Ancient Temples of India
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    Ancient Temples of India: भारत के प्राचीन मंदिर सिर्फ खंडहर या पुरातात्विक स्थल नहीं हैं, बल्कि ये जीवंत धार्मिक केंद्र हैं जहां आज भी प्रार्थना, संगीत, भोजन और त्योहारों की रौनक बरकरार है। एक हजार साल से भी पुराने ये सात प्रतिष्ठित मंदिर न केवल स्थापत्य कला के अद्भुत नमूने हैं, बल्कि भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता के जीते-जागते प्रमाण भी हैं। अगर आप पहली बार इन मंदिरों की यात्रा की प्लानिंग कर रहे हैं, तो यह गाइड आपके लिए बहुत उपयोगी साबित होगी।

    बृहदेश्वर मंदिर-

    तमिलनाडु के तंजावुर में स्थित बृहदेश्वर मंदिर राजा राजा चोल प्रथम द्वारा 1010 ईस्वी में बनवाया गया था। यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल यह मंदिर अपने 216 फीट ऊंचे विमान और विशाल शिव लिंगम के लिए प्रसिद्ध है। ग्रेनाइट की बारीक नक्काशी, सटीक ज्योमेट्री और रोजाना की पूजा-अर्चना इसे म्यूजियम जैसा भव्य और साथ ही आध्यात्मिक रूप से सजीव बनाती है। सूर्यास्त के समय यहां आएं, तब पत्थरों पर पड़ती सुनहरी रोशनी का नजारा देखते ही बनता है।

    कैलास मंदिर-

    महाराष्ट्र के एलोरा में स्थित कैलास मंदिर आठवीं शताब्दी में राष्ट्रकूट राजा कृष्ण प्रथम के शासनकाल में बना था। यह एक अकेले पहाड़ को ऊपर से नीचे की ओर तराशकर बनाया गया मोनोलिथिक मंदिर है, जो भारत की रॉक-कट आर्किटेक्चर का सबसे साहसिक उदाहरण है। मंदिर के चारों ओर घूमते हुए हाथी की नक्काशी, फ्रीस्टैंडिंग टावर और खंभों वाले हॉल देखें, फिर थोड़ा पीछे हटकर सोचिए कि कैसे एक पूरा पहाड़ मंदिर बन गया।

    शोर टेम्पल-

    तमिलनाडु के महाबलीपुरम में आठवीं सदी में बना शोर टेम्पल पल्लव युग की देन है। यह ग्रेनाइट का कॉम्प्लेक्स शिव और विष्णु दोनों को समर्पित है और बंगाल की खाड़ी के सामने स्थित है। यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त इस मंदिर में सूर्योदय के समय समुद्री हवा और कॉम्पैक्ट नक्काशी का नजारा बेहद खूबसूरत होता है। कोरोमंडल कोस्ट पर घूमने वालों के लिए यह एक परफेक्ट स्टॉप है।

    लिंगराज और केदारनाथ-

    ओडिशा के भुवनेश्वर में ग्यारहवीं सदी का लिंगराज मंदिर हरिहर (शिव-विष्णु) को समर्पित है। कलिंग शैली का यह भव्य शिखर शहर की पहचान बन चुका है। गैर-हिंदुओं के लिए एंट्री नियम हैं, लेकिन बाहरी आंगन और टैंक देखने लायक हैं। वहीं उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग में आठवीं सदी से जुड़ा केदारनाथ मंदिर हिमालय की ऊंचाइयों पर स्थित एक ज्योतिर्लिंग है, जिसे पांडवों और आदि शंकराचार्य से जोड़ा जाता है। यात्रा सीजन में ही खुलने वाला यह मंदिर ट्रेक और पतली हवा के बीच दर्शन का अनुभव यादगार बनाता है। जाने से पहले मौसम, ऊंचाई की तैयारी और रजिस्ट्रेशन जरूर चेक करें।

    कोणार्क सूर्य मंदिर-

    ओडिशा के कोणार्क में तेरहवीं सदी में राजा नरसिंहदेव प्रथम द्वारा निर्मित सूर्य मंदिर यूनेस्को विरासत है। 24 पत्थर के पहिए और सात घोड़ों वाला यह रथ आज आंशिक रूप से खंडहर है, लेकिन इसकी बारीक नक्काशी अद्भुत है। पहिए और संगीतकारों के पैनल पर पड़ती रोशनी देखना न भूलें। पुरी-भुवनेश्वर के साथ इसे गोल्डन ट्राएंगल टूर में शामिल किया जा सकता है।

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    विरुपाक्ष मंदिर-

    कर्नाटक के पट्टडकल और हम्पी में फैली विरुपाक्ष मंदिर परंपरा सातवीं-आठवीं सदी की चालुक्य विरासत है। पट्टडकल का विरुपाक्ष यूनेस्को ग्रुप का हिस्सा है, जबकि हम्पी का विरुपाक्ष विजयनगर साम्राज्य की भव्यता को दर्शाता है। दोनों जगहों पर जाकर आर्किटेक्चर के विकास को समझा जा सकता है, पट्टडकल में शुरुआती प्रयोग और हम्पी में भव्य स्केल।

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    ये मंदिर सिर्फ देखने की चीजें नहीं, बल्कि भारतीय सभ्यता की धड़कन हैं। हर पत्थर में इतिहास, हर नक्काशी में कला और हर अनुष्ठान में जीवंत परंपरा बसी है। अगली छुट्टी इन्हीं धरोहरों के नाम कीजिए।

    By sumit

    मेरा नाम सुमित है और मैं एक प्रोफेशनल राइटर और जर्नलिस्ट हूँ, जिसे लिखने का पाँच साल से ज़्यादा का अनुभव है। मैं टेक्नोलॉजी और लाइफस्टाइल टॉपिक के साथ-साथ रिसर्च पर आधारित ताज़ा खबरें भी कवर करता हूँ। मेरा मकसद पढ़ने वालों को सही और सटीक जानकारी देना है।