Shaktipeeth
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    Shaktipeeth: जब भी हम मंदिरों के बारे में सोचते हैं, तो मन में फूल, धूप-दीप, घंटी और मंत्रों की आवाज आती है। लेकिन देवी मां के कुछ सबसे पुराने मंदिरों में फूल मुख्य चढ़ावा नहीं था। वहां खून चढ़ाया जाता था। ये सुनने में डरावना लगता है, लेकिन ये हकीकत है भारत के कई प्राचीन शक्तिपीठों की।

    पूरे भारत में फैले शक्तिपीठ उन पवित्र स्थानों को कहते हैं, जहां देवी सती के शरीर के अंग गिरे थे। ये मंदिर सदियों से दैवीय शक्ति के केंद्र माने जाते हैं, जहां लोग रक्षा, शक्ति और आशीर्वाद के लिए पूजा करते आए हैं। जबकि ज्यादातर शक्तिपीठों में आज प्रकाश, खुशबू और मिठाई का प्रसाद चढ़ाया जाता है, कुछ जगहों पर आज भी पुरानी, काली और आदिम परंपरा जिंदा है। यहां देवी को खून चढ़ाया जाता था, जानवरों का खून, या फिर पुराने जमाने में इंसानी बलि का भी रिवाज था। ये क्रूरता नहीं, बल्कि एक ऐसी सोच का हिस्सा था, जहां शक्ति को सृजन और विनाश दोनों की देवी माना जाता था, जो पूर्ण समर्पण की मांग करती थी, चाहे इसके लिए खून ही क्यों न देना पड़े।

    कामाख्या देवी, असम-

    टाइम्सलाइफ के मुताबिक, शायद सबसे मशहूर खून चढ़ाने वाला मंदिर है असम का कामाख्या देवी। ये भारत के सबसे पावरफुल शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। यहां देवी सती की योनि गिरी थी। कामाख्या को खास बनाता है अंबुबाची मेला, जो हर साल मनाया जाता है। इस फेस्टिवल में तीन दिन मंदिर बंद रहता है, क्योंकि माना जाता है, कि देवी मां का मासिक धर्म हो रहा है।

    तारापीठ, पश्चिम बंगाल-

    तारापीठ सबसे इंटेंस तांत्रिक शक्तिपीठों में से एक है, जो देवी तारा यानी काली माता के एक रूप से जुड़ा है। यहां सती की आंख (तारा) गिरी थी। इस मंदिर में लंबे समय से जानवरों की बलि दी जाती रही है, खासकर बकरों की। खून को सबसे शुद्ध चढ़ावा माना जाता है, देवी के भयानक रूप को खुश करने के लिए। तांत्रिक साधक मानते हैं, कि देवी खून की मांग करती हैं क्योंकि वो जीवन-शक्ति और विनाश दोनों हैं। यहां के रिचुअल अक्सर श्मशान घाट में किए जाते हैं और ये मंदिर सदियों से ऑकल्ट प्रैक्टिस का केंद्र रहा है। आज भी यहां रहस्यमय तांत्रिक साधना होती है।

    कालीघाट, कोलकाता-

    कालीघाट एक और शक्तिपीठ है. जहां सती का दाहिना अंगूठा गिरा था। ये काली माता के सबसे ज्यादा विजिट किए जाने वाले मंदिरों में से एक है। हालांकि आम भक्त यहां मिठाई और फूल चढ़ाते हैं, लेकिन ऐतिहासिक रूप से ये जानवरों की बलि का स्थान रहा है। काली माता को खून चढ़ाना उनकी विनाशकारी एनर्जी को काबू में करने और सुरक्षा के लिए चैनल करने का तरीका माना जाता था।

    कुछ रिचुअल में आज भी यहां बकरों की बलि दी जाती है, हालांकि रिफॉर्म मूवमेंट की वजह से ये प्रैक्टिस कम हो गई है। फिर भी कालीघाट में खूंखार देवी की इमेज उनकी पहचान का केंद्रीय हिस्सा है।

    हिंगलाज माता, पाकिस्तान-

    आज के पाकिस्तान में स्थित हिंगलाज माता सबसे पुराने शक्तिपीठों में से एक है, जहां सती का सिर गिरा था। दूसरे मंदिरों के उलट, हिंगलाज मकरान रेगिस्तान की गहराई में एक गुफा मंदिर है, जिसकी न सिर्फ हिंदू बल्कि स्थानीय मुस्लिम भी इज्जत करते हैं। पुरानी परंपराओं में हिंगलाज जानवरों की बलि के लिए जाना जाता था।

