Navratri 2025: नवरात्रि के नौ दिनों में जो सबसे पवित्र और भावनात्मक क्षण होता है, वो है कन्या पूजन का। यह वो समय है, जब छोटी बच्चियों के मासूम चेहरों में माता दुर्गा के दिव्य रूप के दर्शन होते हैं। लेकिन इस बार 2025 में थोड़ी सी दुविधा है, कि कन्या पूजन कब करना चाहिए, 30 सितंबर को या 1 अक्टूबर को। आइए इस सवाल का जवाब विस्तार से जानते हैं और समझते हैं, कि क्यों यह परंपरा इतनी विशेष है।
नवरात्रि का यह त्योहार सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह हमारी संस्कृति में नारी शक्ति के सम्मान का प्रतीक है। जब हम छोटी लड़कियों के पैर धोकर उनकी पूजा करते हैं, तो यह सिर्फ एक रस्म नहीं है, बल्कि यह स्त्री शक्ति के प्रति हमारी श्रद्धा का भाव है।
कन्या पूजन की परंपरा और इसका महत्व-
कन्या पूजन या कुमारी पूजा नवरात्रि की सबसे महत्वपूर्ण परंपराओं में से एक है। यह प्रथा हजारों साल पुरानी है और इसमें 2 से 10 साल की छोटी लड़कियों को माता दुर्गा का रूप मानकर उनकी पूजा की जाती है। यह परंपरा इतनी गहरी है, कि आज भी हर घर में इसे बहुत ही श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है।
इस पूजा में बच्चियों के पैर धोए जाते हैं, उन्हें तिलक लगाया जाता है, फूल चढ़ाए जाते हैं और फिर उन्हें खाना खिलाया जाता है। आमतौर पर पूरी, हलवा और चना बनाकर उन्हें भोग लगाया जाता है। बच्चियों को कपड़े, खिलौने और दक्षिणा भी दी जाती है। यह सब करने के बाद उनसे आशीर्वाद लिया जाता है।
2025 में कन्या पूजन की तारीख में उलझन-
इस साल थोड़ी सी दुविधा है, कि कन्या पूजन कब करना चाहिए। हिंदू पंचांग के अनुसार, अष्टमी तिथि 29 सितंबर को दोपहर 4:31 बजे शुरू होगी और 30 सितंबर को शाम 6:06 बजे समाप्त होगी। इसका मतलब यह है, कि 30 सितंबर 2025 कन्या पूजन के लिए सबसे शुभ दिन है।
वहीं नवमी तिथि 30 सितंबर को शाम 6:06 बजे से शुरू होकर 1 अक्टूबर की शाम तक रहेगी। इसलिए कुछ परिवार जो नवमी पर कन्या पूजन करने की परंपरा रखते हैं, वे 1 अक्टूबर को यह पूजा कर सकते हैं। दरअसल, यह निर्भर करता है, कि आपके परिवार में कौन सी परंपरा चली आ रही है।
30 सितंबर को कन्या पूजन का शुभ मुहूर्त-
30 सितंबर 2025 को कन्या पूजन के लिए सबसे शुभ समय अभिजीत मुहूर्त में है, जो सुबह 11:47 बजे से दोपहर 12:35 बजे तक है। यह समय बेहद शुभ माना जाता है और इस दौरान की गई पूजा का विशेष फल मिलता है। भक्तगण को सलाह दी जाती है, कि वे राहु काल में पूजा न करें, जो उस दिन दोपहर 3:09 बजे से शाम 4:39 बजे तक रहेगा।
यह समय इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इस दौरान सभी ग्रहों की स्थिति अनुकूल रहती है और माता दुर्गा की कृपा प्राप्त करने के लिए यह सबसे उत्तम समय होता है। अगर किसी कारणवश इस समय पूजा नहीं हो सकती, तो सुबह या शाम के समय भी कन्या पूजन किया जा सकता है।
कन्या पूजन की विधि और नियम-
कन्या पूजन की शुरुआत सुबह स्नान करके और साफ कपड़े पहनकर करनी चाहिए। घर को साफ करके पूजा स्थल को सजाना चाहिए। फिर 9 छोटी लड़कियों को आमंत्रित करना चाहिए, लेकिन अगर 9 नहीं मिल सकतीं, तो कम से कम 2 लड़कियों की पूजा जरूर करनी चाहिए।
पहले बच्चियों के पैर धोकर उन्हें आसन पर बिठाना चाहिए। फिर उनके माथे पर तिलक लगाना चाहिए और हाथ में कलावा बांधना चाहिए। इसके बाद उनकी आरती करके उन पर फूल चढ़ाना चाहिए। फिर उन्हें पूरी, हलवा, चना और अन्य व्यंजन परोसना चाहिए। भोजन के बाद उन्हें दक्षिणा, मिठाई और उपहार देना चाहिए।
अष्टमी या नवमी कौन सा दिन चुनें
अधिकतर पंचांग और धार्मिक परंपराएं अष्टमी यानी 30 सितंबर 2025 को कन्या पूजन करने की सलाह देती हैं। यह दिन महा अष्टमी का है और इस दिन माता दुर्गा की विशेष कृपा रहती है। लेकिन अगर किसी कारण से इस दिन पूजा नहीं हो सकती, तो नवमी यानी 1 अक्टूबर को भी कन्या पूजन कर सकते हैं। यह निर्णय अक्सर पारिवारिक परंपरा और स्थानीय रीति-रिवाजों पर निर्भर करता है। कुछ परिवारों में पीढ़ियों से अष्टमी पर कन्या पूजन होता आया है, तो कुछ में नवमी पर। दोनों ही दिन शुभ हैं और माता दुर्गा की कृपा प्राप्त करने के लिए उत्तम हैं।
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कन्या पूजन का आध्यात्मिक महत्व-
कन्या पूजन सिर्फ एक धार्मिक कर्मकांड नहीं है, बल्कि इसका गहरा आध्यात्मिक अर्थ है। यह परंपरा हमें सिखाती है, कि हर बच्ची में दिव्यता है और हमें उसका सम्मान करना चाहिए। यह नारी शक्ति के प्रति हमारे सम्मान का प्रतीक है और समाज में महिलाओं के महत्व को दर्शाता है।
माना जाता है, कि कन्या पूजन करने से घर में सुख-समृद्धि आती है, माता दुर्गा की कृपा बनी रहती है और परिवार में खुशहाली रहती है। यह परंपरा हमारी संस्कृति की सुंदरता को दिखाती है, जहा हम बच्चियों को देवी का रूप मानकर उनका सम्मान करते हैं।
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