Aravalli Mining: सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले ने दिल्ली-एनसीआर के पर्यावरण को लेकर एक नई बहस छेड़ दी है। कोर्ट की रूलिंग के बाद अरावली की 100 मीटर से नीचे की पहाड़ियों पर माइनिंग की अनुमति मिल गई है। यह फैसला उस समय आया है, जब दिल्ली पहले से ही गंभीर वायु प्रदूषण से जूझ रही है। यह निर्णय राजधानी के पर्यावरण संकट को और गहरा कर सकता है।
यूट्यूब चैनल Acute Facts के मुताबिक, अरावली रेंज में केवल 8.7 प्रतिशत पहाड़ियां ही 100 मीटर से ऊंची हैं। इसका मतलब है, कि लगभग 90 प्रतिशत से अधिक पहाड़ियों पर अब पत्थर काटने और सैंड माइनिंग की अनुमति मिल सकती है। चिंता यह है, कि इससे दिल्ली का वायु प्रदूषण और भी खतरनाक स्तर पर पहुंच सकता है। पीएम 2.5 के लेवल में भारी बढ़ोतरी हो सकती है और डस्ट स्टॉर्म्स की आवृत्ति बढ़ने की संभावना है।
अरावली दिल्ली की नेचुरल शील्ड-
अरावली पर्वत श्रृंखला सदियों से दिल्ली के लिए एक प्राकृतिक सुरक्षा कवच का काम करती आई है। यह राजस्थान के रेगिस्तान से आने वाली रेत और धूल भरी हवाओं को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसके अलावा यह ग्राउंड वाटर को रिचार्ज करने और क्लाइमेट को बैलेंस करने में भी मदद करती है। अगर इन पहाड़ियों को माइनिंग के लिए खोल दिया गया, तो दिल्ली की यह नेचुरल डिफेंस सिस्टम पूरी तरह खत्म हो जाएगी।
स्वास्थ्य पर गंभीर असर-
स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है, कि बढ़ते प्रदूषण से अस्थमा, एलर्जी और लंग डैमेज जैसी बीमारियां तेजी से बढ़ सकती हैं। खासकर बच्चों और बुजुर्गों के स्वास्थ्य पर इसका गंभीर असर पड़ेगा। सवाल यह उठता है, कि इस फैसले से किसे फायदा होगा। आम जनता को तो बिल्कुल नहीं, बल्कि माइनिंग माफिया और बड़े बिजनेस हाउसेज को जरूर लाभ होगा, जो इससे हजारों करोड़ रुपये कमा सकते हैं।
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पर्यावरण कार्यकर्ताओं का कहना है, कि यह नुकसान इररिवर्सिबल होगा। एक बार पहाड़ियां खत्म हो गईं, तो उन्हें वापस नहीं लाया जा सकता। आने वाली पीढ़ियों को इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी। जरूरत है, कि सरकार इस मामले पर गंभीरता से विचार करे और पर्यावरण संरक्षण को विकास से ऊपर रखे।
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