    आइडिया ये था, कि यात्रा करने वाले तीर्थयात्री खतरनाक रेगिस्तानी इलाके से सुरक्षित निकलने के लिए खून चढ़ाते थे। हालांकि ये प्रैक्टिस फेड हो गई है, लेकिन मंदिर की कहानियों में खून के चढ़ावे की याद आज भी बाकी है।

    ज्वालामुखी देवी, हिमाचल प्रदेश-

    ज्वालामुखी में सती की जीभ गिरी थी और ये मंदिर इसलिए यूनीक है, कि यहां देवी धरती से निकलती अनंत आग के रूप में प्रकट होती हैं। जबकि आज के मंदिर में खून का चढ़ावा नहीं होता, लेकिन ऐतिहासिक रिकॉर्ड बताते हैं. कि पहले यहां तांत्रिक रिचुअल में बलि शामिल थी। आग को देवी का स्वयं का रूप माना जाता था और खून से उन्हें डायरेक्ट फीड किया जाता था।समय के साथ इन प्रैक्टिस की जगह घी और अनाज के सिंबॉलिक चढ़ावे ने ले ली, लेकिन मंदिर का बलि से कनेक्शन गहराई में जड़ें जमाए हुए है।

    उग्रतारा मंदिर, असम-

    गुवाहाटी के पास उग्रतारा मंदिर एक और जगह है, जहां एक समय खून के चढ़ावे का दबदबा था। देवी उग्रतारा के इस भयानक रूप को समर्पित मंदिर में ऐतिहासिक रूप से बकरों, कबूतरों और यहां तक कि भैंसों की बलि दी जाती थी। विश्वास था. कि उग्रतारा, योद्धा देवी के रूप में, भक्ति और समर्पण के निशान के तौर पर खून की मांग करती थीं। आज भी यहां बलि जारी है, हालांकि काफी कम स्केल पर। ये मंदिर प्राचीन रीति-रिवाज और आधुनिक संवेदनाओं के बीच चलने वाले टेंशन को दर्शाता है।

    कंकालीतला, पश्चिम बंगाल-

    कंकालीतला में सती की कमर (कंकाल) गिरी थी। ये शक्तिपीठ तारापीठ या कालीघाट जितना मशहूर नहीं है, लेकिन इसकी अपनी भयानक परंपराएं हैं। ऐतिहासिक रूप से यहां देवी की शक्ति जगाने के लिए खून के चढ़ावे जरूरी माने जाते थे। तांत्रिक साधक कंकालीतला आते रहते थे और यहां के रिचुअल में फूलों की कोमल भक्ति के बजाय कच्चे चढ़ावे पर जोर दिया जाता था। आज भले ही मंदिर में ट्रेडिशनल पूजा होती है, लेकिन इसका इतिहास खून की बलि की यादों से गूंजता है।

    बहुला, पश्चिम बंगाल-

    बहुला में सती का बायां हाथ गिरा था। ये मंदिर छोटा और कम जाना जाता है, लेकिन एक समय तांत्रिक परंपराओं से जुड़ी शक्ति पूजा का प्रमुख केंद्र था। यहां खून की बलि रिचुअल का केंद्रीय हिस्सा थी, क्योंकि माना जाता था, कि देवी को अपने भक्तों के चढ़ावे के जीवन तत्व की जरूरत है। हालांकि आधुनिक प्रैक्टिस सिंबॉलिक पूजा की तरफ शिफ्ट हो गई है, लेकिन बहुला आज भी उन जगहों में से एक है, जहां शक्ति भक्ति के भयानक अतीत को याद किया जाता है।

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    भक्ति में खून का मतलब क्या था-

    आखिर देवी को खून क्यों चढ़ाया जाता था? तांत्रिक समझ के अनुसार, खून जीवन का सार है। फूल मुरझा जाते हैं, मिठाई खराब हो जाती है, लेकिन खून को सबसे पावरफुल गिफ्ट माना जाता था, जीवन का जीवनदाता को वापस लौटाना। भक्तों के लिए ये चढ़ावे सिर्फ हिंसा नहीं, बल्कि पूर्ण समर्पण के काम थे। खून देकर, चाहे जानवरों की बलि के जरिए हो या सिंबॉलिक रिचुअल से, वे सृजन और विनाश के उस चक्र की पुष्टि करते थे, जिसकी शक्ति माता है।

    आज इनमें से कई प्रैक्टिस की जगह सिंबॉलिक चढ़ावों ने ले ली है, जो बदलते नैतिक और सामाजिक रवैयों को दर्शाता है। फिर भी इन शक्तिपीठों में खून की बलि की याद हमें याद दिलाती है, कि भक्ति हमेशा कोमल नहीं होती।

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