Mysterious Caves
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    Mysterious Caves: क्या शुरुआत में इंसान गुफा में रहता था। कहा जाता है कि वैज्ञानिकों ने पहाड़ी अरावली और सतपुड़ा की पहाड़ियों को दुनिया की सबसे प्राचीन पहाड़ी माना है। यूनान के लोगों की धारणा थी कि उनके देवता गुफाओं में ही रहते थे। इसी प्रकार रोम के लोगों का मानना था की गुफाओं में पर्याप्त तथा जादू टोना करने वाले लोग रहते थे। फारसी लोग मानते थे की गुफाओं में देवताओं का वास होता है। आज का विज्ञान कहता है की गुफाओं में एलियंस रहते थे।

    गुफाओं का इतिहास सदियों पुराना है, पाषाण युग में मानव गुफाओं में रहता था। आमतौर पर पहाड़ों को खोदकर बनाई गई जगह को गुफा कहते हैं। लेकिन गुफाएं केवल पहाड़ों पर ही निर्मित नहीं होती है। यह जमीन के भीतर भी बनाई जाती है और प्राकृतिक रूप से भी बनती है। प्राकृतिक रूप से जमीन के नीचे बहने वाली पानी की धारा से बनती है। ज्वालामुखी की वजह से भी गुफाओं का निर्माण होता है, दुनिया में अनेक छोटी-बड़ी गुफाएं हैं जो किसी अजूबे से कम नहीं है।

    भारत में हजारों गुफाएं-

    अफगानिस्तान के भीमबेटका तक और अमरनाथ से महाबलीपुरम तक भारत में हजारों गुफाएं (Mysterious Caves) हैं, हिमालय में तो अनगिनत प्राकृतिक गुफाएं हैं, जिनके बारे में कहा जाता है कि वहां साधु संत ज्ञान और तपस्या करते हैं या नहीं। बल्कि हिमालय की गुफाओं के बारे में तो यहां तक कहा जाता है कि वहां पर जो साधु संत तपस्या कर रहे हैं, उनमें से तो कुछ ऐसे हैं जो हजारों वर्षों से वहां तपस्या में लीन हैं, आज हम आपको भारत की कुछ रहस्यमई गुफाओं के बारे में बताएंगे जो अपने अंदर कई अनसुनी ऐतिहासिक रहस्य समेटे हुए हैं।

    पाताल भुवनेश्वर गुफा-

    भगवान श्री कृष्ण ने भी गीता में कहा है कि जो जन्मा है उसकी मृत्यु भी निश्चित है। इस नियम से ना तो सूर्य अलग है और ना हमारी पृथ्वी। इनका भी एक दिन अंत होना तय है, समय-समय पर दुनिया खत्म होने की भविष्यवाणीयां भी आती रहती है। लेकिन अभी दुनिया खत्म होने में काफी वक्त है। भारत की कुछ गुफाएं और मंदिर ऐसे हैं जहां यह रहस्य छुपा हुआ है। इन गुफाओं और मंदिरों में से पाताल भुवनेश्वर गुफा भी एक है।

    यह उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में गंगोलीहाट कस्बे में बसा है। पाताल भुवनेश्वर गुफा के विषय में स्कंद पुराण में कहा गया है कि इसमें भगवान शिव का निवास है। सभी देवी देवता इस गुफा में जाकर भगवान शिव की पूजा करते हैं। गुफा के संकरे रास्ते से जमीन के अंदर 8 से 10 फीट अंदर जाने पर गुफा की दीवारों पर शेषनाग सहित विभिन्न देवी देवताओं की आकृति नजर आती है।

