Who is Karpoori Thakur
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    Karpoori Thakur: सोमवार को राष्ट्रपति भवन द्वारा घोषणा की गई की प्रमुख समाजवादी पार्टी नेता और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न से सम्मानित किया जाएगा। उन्हें आईटी के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा। कर्पूरी ठाकुर को विशेष सम्मान देने की घोषणा उनकी 100वीं जयंती पर से एक दिन पहले की गई है। बिहार के समस्तीपुर में कर्पूरी ठाकुर का जन्म हुआ था। यह दो कार्यकाल तक मुख्यमंत्री जननायक के नाम से भी जाने जाते हैं। उन्होंने पिछड़ी जातियों के हितों की वकालत की, वह पिछड़ी जातियों को एकजुट करने वाले पहले व्यक्ति थे। जिन्होंने 1978 में बिहार में सरकारी सेवाओं में उनके लिए 26 प्रतिशत आरक्षण का मार्ग प्रशस्त किया था।

    सामाजिक न्याय के पक्षधर-

    उनके प्रयासों ने 1990 के दशक में अन्य पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षण के लिए मंडल आयोग की सिफारिश के कार्यान्वयन के लिए रास्ता तैयार किया। भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान कर्पूरी ठाकुर को जेल में डाला गया। 1952 में अपनी पहली जीत के बाद अपने सारे जीवन और सामाजिक न्याय के पक्षधर होने की वजह से और अपनी लोकप्रियता की वजह से कभी कोई चुनाव नहीं हारे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ठाकुर को भारत रत्न दिए जाने की सराहना की है। उन्होंने कहा कि 'मुझे खुशी है भारत सरकार ने सामाजिक न्याय के प्रतीक महान जननायक कर्पूरी ठाकुर जी को भारत रत्न से सम्मानित करने के निर्णय लिया है और वह भी ऐसे समय पर जब उनकी जन्म तिथि आने वाली है।"

    ऑस्ट्रेलिया जाने वाले डेलिगेड्स में चुने-

    यह प्रतिष्ठित मान्यता हास्य पर पड़े लोगों के लिए एक चैंपियन, समानता और सशक्तिकरण से एक अग्रदूत के रूप में उनके स्थाई प्रयासों का एक प्रमाण है, राजनीतिक ताना-बाना है। यह पुरस्कार न सिर्फ उनके उल्लेखनीय योगदान का सम्मान करता है। बल्कि हमें उनसे ज्यादा न्याय संगत समाज बनाने के उनके मिशन को जारी रखने के लिए भी प्रेरित कर सकता है। समस्तीपुर में 1904 में सिर्फ एक व्यक्ति ने मैट्रिक पास की थी। 1934 में दो और 1940 में पांच लोगों ने मैट्रिक पास की थी। इनमें से एक कर्पूरी ठाकुर भी थे। वह 1952 में विधायक बने और ऑस्ट्रेलिया जाने वाले डेलिगेड्स में चुने गए। उनके पास कोट नहीं था, उन्होंने कोट अपने एक दोस्त से मांगा था, जो की फटा हुआ था। कर्पूरी जी वही कोट पहनकर चले गए। उसे वहां के मार्शल टीटो ने देखा कि उनका कोर्ट फटा है। उन्होंने ठाकुर कोट गिफ्ट किया।

    कर्पूरी के आदर्श कौन-

    सामाजिक व्यवस्था परिवर्तन में कर्पूरी के आदर्श जेपी लोहिया और आचार्य नरेंद्र देव थे। कर्पूरी को पहले समाजवादी आंदोलन की वह खाद उच्च वर्ग से ही मिलती थी। कर्पूरी ने पूरे आंदोलन को उन लोगों के बीच ही रोक दिया। जिनके बूते समाजवादी आंदोलन हरा होता था। वह 1970 में जब सरकार में मंत्री बने तो उन्होंने आठवीं तक की शिक्षा मुफ्त कर दी। उन्होंने उर्दू को द्वितीय राजभाषा का दर्जा दिया और 5 एकड़ तक की जमीन पर मालगुजारी खत्म कर दी।

