: गुजरात की यात्रा पर आने वाले ज्यादातर पर्यटक सीधे पाटन में रानी की वाव देखने चले जाते हैं। लेकिन अगर आप अरब सागर की तरफ थोड़ा सा रुख मोड़ें और कवि कंबोई नामक छोटे से गांव के पास पहुंचें, तो आपको एक ऐसी जगह मिलेगी, जो किसी सपने जैसी लगती है। यहां मौजूद है स्तंभेश्वर महादेव मंदिर, जो दिन में दो बार समुद्र के नीचे गायब हो जाता है और फिर वापस प्रकट होता है।

    समुद्र तट से मात्र 100 मीटर की दूरी पर स्थित इस मंदिर की किस्मत पूरी तरह से ज्वार-भाटा से जुड़ी हुई है। जब पानी बढ़ता है, तो लहरें धीरे-धीरे इस पूरी इमारत को निगल लेती हैं। खंभे, दीवारें, गर्भगृह सब कुछ पानी के नीचे चला जाता है और केवल शिवलिंग का ऊपरी हिस्सा पानी की सतह से दिखाई देता है। जब समुद्र पीछे हटता है, तो मंदिर फिर से शांति से पत्थर-दर-पत्थर प्रकट हो जाता है। स्थानीय लोग इसे ‘गायब मंदिर’ कहते हैं और इस बदलाव को देखना हर बार एक जादुई अनुभव होता है।

    पत्थर के खंभों की ताकत-

    स्तंभेश्वर नाम मंदिर के मजबूत पत्थर के खंभों यानी स्तंभ से आया है, जिन्होंने इस मंदिर को सालों तक समुद्र में डूबने के बावजूद टिकाए रखा है। समुद्र की हलचल के कारण यहां पूजा का समय घड़ी से नहीं, बल्कि ज्वार-भाटा के हिसाब से तय होता है। भक्त जब पानी कम होता है, तब पूजा करने आते हैं, यह जानते हुए कि जल्द ही पानी वापस आ जाएगा। महाशिवरात्रि के दिन यहां का माहौल बिल्कुल अलग होता है, जब भक्त बढ़ती लहरों के साथ अपनी प्रार्थना का समय तय करते हैं।

    यह सिर्फ एक नजारा नहीं है, बल्कि इसके पीछे एक पुरानी पौराणिक कथा भी है। स्कंद पुराण में विश्वास के अनुसार, भगवान कार्तिकेय ने राक्षस तारकासुर को मारने के बाद उस कृत्य के बोझ से शांति पाने के लिए तीन शिवलिंग स्थापित किए थे। माना जाता है, कि स्तंभेश्वर महादेव उन्हीं पवित्र स्थलों में से एक है, जिसे देवी पार्वती और अन्य देवताओं की उपस्थिति में विधि-विधान से स्थापित किया गया था।

    कैसे पहुंचें इस अनोखे मंदिर तक-

    इस मंदिर तक पहुंचने के लिए थोड़ी योजना बनानी पड़ती है, लेकिन यही तो इस अनुभव का हिस्सा है। स्तंभेश्वर महादेव वडोदरा से लगभग 75 किलोमीटर और अहमदाबाद से करीब 160 किलोमीटर दूर है। यहां सड़क मार्ग से आसानी से पहुंचा जा सकता है।

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    यात्रियों को सलाह दी जाती है, कि वे पहले से ज्वार-भाटा का समय जरूर देख लें, जिससे वह मंदिर तक पैदल जा सकें और उसे किनारे से गायब होते हुए न देखना पड़े। जब पानी कम होता है, तभी मंदिर में दर्शन और पूजा की जा सकती है। यह अनुभव ऐसा है, जो जिंदगी भर याद रहता है। समुद्र की लहरों के बीच खड़ा यह मंदिर प्रकृति और आस्था का अद्भुत संगम है, जहां हर रोज दो बार प्रकृति अपना करिश्मा दिखाती है।

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    By sumit

    मेरा नाम सुमित है और मैं एक प्रोफेशनल राइटर और जर्नलिस्ट हूँ, जिसे लिखने का पाँच साल से ज़्यादा का अनुभव है। मैं टेक्नोलॉजी और लाइफस्टाइल टॉपिक के साथ-साथ रिसर्च पर आधारित ताज़ा खबरें भी कवर करता हूँ। मेरा मकसद पढ़ने वालों को सही और सटीक जानकारी देना है।