    शंकराचार्य ने इस गुफा की खोज की-

    ऐसा मान्यता है कि पांडवों ने इस गुफा के पास तपस्या की थी, बाद में आदि शंकराचार्य ने इस गुफा की खोज की। इस गुफा में चार खंबे हैं जो चार युगों अर्थात सतयुग, त्रेता युग, द्वापर युग तथा कलयुग को दर्शाते हैं। इनमें पहले तीन कोई परिवर्तन नहीं होता, जबकि कलयुग का खंभा लंबाई में अधिक है और इसके ऊपर छत से एक पिंड नीचे लटक रहा है। यहां के पुजारी का कहना है कि 7 करोड़ वर्षों में यह पिंड 1 इंच बढ़ता है। ऐसा कहा जाता है कि जिस दिन यह पिंड कलयुग के खंभे से मिल जाएगा, उस दिन कलयुग समाप्त होगा और महाप्रलय आ जाएगा।

    व्यास गुफा-

    महर्षि वेदव्यास ने इस गुफा में की महाकाव्य की रचना की थी। रहस्यों से भरी इस गुफा को व्यास गुफा के नाम से जाना जाता है। वैसे तो यह एक छोटी सी गुफा है लेकिन इसके बारे में कहा जाता है कि हजारों साल पहले महर्षि वेदव्यास ने इसी गुफा में रहकर वेदों और पुराणों का संकलन किया था। भगवान गणेश की मदद से महाकाव्य की रचना की। ऐसा भी कहा जाता है कि जब व्यास महाभारत लिख रहे थे, तब सरस्वती नदी के शोर से बाधा पैदा हो रही थी। तब गणेश जी ने मां से प्रार्थना की थी कि वह अपना शोर कम कर लें, लेकिन मां सरस्वती ने ऐसा नहीं किया, तो भगवान गणेश ने गुस्से में आकर उनको श्राप दिया कि तुम आगे से किसी को भी दिखाई नहीं दोगी। पत्थर के इन रहस्य में पन्नों को व्यास पोती के नाम से जानती है।

    महाकाव्य में शामिल नहीं-

    दुनिया वेदव्यास गुफा अपनी अनोखी छत को लेकर भी पूरी दुनिया में चर्चित है। इस छत को देखने पर ऐसा लगता है जैसे बहुत से पन्नों को एक के ऊपर एक रखा गया है। इसी छत को लेकर भी कई धारणाएं हैं, मान्यता है कि महर्षि वेद व्यास ने भगवान गणेश से महाभारत के वह पन्ने लिखवाए तो थे, लेकिन उसे महाकाव्य में शामिल नहीं किया और उन्होंने उन पन्नों को अपनी शक्ति से पत्थर में बदल दिया। दुनिया पत्थर के इन रहस्यमय पन्नों को व्यास पोथी नाम से जानती है। पहली नजर में तो व्यास गुफा की छत ऐसी ही लगती है जैसे उस पर बहुत बड़ी किताब रखी हुई है। क्या आपको पता है वेदव्यास जी को सात चिरंजीवियों में से भी एक माना जाता है जो अभी भी इस कलयुग में जीवित हैं और भगवान कल्कि के अवतरित होने की राह देख रहे हैं।

    भीमबेटका की गुफाएं-

    मध्य प्रदेश में भीमबेटका का ऐसा कोई रहस्य नहीं है जो भय उत्पन्न करता हो। मान्यता है कि पांडव वनवास के दौरान यहां आए थे और कुछ समय तक पांडवों ने यहां निवास किया। उस दौरान वह पहरेदारी पर बैठा करते थे, इसलिए इस स्थान का नाम भीमबेटका पुकारा जाने लगा। लोगों को सन 1957 में जाकर पता चला कि पांडवों से पहले भी यहां पर मनुष्य रहा करते थे और यह मनुष्यों का 30000 साल पुराना मोहल्ला है, भीमबेटका भोपाल से 40 किलोमीटर दक्षिण में है। यहां से आगे सतपुड़ा की पहाड़ियां शुरू हो जाती है, भीमबेटका भारत के मध्य प्रदेश प्रांत के रायसेन जिले में स्थित एक पूरा पाषाणिक आवासीय पुरास्थल है। यह आदिमानव द्वारा बनाए गए शैल चित्रों और शैलायात्रियों के लिए प्रसिद्ध है। इन चित्रों को पूरा पाषाण काल से मध्य पाषाण काल के समय का माना जाता है।

