Ashta Chiranjeevis: जब भी अमरता की बात होती है, तो हमारे मन में सबसे पहले भगवान हनुमान का चित्र आता है। राम भक्त वानर, जो शक्ति, विनम्रता और अटूट भक्ति के प्रतीक हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं, कि हनुमान जी अकेले नहीं हैं, जिन्हें पृथ्वी पर तब तक रहना है, जब तक यह संसार बना रहेगा? सनातन धर्म की विस्तृत परंपरा में एक रहस्यमय वर्ग है – अष्ट चिरंजीवी। ये आठ अमर व्यक्तित्व हैं, जिन्हें अपनी प्रसिद्धि के लिए नहीं, बल्कि धर्म, ज्ञान, भक्ति और ब्रह्मांडीय व्यवस्था के स्तंभों को युगों-युगों तक आगे बढ़ाने के लिए चुना गया है।
धर्म के संरक्षक क्यों हैं ये अमर?
ये आठों व्यक्तित्व मानवीय अनुभव के गहरे पहलुओं को दर्शाते हैं। कुछ ऋषि हैं, कुछ योद्धा, कुछ राजा और कुछ समाज से बहिष्कृत। लेकिन अंततः ये सभी उन शाश्वत मूल्यों के प्रतिनिधि हैं, जो सब कुछ समाप्त हो जाने के बाद भी बने रहने चाहिए। इनकी कहानियां केवल प्राचीन नहीं हैं, बल्कि आज भी कलियुग की अराजकता के बीच जीवंत सांस ले रही हैं।
अश्वत्थामा-
गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा कुरुक्षेत्र युद्ध के महान योद्धा थे। अपने पिता की तरह वे भी शस्त्र विद्या में निपुण और अत्यंत वीर थे। लेकिन दुर्योधन की मृत्यु देखकर क्रोध में आकर उन्होंने सोते हुए योद्धाओं की हत्या की और अभिमन्यु के गर्भस्थ शिशु पर ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया। इस अधर्म के लिए भगवान कृष्ण ने उन्हें शाप दिया, कि वे हमेशा घावों से कष्ट झेलते हुए, दुखी और निराश्रित होकर पृथ्वी पर भटकते रहेंगे।
अश्वत्थामा का जीवन हमें सिखाता है, कि धार्मिकता के बिना अमरता वरदान नहीं, बल्कि अभिशाप है। बिना विवेक के शक्ति आत्मा को नष्ट कर देती है।
महाबली-
महाबली एक शक्तिशाली असुर राजा थे, लेकिन साथ ही वे एक महान शासक, कर्तव्यपरायण, विनम्र और उदार भी थे। जब उनकी शक्ति स्वर्ग और पृथ्वी के संतुलन के लिए खतरा बनी, तो भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर उनसे तीन पग भूमि मांगी। महाबली ने बिना झिझक अपना सब कुछ दान कर दिया। विष्णु जी उनकी विनम्रता से इतने प्रभावित हुए, कि उन्होंने महाबली को अमरता प्रदान की और सुतल लोक का राज्य दिया।
महाबली की कहानी बताती है, कि अहंकार दंड से नहीं, समर्पण से जीता जाता है। विनम्रता और धर्म के माध्यम से असुर भी कृपा पा सकता है।
वेद व्यास ज्ञान के शाश्वत संरक्षक-
महर्षि वेद व्यास ने वेदों का संकलन किया, महाभारत की रचना की और अनगिनत पुराणों को लिखा। उनका उद्देश्य था आध्यात्मिक ज्ञान को भविष्य की पीढ़ियों तक पहुंचाना। शास्त्रों के अनुसार व्यास जी आज भी हिमालय में निवास करते हैं और पर्दे के पीछे से संतों और ऋषियों की सहायता करते हैं। ज्ञान शाश्वत है और उसे धारण करने वाला ऋषि भी अमर है।
विभीषण धर्म को चुनने का साहस-
रावण के भाई विभीषण ने पारिवारिक वफादारी से ऊपर धर्म को चुना। उन्होंने अपने ही परिवार के विरुद्ध राम जी का साथ दिया और रावण के पतन के बाद लंका के राजा बने। उन्हें लंका में धर्म की पुनर्स्थापना के लिए दीर्घायु प्राप्त हुई। विभीषण का जीवन दिखाता है, कि सामाजिक बहिष्कार की परवाह किए बिना सत्य के लिए खड़े होना अमर आत्मा का निर्माण करता है।
परशुराम-
भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुराम को धर्म से भ्रष्ट क्षत्रियों का संहार करने के लिए भेजा गया था। अपना कार्य पूरा करने के बाद वह हिंसा का त्याग कर ध्यान में लीन हो गए। शास्त्रों के अनुसार वे अंतिम अवतार कल्कि को प्रशिक्षित करने के लिए प्रकट होंगे। न्यायसंगत क्रोध भी अंततः शांति के सामने नतमस्तक होता है।
मार्कंडेय-
मार्कंडेय की मृत्यु 16 वर्ष की आयु में निर्धारित थी। लेकिन भगवान शिव की निरंतर भक्ति के कारण जब यमराज उन्हें लेने आए, तो मार्कंडेय ने शिवलिंग को कसकर पकड़ लिया। भगवान शिव ने प्रकट होकर यमराज को हराया और मार्कंडेय को शाश्वत यौवन और अमरता प्रदान की। मार्कंडेय ने प्रलय भी देखा है और विष्णु जी द्वारा ब्रह्मांड के चक्र के दर्शन भी कराए गए हैं। शुद्ध भक्ति के सामने भाग्य भी नतमस्तक हो जाता है।
कृपाचार्य-
कौरवों और पांडवों दोनों के गुरु कृपाचार्य धर्म की गहरी समझ रखते थे। महाभारत युद्ध के दौरान उन्होंने संयम बनाए रखा। देवताओं द्वारा उन्हें कलियुग में जीवित रहने के लिए चुना गया है और अगले युग में वे सप्तर्षियों में से एक होंगे। सच्चा ज्ञान प्रतिक्रिया नहीं करता, वह देखता है, इंतज़ार करता है, फिर पीढ़ियों में शिक्षा देता है।
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अमरता का सच्चा अर्थ-
अष्ट चिरंजीवी की कहानियां हमें बताती हैं, कि अमरता का मतलब मृत्यु से बचना नहीं है, बल्कि उन मूल्यों को जीवंत रखना है, जो हमेशा जीवित रहने योग्य हैं। ये आठों व्यक्तित्व आज भी हमारे बीच हैं – कभी मार्गदर्शन के रूप में, कभी चेतावनी के रूप में और कभी प्रेरणा के रूप में। इनकी उपस्थिति हमें याद दिलाती है, कि जीवन में वास्तविक विजय भौतिक सफलता में नहीं, बल्कि धर्म, सत्य और प्रेम को अपनाने में है।
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