अरावली पर माइनिंग को लेकर पर्यावरण मंत्री ने दिया स्पष्टीकरण, कहा सिर्फ 0.9 प्रतिशत हिस्से..

    Aravalli Mining Controversy
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    Aravalli Mining Controversy: कुछ समय पहले सुप्रीम कोर्ट ने अरावली की पहाड़ी की परिभाषा और माइनिंग को लेकर आदेश दिए थे, जिसे लेकर विवाद खड़ा हो गया है। इस विवाद को देखते हुए, केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने रविवार को यह साफ किया है, कि यह सूचना गलत है की 100 मीटर से कम ऊंचाई वाले सभी क्षेत्रों में माइनिंग की अनुमति दी जाएगी। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक पर पोस्ट करते हुए कहा, की अरावली में माइनिंग पर कोई भी छूट नहीं दी गई है। 1.44 लाख वर्ग किलोमीटर के अरावली क्षेत्र में से केवल 0.9% हिस्से में ही माइनिंग संभव है, बाकी पूरी अरावली पूरी तरह से सुरक्षित है।

    अरावली की वर्तमान स्थिति-

    अगर अरावली की वर्तमान स्थिति की बात करें, तो अरावली पर्वत भारत की सबसे पुरानी भौगोलिक संरचनाओं में से एक है, जो दिल्ली से लेकर हरियाणा, राजस्थान और गुजरात तक फैली हुई है। इस समय जो छोटा सा हिस्सा माइनिंग के अंतर्गत है, उसमें से लगभग 90% माइनिंग गतिविधि राजस्थान में है, जिसके बाद गुजरात में 9% और हरियाणा में से 1% प्रतिशत है। दिल्ली में इस तरह की कोई भी माइनिंग की अनुमति नहीं दी गई है।

    नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी की बैठक-

    मंत्री का कहना है, कि यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट सुंदरबन में नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी की बैठक के दौरान इस मुद्दे पर विचार विस्तार से चर्चा की गई है। उनका कहना है, कि अरावली रेंज को उन सभी भूमि रूपों के रूप में परिभाषित किया गया है, जो 100 मीटर या उससे अधिक ऊंचाई की दो पहाड़ियों के 500 मीटर के दायरे में मौजूद है। इस 500 मीटर के दायरे में मौजूद सभी भूमि रूप चाहे ऊंचाई कुछ भी हो माइनिंग या लीज़ पर देने के उद्देश्य से बाहर रखे गए हैं।

    केंद्र पर निशाना-

    वहीं संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान विपक्षी पार्टियों ने भी मुद्दे को उठाया था और यह दावा किया था, की नई परिभाषा से अरावली की ज्यादातर श्रृंखला संरक्षण से बाहर हो जाएगी। कांग्रेस के पूर्व पर्यावरण मंत्री जय राम रमेश ने सुप्रीम कोर्ट के नवंबर के आदेश को अरावली इकोसिस्टम के लिए एक गंभीर झटका बताया था। वहीं पूर्व राजस्थान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी केंद्र पर निशाना साधा था।

    इकोनॉमिक्स लॉजिकल यूनिट की रक्षा-

    हालांकि रविवार को पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने सभी से अपील की है, कि भ्रम फैलाना बंद करें और बताया, कि राजस्थान सरकार 2006 से इस परिभाषा का पालन कर रही है। पर्यावरण मंत्रालय ने स्पष्ट किया है, कि अरावली क्षेत्र के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश ने विचार विमर्श के दौरान माइनिंग रेगुलेट करने के लिए स्थानीय राहत के 100 मीटर के ऊपर में यूनिफार्म मानदंडों को अपनाने पर सहमति जताई। यह परिभाषा पूरी इकोनॉमिक्स लॉजिकल यूनिट की रक्षा करती है और मिट्टी की स्थिरता जल पुन: भरण और वनस्पति आवरण के लिए महत्वपूर्ण है और या तलहटी के टुकड़े-टुकड़े शोषण को रोकती है।

    100 मीटर वाली परिभाषा

    उन्होंने मीडिया रिपोर्ट्स का हवाला देते हुए कहा है, की नई परिभाषा माइनिंग को प्रतिबंधित करने के उद्देश्य से बनाई गई है। वही 100 मीटर वाले परिभाषा की बात की जाए, तो स्थानीय भूभाग से 100 मीटर या उससे ज्यादा ऊंचाई पर मौजूद आकृतियों को पहाड़ माना जाता है। ऐसी पहाड़ियों को घेरने वाली सबसे निचली सीमा रेखा के अंदर खनन पर रोक है। चाहे वह उसके भीतर आने वाली हुआ आकृति की ऊंचाई ढलान कुछ भी हो।

    राजस्थान की परिभाषा-

    सूत्रों की मानें, तो चारों राज्य इस लंबे समय से चली आ रही राजस्थान की परिभाषा को बनाने पर सहमत हो गए। इसके साथ ही वस्तुनिष्ठ और पारदर्शिका बनाने के लिए अतिरिक्त सुरक्षा उपायों को भी शामिल किया जाएगा। इन उपायों में एक दूसरे से 500 मीटर की दूरी पर स्थित पहाड़ को एक ही पर्वत श्रृंखला माना जाएगा। किसी भी खनन निर्णय से पहले भारतीय सर्वेक्षण विभाग के मानचित्र पर पहाड़ी और परीक्षण कलाओं का अनिवार्य मानचित्र और खनन निश्चित मुख्य और संरक्षित क्षेत्र में की स्पष्ट पहचान करना शामिल है।

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    दावों को खारिज-

    वहीं सरकार ने 100 मीटर से नीचे के क्षेत्र में खनन की अनुमति दिए जाने वाले दावों को खारिज करते हुए कहा, कि यह प्रतिबंध संपूर्ण पहाड़ी और उनके अंदर की आकृतियों पर लागू होता है ना सिर्फ पहाड़ी के शिखर या ढलान परष सरकार की ओर से कहा गया, कि यह निष्कर्ष निकालना गलत है, कि 100 मीटर से नीचे की सभी जगह खनन के लिए खुली है। सुप्रीम कोर्ट ने 20 नवंबर 2025 को पर्यावरण जलवायु परिवर्तन और वन मंत्रालय के तहत गठित समिति की अरावली पहाड़ियों और पर्वत श्रृंखलाओं की परिभाषा संबंधित कार्य को स्वीकार किया था।

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    By sumit

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