Failed Indian Airlines: भारत में हवाई यात्रा का सपना हर किसी ने देखा है। सस्ती टिकट, ज्यादा फ्लाइट्स और बेहतर कनेक्टिविटी, लेकिन हकीकत यह है, कि भारत को एयरलाइंस इंडस्ट्री का कब्रिस्तान भी कहा जाता है। यहां दर्जनों एयरलाइन कंपनियां आईं, बड़े-बड़े वादे किए और फिर चुपचाप इतिहास बन गईं। सवाल यही है, कि आखिर भारत में एयरलाइंस चलाना इतना मुश्किल क्यों है?
एक लंबी लिस्ट, जो डराती है-
अगर हम बीते सालों पर नजर डालें, तो फेल हुई एयरलाइंस की लिस्ट काफी लंबी है। किंगफिशर एयरलाइंस, जेट एयरवेज, एयर डेक्कन, सहारा एयरलाइंस, पैरामाउंट एयरवेज, मोदीलुफ्त, डेक्कन 360, दमानिया एयरवेज, NEPC एयरलाइंस, ZM Air, एयर ओडिशा, ट्रू जेट और ईस्ट वेस्ट एयरलाइन ये सभी कभी आसमान में उड़ान भर रही थीं, लेकिन आज इनके ऑफिस पर ताले लटक चुके हैं और हजारों कर्मचारी बेरोजगार हो चुके हैं। यह सिर्फ कंपनियों की नहीं, बल्कि लाखों टूटे सपनों की कहानी है।

एविएशन फ्यूल सबसे बड़ी मार-
भारत में एयरलाइंस के डूबने की सबसे बड़ी वजह है, एविएशन टर्बाइन फ्यूल (ATF) की कीमत। जेट फ्यूल पर इतना ज्यादा टैक्स लगाया जाता है, कि इसकी कीमत कई बार “लग्ज़री प्रोडक्ट” से भी ज्यादा टैक्स्ड हो जाती है। कुल मिलाकर ATF पर 30 से 40 प्रतिशत तक टैक्स बैठता है। जब ईंधन ही इतना महंगा हो, तो टिकट सस्ती रखना लगभग नामुमकिन हो जाता है।
कमाई रुपये में, खर्च डॉलर में-
एयरलाइंस की एक और बड़ी परेशानी है, करेंसी का खेल। भारत में एयरलाइन कंपनियां टिकट बेचकर कमाई, तो रुपये में करती हैं, लेकिन विमान लीज पर लेने, मेंटेनेंस और स्पेयर पार्ट्स का भुगतान डॉलर में करना पड़ता है। जैसे ही डॉलर मजबूत होता है, कंपनियों की लागत अचानक बढ़ जाती है। रातों-रात घाटा करोड़ों में पहुंच जाता है और बिजनेस मॉडल हिलने लगता है।

सस्ती टिकट की उम्मीद, भारी दबाव-
भारत में पैसेंजर सस्ते टिकट का आदी हो चुका है। लोग चाहते हैं, कि फ्लाइट का किराया ट्रेन के एसी कोच जैसा हो। लेकिन एविएशन एक कैपिटल-इंटेंसिव सेक्टर है, जहां हर उड़ान पर भारी खर्च आता है। ऐसे में कंपनियां प्राइस वॉर में फंस जाती हैं और लंबे समय तक घाटा झेलती रहती हैं, जो आखिरकार बंद होने का कारण बनता है।
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नतीजा रिस्क लेने से डरते हैं बड़े खिलाड़ी-
यही वजह है, कि चाहे मुकेश अंबानी जैसे बड़े उद्योगपति हों या कोई और एयरलाइंस सेक्टर में एंट्री लेने से पहले सौ बार सोचते हैं। भारत में एयरलाइन चलाना सिर्फ प्लेन उड़ाना नहीं, बल्कि टैक्स, डॉलर, फ्यूल और उम्मीदों के तूफान से लड़ना है। भारत में एयरलाइंस इंडस्ट्री की हालत यह बताती है, कि सिर्फ पैसा होना काफी नहीं। जब तक फ्यूल टैक्स, करेंसी प्रेशर और लागत से जुड़ी समस्याओं का समाधान नहीं होता, तब तक नई एयरलाइंस के लिए आसमान में उड़ान भरना आसान नहीं होगा।
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