Shooting Star: क्या आपने कभी आसमान में टूटता तारा (Shooting Star) देखा है, अधिकतर लोगों का कहना है कि टूटते हुए तारे को देखकर Wish मांगने पर वह पूरी हो जाती है। यह अंधविश्वास आज नहीं बल्कि सदियों से चला आ रहा है टूटता तारा देखना सच में बहुत दुर्लभ होता है, इसी वजह से जो लोग इसे देखते हैं। वह अपने आप को ही भाग्यशाली मानते हैं, लेकिन क्या सच में टूटता हुआ तारा देखने से कोई शुभ काम होता है या किसी की इच्छा पूरी होती है, आइए टूटते हुए तारे के बारे में विस्तार से जानते हैं-
तारों को देखकर की जाती थी भविष्यवाणी-
लोग पुराने समय से रात के समय तारों को देखकर दिशाओं का पता लगाया करते थे और इसके साथ ही इससे कई प्रकार की भविष्यवाणी भी की जाती थी। पुराने समय के लोगों मानना था कि टूटता तारा देखने से इंसान की ज़िन्दगी में बदलाव आता है।
टूटते तारों को देखना हमेशा अच्छा-
ऐसा भी नहीं कहा जा सकता कि टूटते हुए तारे को देखना हमेशा अच्छा हो, बहुत से लोग टूटते हुए तारों से अपनी इच्छाएं मांगते हैं, पुराने समय में अलग-अलग संस्कृति के लोग तारों का इस्तेमाल दिशा सूचक यानी एक कंपास के रूप में करते थे।
फसल की भविष्यवाणी करते थे-
पुराने समय में तारों को देख कर लोग फसल की भविष्यवाणी भी किया करते थे, कुछ लोगों का मानना था कि टूटा हुआ तारा देवताओं, ब्रह्मांड और शुद्धिकरण से जुड़े हुए राज बताता है।
नई आत्माएं-
पुराने समय में लोगों का मानना था कि टूटता हुआ तारा नई आत्माएं होते है जो जन्म लेने के लिए आसमान से पृथ्वी पर आ रही हैं। इसके अलावा कुछ अन्य लोगों का कहना है कि यह वह मृत आत्माएं होती हैं जो हमें याद दिलाती हैं कि वह अभी भी यहां पर हैं।
चट्टान का छोटा सा टुकड़ा-
टूटते हुए तारे को हम आसमान में उड़ते हुए देखते हैं, लेकिन असल में वह एक तारा नहीं होता, टूटता हुआ तारा असल में आसमान में चट्टान या धूल का एक छोटा सा टुकड़ा होता है। जो अंतरिक्ष से आकर पृथ्वी के वायुमंडल से टकरा जाता है, जब भी चटाने पृथ्वी के वायुमंडल में आती हैं तो घर्षण की वजह से जलने लगती हैं, इसी वजह से एक जबरदस्त चमक पैदा होती है।
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उल्कापिंड-
हालांकि असल में टूटते तारे वही होते हैं जिन्हें खगोल शास्त्री उल्का कहते हैं, ज्यादातर उल्कापिंड पृथ्वी के वायुमंडल में जलकर खत्म हो जाते हैं और जमीन तक नहीं पहुंच पाते। लेकिन कभी-कभी कुछ उल्कापिंड इतने बड़े होते हैं कि वह जब पृथ्वी के वायुमंडल में आते तो घर्षण पैदा होती है इसलिए वह पूरी तरह से जल नहीं पाते और पृथ्वी की सतह पर पहुंच जाते हैं, तब उन्हें उल्कापिंड कहा जाता है।