Rahasyamayi Shiv Mandir: भारत में करोड़ों शिव मंदिर मौजूद हैं, जो किसी न किसी चमत्कार के लिए प्रसिद्ध माने जाते हैं। कई चमत्कारी शिव मंदिर में हजारों किलोमीटर की दूरी से चलकर भक्त दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं। इनमें से ही भगवान शिव के कई मंदिर ऐसे हैं, जिनमें कई प्रकार के रहस्य व चमत्कार मौजूद हैं। जिन्हें देखकर वैज्ञानिक भी हैरान रह जाते हैं। आज हम इस लेख में आपको इनमें से ही भगवान शिव के कुछ रहस्यमई मंदिरों के बारे में बताएंगे, जिनके रहस्य के बारे में आपने शायद ही कभी सुना होगा।
1. गढ़मुक्तेश्वर स्थित गंगा मंदिर-
उत्तर प्रदेश का गढ़मुक्तेश्वर स्थित गंगा मंदिर कई रहस्यों से भरा है, इस मंदिर की सीढ़िया से आवाजें आती हैं। विशेष वाले आकृति इस मंदिर को कब किसने बनवाया, इसका भी कोई निश्चित प्रमाण नहीं है। वैसे तो आपने बहुत से मंदिरों के बारे में सुना होगा, लेकिन आज हम देश के एक बहुचर्चित और रहस्यमई शिव मंदिर के बारे में बात कर रहे हैं।
उत्तर प्रदेश के गढ़मुक्तेश्वर स्थित मंदिर को प्राचीन गंगा मंदिर के नाम से जाना जाता है। यहां मां गंगा के साथ-साथ ब्रह्मा जी की एक सफेद मूर्ति स्थापित है। इसके अलावा मंदिर में एक चमत्कारी शिवलिंग भी है। गढ़मुक्तेश्वर में मौजूद इस मंदिर का उल्लेख पुराणों में भी देखने को मिलता है। देवी गंगा का यह मंदिर शहरी आबादी के से लगभग 80 फीट ऊंचाई पर मौजूद है। गंगा नदी यहां से लगभग 5 किलोमीटर दूर मौजूद है।
हजारों वर्ष से भी पुराना-
यह मंदिर हजारों वर्ष से भी पुराना है। इस रहस्यमई मंदिर की स्थापना कब और किसने की इसका कोई निश्चित प्रमाण भी उपलब्ध नहीं है। लेकिन स्थानीय लोगों का मानना है कि इस मंदिर का इतिहास हजारों वर्ष पुराना है। इसके अलावा मंदिर की वर्तमान संरचना को बने हुए भी लगभग 600 वर्ष हो चुके हैंय़ मंदिर से संबंधित मूल इतिहास के बारे में कोई विशेष जानकारी किसी के पास नहीं हैय़ मंदिर की सीढ़िया से रहस्यमई आवाजें आती हैं।
यह मंदिर बेहद ऊंचाई पर स्थित है, ऐसे में मंदिर तक पहुंचने के लिए भक्तों को लंबी सीढ़ियां चढ़नी पड़ती है। मंदिर तक जाने वाली यह सीढ़ियां रहस्यमई पत्थर से बनी हुई हैं। जब कोई भी व्यक्ति मंदिर की इन सीढ़ीओ पर चढ़ता है या पत्थर फेंकता है तो पानी में पत्थर मारने जैसी आवाज आती है। कहा जाता है कि प्राचीन काल में गंगा नदी का पानी इस मंदिर की सीढ़िया तक आता थाय लेकिन अब गंगा नदी मंदिर से करीब 5 किलोमीटर की दूरी पर है।
2. एरावतेश्वरार मंदिर-
तमिलनाडु में बने इस मंदिर की सीढ़ियों पर संगीत गूंजता है, एरावतेश्वरार मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। तमिलनाडु के इस मंदिर की सीढ़ियों पर पैरों के हल्के प्रहार से संगीत की मधुर ध्वनियां सुनाई देती हैं। तमिलनाडु राज्य में कुंभकरण के पास धारापुरम में एरावतेश्वरार मंदिर स्थित है। यह मंदिर यूनेस्को द्वारा वैश्विक धरोहर घोषित है। यह हिंदू मंदिर है जिसे दक्षिणी भारत के 12वीं सदी में राजा कॉल द्वितीय द्वारा बनवाया गया था। एरावतेश्वरार मंदिर भगवान शिव को समर्पित है।
