Son of Sardar 2 Review: कुछ फिल्में ऐसी होती हैं, जो एकदम सीरियस नहीं होतीं, लेकिन अपनी मस्ती, किरदारों की हरकतों और देसी ड्रामे से आपका मूड बना देती हैं। ऐसी ही कोशिश है, ‘Son of Sardaar 2’ जो अजय देवगन की मशहूर कॉमेडी फिल्म का सीक्वल है। पहली फिल्म को लोग या तो भूल चुके हैं या फिर बस एक हल्की याद लिए बैठे हैं। लेकिन जब वही जस्सी रंधावा (अजय देवगन) स्कॉटलैंड की वादियों में फिर से अपनी ठेठ पंजाबी अदाओं के साथ नजर आते हैं, तो लगता है, कि चलो कुछ देसी-हंसी मज़ाक फिर से देखने को मिलेगा।
एक्सप्रेशन्स में वही मासूमियत-
अजय देवगन इस बार भी जस्सी के किरदार में सहज लगते हैं। कहीं-कहीं उनके एक्सप्रेशन्स में वही मासूमियत नजर आती है, जो पहले भाग में थी, लेकिन अब सिचुएशन्स थोड़ी और उलझी हुई हैं। जस्सी इस बार ‘पिंड’ छोड़कर स्कॉटलैंड पहुंचते हैं, जहां उन्हें पता चलता है, कि उनकी बीवी (नीरू बजवा) अब उनकी नहीं रही। वो शादी कर चुकी हैं और जस्सी अब सच्चे प्यार, आत्म-सम्मान और एक नई शुरुआत की तलाश में है।
इसी सफर में मिलती है, राबिया (मृणाल ठाकुर), जो एक पाकिस्तानी डांसर है और जिसे देखकर जस्सी के दिल में कुछ-कुछ होने लगता है। मृणाल की कॉमिक टाइमिंग वाकई कमाल की है। उन्हें इस तरह का किरदार करते देखना एक ताज़ा अनुभव है। उनके साथ उनकी बेटी है, जो एक भारतीय लड़के से प्यार करती है, लेकिन इस प्यार में मज़हब, सरहद और बहुत सारी कन्फ्यूजन आ जाती है।
हल्के और मनोरंजक अंदाज़-
अब जहां इंडिया-पाक वाला एंगल हो, वहां कुछ ठेठ ड्रामे तो होंगे ही। लेकिन इस फिल्म ने इसे बेहद हल्के और मनोरंजक अंदाज़ में दिखाने की कोशिश की है। ये अच्छी बात है कि यहां पाकिस्तानियों को स्टीरियोटाइप नहीं किया गया, बल्कि ह्यूमन और फ्रेंडली अंदाज़ में दिखाया गया है, जो आज की फिल्मों में बहुत कम देखने को मिलता है।
दीपक डोबरियाल-
फिल्म में एक और बड़ा सरप्राइज है दीपक डोबरियाल। वो एक ट्रांसजेंडर के किरदार में हैं और उनका काम इतना दमदार है कि अगर स्क्रिप्ट में उन्हें और मौका मिलता, तो वो पूरी फिल्म अपने नाम कर सकते थे। उनके किरदार में संवेदनशीलता भी है और कॉमिक पंच भी, जो दर्शकों को हँसाता भी है और सोचने पर मजबूर भी करता है।
रवि किशन ने एक कट्टर लेकिन कहीं न कहीं कॉमिक रंग वाला किरदार निभाया है, जो अपनी प्रॉपर्टी, अपनी बेटी और अपने उसूलों को लेकर बहुत सीरियस हैं। लेकिन उनकी सीरियसनेस भी कई बार हँसी का कारण बन जाती है। वहीं चंकी पांडे हमेशा की तरह मस्ती वाले रोल में हैं, और कुब्रा सैत उन्हें बैलेंस करती हैं। इन दोनों के बीच के सीन्स हल्के-फुल्के हैं, और कहीं-कहीं थियेटर में सीटियां भी गूंजती हैं।
फिल्म की सबसे बड़ी ताकत-
फिल्म की सबसे बड़ी ताकत है इसकी लोकेशन और कलरफुल प्रेजेंटेशन। स्कॉटलैंड की वादियों को बेहद खूबसूरती से कैप्चर किया गया है। गाने लो-पिच पर हैं लेकिन सिचुएशन को सपोर्ट करते हैं। बैकग्राउंड म्यूजिक खासकर कुछ इमोशनल सीन्स में असरदार है। अब अगर बात की जाए कहानी की, तो हां – यह सच है, कि कहानी थोड़ी इधर-उधर भटकती है, और कुछ सीन्स थोड़े लंबे लगते हैं। लेकिन इस बात को नकारात्मक की तरह नहीं देखा जा सकता क्योंकि फिल्म की मूल भावना ही एक फन राइड की है। जहां किरदारों की गलतफहमियां, ज़बान की चुटकी, और मज़ेदार सिचुएशन्स दर्शकों को हंसाने के लिए बनाई गई हैं।
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थ्रिलर या लॉजिक-ड्रिवन-
यह कोई थ्रिलर या लॉजिक-ड्रिवन फिल्म नहीं है, यह एक ऐसी कहानी है जो आपको दो घंटे के लिए रियल लाइफ से थोड़ा दूर ले जाती है। जहां नायक दिल से भोला है, नायिका दिल से सच्ची है, और बाकी सभी किरदार किसी न किसी रंग में रंगे हुए हैं।कुछ जोक्स पुराने ज़माने के टाइप लग सकते हैं और कुछ सीन थोड़ा “किरकिरे” हो सकते हैं, लेकिन अगर आप इसे एक फैमिली-कॉमेडी फिल्म की तरह देखें, तो ये आपको निराश नहीं करती और सबसे बड़ी बात फिल्म हंसाने के साथ-साथ दिल छूने की कोशिश भी करती है। चाहे वो दीपक डोबरियाल का इमोशनल ट्रैक हो या मृणाल ठाकुर और अजय देवगन की धीरे-धीरे पनपती दोस्ती।
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