    सांसद विधायक को प्रलोभन देते हुए इंदिरा गांधी ने मासिक पेंशन का कानून बनाया थाय़ तब कर्पूरी ठाकुर ने कहा था की मासिक पेंशन देने का कानून ऐसे देश में पारित हुआ है। जहां पर 60 में से 50 करोड लोगों की औसतन आमदनी 3 आने से दो रुपए है। अगर देश के गरीब लोगों के लिए 50 रुपए मासिक पेंशन की व्यवस्था हो जाती है तो बड़ी बात होती।

    फैसले बने मिलास-

    कर्पूरी ठाकुर ने ऐसे बहुत से फैसले लिए जो कि उन्हें मिसाल बन गए। उन्होंने देश में पहली बार ओबीसी आरक्षण दिया था। 1977 में मुख्यमंत्री बनने के बाद मुंगेरीलाल कमिशन लागू किया और इसकी वजह से पिछड़े वर्गों के लोगों के लिए नौकरियों को आरक्षण मिला।देश में पहले मुख्यमंत्री जिन्होंने अपने राज्य में मैट्रिक तक की पढ़ाई मुफ्त में कर दी थी। बिहार में उर्दू को दूसरी राजकीय भाषा का दर्जा दिया। 1967 में पहली बार उप मुख्यमंत्री बनने पर अंग्रेजी में अनिवार्यता खत्म कीजिए। गैर लाभकारी जमीन पर मालगुजारी टैक्स को बंद किया। मुख्यमंत्री बनते ही उन्होंने फोर्थ क्लास वर्कर पर लिफ्ट का आयोजन करने पर रोक हटाई थी, आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग और महिलाओं के लिए आरक्षण भी दिया।

    भारत रत्न देने की मांग-

    आपकी जानकारी के लिए बता दें कि सोमवार को उनकी पार्टी ने ठाकुर को भारत रत्न देने की मांग की थी। त्यागी ने कहा था कि कर्पूरी ठाकुर जननायक थे और उन्होंने समाज के लिए बहुत से काम किए हैं। त्यागी ने कहा था कि कोई जननायक यूं ही नहीं बन जाता। कर्पूरी ठाकुर ईमानदार, साध्वी और उच्च राजनीतिक मूल्यों के अनुकरणीय व्यक्तित्व है। उनका पूरा जीवन समाज के आखिरी व्यक्ति को विकास की मुख्य धारा से जोड़ने में ही चला गया।

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    1952 में कर्पूरी ठाकुर ताजपुर विधानसभा क्षेत्र के सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार थे। जिसके बाद वह जीत कर विधायक बने। 1967 के बिहार विधानसभा चुनाव में कर्पूरी ठाकुर के नेतृत्व में संयुक्त सोशल पार्टी बड़ी ताकत बनकर उभरी। जिसकी वजह से बिहार में पहली बार गैर कांग्रेस पार्टी की सरकार बनी थी। महामाया प्रसाद सिंह मुख्यमंत्री बने तो कर्पूरी ठाकुर ने उप मुख्यमंत्री के रूप में पदभार संभाला। उन्हें शिक्षा मंत्रालय का भी कार्यभार सोपा गया था।

    छात्रों की फीस को माफ-

    कर्पूर ठाकुर ने शिक्षा मंत्री रहते हुए छात्रों की फीस को खत्म कर दिया था और अंग्रेजी की अनिवार्यता भी खत्म हो गई। कुछ समय बाद बिहार की राजनीति ने ऐसी करवट ली कि कर्पूरी ठाकुर मुख्यमंत्री बन गए। इसके बाद वह 6 महीने तक सत्ता में रहे और उन्होंने खेतों में पर लगने वाली मालगुजारी को भी खत्म कर दिया। जिसने किसानों को बहुत मुनाफा होता था। साथ ही 5 एकड़ से कम पर मालगुजारी खत्म कर दी गई और साथ ही उर्दू को राज्य भाषा का दर्जा दिया गया। इसके बाद उनकी राजनीतिक ताकत में जबरदस्त उछाल आया। ठाकुर बिहार की सियासत में समाजवाद का एक बड़ा चेहरा बने उन्होंने मंडल आंदोलन में पहले मुख्यमंत्री रहते हुए पिछड़ों को 27 फीसदी तक आरक्षण दिलाया था। लोकनायक जय प्रकाश नारायण और राम मनोहर लोहिया इसके राजनीतिक गुरु थे।

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