भगवान शिव को यहां एरावतेश्वरार के रूप में जाना जाता है। क्योंकि इस मंदिर में देवताओं के राजा इंद्र के सफेद हाथी एरावत द्वारा भगवान शिव की पूजा की गई थी। मंदिर की बनावट मंदिर की हर एक चीज इतनी खूबसूरत और आकर्षक है कि इसे देखने के लिए वक्त के साथ ही समझ भी चाहिए। पत्थरों पर की गई नक्काशी बहुत ही शानदार है। ऐसा माना जाता है कि मंदिर को मनोरंजन के लिए बनाया गया था। मंदिर के स्तंभ 80 फीट ऊंचे हैं।
सामने के मंडपम का दक्षिणी भाग पत्थर के बड़े पहियों वाले विशाल रथ के रूप में है, जिसे घोड़े खींच रहे हैं। आंगन के पूर्व में नक्काशीदार इमारत का समूह है, जिनमें से एक को बली पीठ कहा जाता है। मतलब बलि देने का स्थान बली पीठ की कुर्सी पर एक छोटा मंदिर है। जिसमें गणेश जी की छवि है, चौकी के दक्षिणी तरफ शानदार नक्काशीयों वाली तीन सीडीओ का समूह है. यही वह सीढ़ियां हैं जिन पर हल्की सी भी ठोकर लगने से संगीत की ध्वनियां निकलती हैं।
चार तीर्थ वाला एक मंडपम-
मंदिर के आंगन के दक्षिण पश्चिम कोने में चार तीर्थ वाला एक मंडपम है, जिनमें से एक पर यह की छवि बनी है। मंदिर का इतिहास मानता है कि ऐरावत हाथी सफेद था। लेकिन दुर्वासा के श्राप के कारण हाथी का रंग बदल जाने से वह बहुत दुखी था। उसने इस मंदिर के पवित्र जल में स्नान करके अपना सफेद रंग पुनः प्राप्त किया. मंदिर में कई शिलालेख हैं, इन लेखों में एक मेंकुलोटूंगा कॉल तृतीय द्वारा मंदिरों का नवीकरण कराए जाने के बारे में जानकारी मिलती है।
पूरा के पास एक अन्य शिलालेख से पता चलता है कि एक आकृति कल्याणी से लाई गई। जिसे बाद में राजाधिराज कॉल प्रथम द्वारा कल्याणपुर नाम दिया गया। राजा सोमेश्वर प्रथम के बाद उनके पुत्र विक्रमादित्य और सोमेश्वर द्वितीय ने चालुक्य की राजधानी पर कब्जा कर लिया। एरावतेश्वर मंदिर को वर्ष 2004 में महान जीवंत मंदिरों की यूनेस्को वैश्विक धरोहर स्थल सूची में शामिल किया गया। महान जल जीवंत मंदिरों की सूची में तंजावुर का वृहदेश्वर मंदिर गैंग या गोंडा चोलापुरम का गांधी या गोंडा कालेश्वर मंदिर और धारा सूरन का एरावतेश्वर मंदिर शामिल है।
3. खेरेश्वर धाम मंदिर-
अश्वत्थामा रात के अंधेरे में शिव जी की पूजा करने आते हैं। अश्वत्थामा ने महाभारत में छल से पांडवों के पुत्रों की हत्या कर दी थी। तभी भगवान श्री कृष्ण ने अश्वत्थामा को श्राप दिया कि वह धरती पर तब तक पीड़ा झेलते हुए जीवित रहेगा, जब तक स्वयं महादेव उसे पापों से मुक्ति ना दिलाएं। तभी कानपुर के एक मंदिर में अश्वत्थामा रात के अंधेरे में शिवजी की पूजा करने आते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, अश्वत्थामा को इस दुनिया के अंत तक इस धरती पर मौजूद रहने का ईश्वर से आदेश मिला है। क्योंकि शिव को आदि और अंत का प्रतीक माना जाता हैष इसलिए अश्वत्थामा खुद शिवजी की पूजा करते हैं। बताया जाता है कि उत्तर प्रदेश के कानपुर के शिवराजपुर जगह में शिव जी का यह मंदिर स्थित है।