    सबसे प्राचीन घाटियों में से एक-

    नर्मदा घाटी को विश्व की सबसे प्राचीन घाटियों में गिना जाता है। यहां भीमबेटका, भेड़ाघाट, नेमावर, हरदा, ओंकारेश्वर, महेश्वर होशंगाबाद, बावन गज्जा, अंगारेश्वर आदि नर्मदा तट के प्राचीन स्थान है। नर्मदा घाटी में डायनासोर के अंडे भी पाए गए हैं और यहां कई विशालकाय प्रजातियों के कंकाल भी मिले हैं। छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में तो कई गुफाएं हैं, इन गुफाओं में एलियंस के 10,000 वर्ष पुराने शैल चित्र मिले हैं, यहां मिले शैल चित्रों में स्पष्ट रूप से एक उड़न तस्तरी बनी हुई है।

    साथ ही इस तस्तरी से निकलने वाले एलियंस का चित्र भी स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है, जो आम मानव को एक अजीब छड़ी द्वारा निर्देश दे रहा है। इस एलियंस ने अपने सिर पर हेलमेट जैसा भी कुछ पहना हुआ है। जिस पर कुछ एंटीना लगे हैं, वैज्ञानिक कहते हैं कि 10,000 साल पहले बनाए गए यह चित्र स्पष्ट करते हैं कि यहां एलियन आए थे, जो तकनीकी मामले में हमसे कम से कम 10,000 वर्ष आगे ही हैं।

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    भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण-

    भीमबेटका क्षेत्र को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण भोपाल मंडल ने अगस्त 1990 में इसे राष्ट्रीय महत्व स्थल घोषित किया। इसके बाद जुलाई 2003 में यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर स्थल घोषित किया। यह भारत में मानव जीवन के प्राचीनतम चिन्ह हैं, उनकी खोज वर्ष 1957 से 1958 में डॉक्टर विष्णु श्रीधर वाकणकर द्वारा की गई थी। यहां 750 कैलाश हैं, पूर्व पाषाण काल से मध्य ऐतिहासिक काल तक यह स्थान मानव गतिविधियों का केंद्र रहा और इन चित्रों में शिकार, नाच गाना, घोड़े पर हाथी की सवारी लड़ते हुए जानवर, श्रृंगार मुखोटे और घरेलू जीवन का बड़ा ही शानदार चित्रण किया गया है। इसके अलावा वन में रहने वाले बाघ शेर से लेकर जंगली सूअर, भैंस, हाथी, हिरण, घोड़ा, कुत्ता, बंदर, छिपकली व बिच्छू तक चित्रित है।

    कार्बन डेटिंग-

    चित्रों में प्रयोग किए गए खनिज रंगों में मुख्य रूप से गेरुआ लाल और सफेद है और कहीं-कहीं पीला और हरे रंग भी प्रयोग हुआ है। कहीं-कहीं तो चित्र बहुत संघे हुए हैं, जिसे पता चलता है कि यह अलग-अलग समय में अलग-अलग लोगों ने बनाए होंगे। इनकी गणना कार्बन डेटिंग सिस्टम के माध्यम से की गई है। जिनमें अलग-अलग स्थान पर पूर्व पाषाण काल से लेकर मध्यकाल तक की चित्रकारी मिलती है। इसकी कार्बन डेटिंग से पता चला है कि इनमें से कुछ चित्र तो लगभग 25,000 वर्ष तक पुराने हैं। यह चित्र गुफाओं की दीवारों व छतों पर बनाए गए हैं। जिससे शुरुआती दौर के मानवों के जीवन जीने के तरीकों को जानने व देखने का मौका मिलता है, तो आप भी इन गुफाओं में धूमने जा सकते हैं।

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