Durga Puja 2025: इस साल 22 सितंबर से शुरू हुआ नवरात्रि का पावन पर्व पूरे देश में धूमधाम से मनाया जा रहा है। नौ दिनों तक चलने वाले इस महत्वपूर्ण त्योहार के साथ ही देशभर में भक्ति और उत्सव का माहौल दिखाई दे रहा है। खासकर बंगाल, असम और पूर्वी भारत के राज्यों में दुर्गा पूजा की तैयारियां अपने चरम पर हैं। लोग बड़े उत्साह और श्रद्धा के साथ माता दुर्गा के स्वागत की तैयारी में जुटे हैं।
इस बार नवरात्रि के सबसे महत्वपूर्ण दिन महा अष्टमी और महा नवमी का विशेष महत्व है। ये वही दिन हैं, जब दुर्गा पूजा का उत्सव अपने चरम पर पहुंचता है और भक्तगण विशेष रूप से माता दुर्गा की आराधना करते हैं।
दुर्गा पूजा 2025 पांच दिनों का महापर्व-
दुर्गा पूजा का पांच दिनों तक चलने वाला यह भव्य उत्सव 27 सितंबर से शुरू हो रहा है। यह त्योहार केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं है, बल्कि यह सांस्कृतिक एकता और सामाजिक सद्भावना का भी प्रतीक है। इस दौरान पूरा समुदाय एक साथ आकर माता दुर्गा के स्वागत की तैयारी करता है।
इस साल दुर्गा विसर्जन 2 अक्टूबर, गुरुवार को होगा, जो कि गांधी जयंती का दिन भी है। यह संयोग इस पर्व को और भी विशेष बनाता है, क्योंकि यह दिन अहिंसा और सत्य के मार्ग का भी प्रतीक है। पंडालों में भक्तों की भारी भीड़ देखने को मिल रही है। लोग अपने परिवार और मित्रों के साथ माता दुर्गा के दर्शन के लिए आ रहे हैं। यह समय माता दुर्गा के मायके आने का है, जब वह अपने भक्तों से मिलने धरती पर आती हैं।
महा अष्टमी 30 सितंबर का विशेष महत्व-
इस साल महा अष्टमी 30 सितंबर को मनाई जाएगी। यह दिन दुर्गा पूजा के सबसे महत्वपूर्ण दिनों में से एक माना जाता है। इस दिन माता दुर्गा के महागौरी रूप की विशेष पूजा की जाती है। महागौरी माता आदिशक्ति का एक पवित्र रूप हैं, जो शुद्धता, शांति और स्थिरता का प्रतीक हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, इसी दिन माता दुर्गा ने चंडा, मुंडा और रक्तबीज नामक असुरों का वध किया था। यह विजय अच्छाई की बुराई पर जीत का प्रतीक है। भक्तगण इस दिन विशेष रूप से कन्या पूजन भी करते हैं और नौ छोटी लड़कियों को माता दुर्गा के नौ रूप मानकर उनकी पूजा करते हैं।
अष्टमी तिथि 29 सितंबर को दोपहर 4:31 बजे शुरू होगी और 30 सितंबर को शाम 6:06 बजे समाप्त होगी। इस समय के दौरान विशेष पूजा-अर्चना का आयोजन किया जाता है।
महा नवमी 1 अक्टूबर का महत्वपूर्ण दिन-
महा नवमी 1 अक्टूबर, बुधवार को मनाई जाएगी। यह दिन बेहद खास है, क्योंकि इस दिन माता दुर्गा को महिषासुरमर्दिनी के रूप में पूजा जाता है। यह नाम इसलिए है, क्योंकि इसी दिन माता दुर्गा ने भैंस रूपी राक्षस महिषासुर का वध किया था।
यह कहानी हमें सिखाती है, कि कितनी भी बड़ी बुराई हो, अंततः अच्छाई की ही जीत होती है। महा नवमी का दिन इस शक्तिशाली संदेश का प्रतीक है। इस दिन भक्तगण विशेष रूप से माता की शक्ति और साहस की आराधना करते हैं। नवमी तिथि 30 सितंबर को शाम 6:06 बजे से शुरू होकर 1 अक्टूबर को शाम 7:01 बजे तक रहेगी। इस दौरान विशेष संध्या आरती और भोग का आयोजन किया जाता है।
दशहरा 2 अक्टूबर को विजयदशमी-
दुर्गा पूजा का समापन दशहरा या विजयदशमी के साथ होता है, जो इस बार 2 अक्टूबर को मनाया जाएगा। यह दिन न केवल माता दुर्गा की महिषासुर पर विजय का प्रतीक है, बल्कि भगवान राम की रावण पर विजय का भी उत्सव है।
दशमी तिथि 1 अक्टूबर को शाम 7:01 बजे शुरू होकर 2 अक्टूबर को शाम 7:10 बजे तक रहेगी। विजय मुहूर्त 2 अक्टूबर को दोपहर 2:09 बजे से 2:56 बजे तक है, जो कि बेहद शुभ समय माना जाता है। अपराह्न पूजा का समय दोपहर 1:21 बजे से 3:44 बजे तक है।
संधि पूजा का विशेष महत्व-
अष्टमी और नवमी के बीच का समय संधि पूजा के लिए बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। यह समय बहुत ही शुभ होता है और इस दौरान की गई पूजा का विशेष फल मिलता है। भक्तगण इस समय विशेष रूप से माता दुर्गा से अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना करते हैं।
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इस त्योहारी मौसम में हर व्यक्ति अपने अपने तरीके से मां दुर्गा की आराधना कर रहा है। कहीं भव्य पंडालों में सामूहिक उत्सव हो रहा है, तो कहीं घरों में पारिवारिक समारोह में पूजा हो रही है। यह विविधता ही हमारी संस्कृति की सबसे बड़ी ताकत है।असीम शक्ति और करुणा की देवी माता दुर्गा का यह पर्व हमें जीवन में अंधकार पर प्रकाश की विजय का संदेश देता है। हर भक्त अपने मन में यह उम्मीद लेकर माता के सामने झुकता है, कि उनकी कृपा से जीवन में सुख-शांति और समृद्धि आएगी।
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