इसका नाम खेरेश्वर धाम मंदिर है। माना जाता है कि अश्वत्थामा यहां खुद भगवान भोलेनाथ की पूजा करते हैं। अश्वत्थामा रात के अंधेरे में चुपके से जाकर भगवान शंकर की पूजा करते हैं। वह उन्हें फूल माला चढ़ाने के अलावा मंत्र का जाप करते हैं, तभी सुबह मंदिर के कपाट खोलने पर चीजें बिखरी हुई मिलती हैं। मंदिर के पुजारी और स्थानीय लोगों के मुताबिक इस अद्भुत घटना को देखने की आज तक किसी में हिम्मत नहीं हुई। जिस किसी ने भी ईश्वर को चुनौती देनी चाही, उसे अपनी आंखों की रोशनी गंवानी पड़ी। हालांकि इसके रहस्य को जानने के लिए बहुत से न्यूज़ चैनलों ने भी कोशिश की।
एक्सपर्ट्स की टीम-
दरअसल न्यूज़ चैनल के एक्सपर्ट्स की टीम पूरी रात इस मंदिर के सामने रुकी। लेकिन उन्हें अश्वत्थामा तो नहीं दिखे पर उनको एक चौंकाने वाली चीज जरूर पता लगी, मंदिर के कपाट जब सुबह खोले गए तो वैसे ही जैसे बताया जाता है कि कोई जाकर शिवलिंग की पूजा सुबह-सुबह कर जाता है और उन पर फूल माला चढ़ा कर जाता है। ऐसा ही उन्हें देखने को मिला। यह इसलिए इतना चौंकाने वाला था क्योंकि पूरी रात वे न्यूज़ चैनल के एक्सपर्ट्स उस मंदिर के बाहर रुके हुए थे।
लेकिन उन्होंने मंदिर में रात को किसी को आते-जाते नहीं देखा. तो फिर वह व्यक्ति कौन था जो अदृश्य होकर शिवलिंग की पूजा कर गया। यह भी बताया जाता है कि रात के अंधेरे में इस मंदिर में कुछ अजीब घटनाएं होती हैं। अचानक से घंटियां बजने लगती हैं धूप दीप की महक आती है। ऐसे में जब भी पुजारी या किसी और ने इस बात के सच को जानने की कोशिश की, उनमें से कुछ को अपनी दृष्टि गवानी पड़ी है।
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लगभग 200 साल पुराना मंदिर-
मंदिर के पुजारी के मुताबिक, अश्वत्थामा को भोलेनाथ का पूजन करते देखना आम बात नहीं है। इस अद्भुत दृश्य को देखने की क्षमता व्यक्ति में नहीं होती है। यह मंदिर काफी प्राचीन है यह लगभग 200 साल पुराना है। कहा जाता है द्वापर युग में गुरु द्रोणाचार्य की कुटी यही हुआ करती थी। अश्वत्थामा का जन्म यहीं पर हुआ था इसीलिए वे यहां पूजा करने आते हैं। मंदिर में स्थापित शिवलिंग की उत्पत्ति जमीन से हुई है। बताया जाता है कि मंदिर के आसपास पहले जब भी कोई गए गुजरती थी, तब वह अपने थन से शिवलिंग पर दूध चढ़ाती थीं। बाद में जमीन की खुदाई में शिवलिंग की प्राप्ति हुई। मानता है कि जो भी भक्त इस मंदिर में दर्शन के लिए आता है, उसके सभी कष्ट दूर होते हैं। सावन में मंदिर में विशेष पूजा की व्यवस्था की जाती है।
4. अचलेश्वर महादेव मंदिर
इस प्रसिद्ध मंदिर में शिवलिंग बदलता है तीन बार रंग सब देखकर हो जाते हैं दंग। राजस्थान के धौलपुर में एक अनोखा मंदिर स्थित है, चंबल नदी के बिहड़ में स्थित इस शिव मंदिर को लोग अचलेश्वर महादेव मंदिर के नाम से जानते हैं। बिहड़ में मंदिर होने की वजह से पहले कम ही लोग यहां आप आते थे। लेकिन धीरे-धीरे मंदिर के बारे में पता चलते ही श्रद्धालु यहां आने शुरू हो गए और सावन माह में यहां विशेष पूजा भी होने लगी।
वैसे तो आपने बहुत से ऐसे शिवलिंग देखे होंगे, जिनकी कहानी अद्भुत है। लेकिन इस मंदिर की कहानी कुछ अनोखी है। शिवलिंग ऐसा कहा जाता है कि यह शिवलिंग दिन भर में तीन बार अपना रंग बदलता है। सुबह के समय लाल दोपहर में केसरिया और रात को सांवला हो जाता है। शिवलिंग के रंग बदलने के पीछे का कारण किसी को नहीं पता।
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