Delhi Smog Tower
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    Delhi Smog Tower: राजधानी दिल्ली की सांसों को जहर बना देने वाली हवा से निपटने के लिए सरकार ने कभी बड़े दावों के साथ स्मॉग टावर्स लगाए थे। लेकिन आज जब दिल्लीवासी प्रदूषण की मार झेल रहे हैं, तब ये टावर्स महज एक मजाक बनकर रह गए हैं। कनॉट प्लेस में खड़ा स्मॉग टावर, जिस पर करीब 20 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे, आज पूरी तरह से बंद पड़ा है। यह टावर अब प्रदूषण से लड़ने की बजाय सरकारी नाकामी की कहानी बयान कर रहा है।

    कनॉट प्लेस का बेकार पड़ा स्मॉग टावर-

    अंग्रज़ी समाचार वेबसाइट इंडिया टूडे के मुताबिक, दिल्ली के सबसे व्यस्त इलाकों में से एक कनॉट प्लेस में लगा स्मॉग टावर आज पूरी तरह से निष्क्रिय है। दिल्ली के पूर्व पर्यावरण मंत्री के मुताबिक, 20 करोड़ रुपये की लागत से बना यह टावर अब काम ही नहीं कर रहा है। टावर के पंखे थमे हुए हैं, जो कभी हवा को साफ करने का दावा करते थे। यह स्थिति तब है, जब दिल्ली की एयर क्वालिटी इंडेक्स खतरनाक स्तर को पार कर चुकी है और लोग सांस लेने तक को तरस रहे हैं।

    सबसे बड़ी विडंबना यह है, कि यह महंगा स्ट्रक्चर अब एक आवारा कुत्ते के लिए आश्रय स्थल बन गया है। जनता के पैसे से बना यह टावर, जो प्रदूषण से लड़ने के लिए बनाया गया था, आज खुद ही बेजान पड़ा है। यह दृश्य सरकार की नाकामी और गलत प्राथमिकताओं की सच्चाई को उजागर करता है। जब दिल्लीवासियों को साफ हवा की सख्त जरूरत है, तब यह टावर एक बेकार के ढांचे के रूप में खड़ा है।

    आनंद विहार का हाल भी कुछ खास नहीं-

    दिल्ली के सबसे प्रदूषित इलाकों में से एक आनंद विहार में भी एक स्मॉग टावर लगाया गया था। यह इलाका प्रदूषण का हॉटस्पॉट माना जाता है, जहां AQI लगातार खतरनाक स्तर पर बनी रहती है। लेकिन यहां का टावर भी उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पाया है। विशेष रिपोर्ट में इस टावर की स्थिति की भी जांच की गई और पाया गया, कि ये एंटी-पॉल्यूशन इंस्टोलेशन अपने मकसद में फेल हो चुके हैं।

    आनंद विहार जैसे इलाके में, जहां ट्रैफिक, निर्माण कार्य और औद्योगिक गतिविधियों से प्रदूषण चरम पर रहता है, वहां इन टावर्स का लिमिटिड इंपैक्ट और भी चिंताजनक है। स्थानीय लोगों का कहना है, कि उन्हें इन टावर्स से कोई फायदा महसूस नहीं हुआ और हवा की गुणवत्ता में कोई सुधार नहीं आया।

    पर्यावरणविदों और वैज्ञानिकों की चेतावनी-

    शुरू से ही पर्यावरणविद और वैज्ञानिक विशेषज्ञ स्मॉग टावर्स की सीमित उपयोगिता और उनकी भारी लागत पर सवाल उठाते रहे हैं। उनका तर्क है, कि ये टावर्स असली समस्या से ध्यान भटकाने का काम करते हैं। प्रदूषण को उसके स्रोत पर ही रोकने की बजाय, सरकार ऐसे टैम्प्रेरी और महंगे समाधानों पर करोड़ों रुपये खर्च कर रही है।

    जनता के पैसे की बर्बादी-

    दिल्ली की जनता आज यह सवाल पूछने का हक रखती है, कि उनके टैक्स के पैसे से बने ये टावर्स क्यों काम नहीं कर रहे? कनॉट प्लेस का 20 करोड़ रुपये का टावर अगर शुरू से ही इनइफैक्टिव था, तो इसे बनाया ही क्यों गया? क्या यह सिर्फ दिखावे के लिए था, ताकि सरकार यह कह सके, कि उसने प्रदूषण से लड़ने के लिए कुछ किया है?

    यह आयरॉनिक है, कि जो स्ट्रक्चर हवा को साफ करने के लिए बनाया गया था, वह खुद ही बेजान पड़ा है। जब पूरा देश दिल्ली के प्रदूषण संकट को देख रहा है, तब ये निष्क्रिय टावर्स सरकार की गलत प्रायोरिटीज़ और प्लानिंग की कमी को उजागर करते हैं। यह एक महंगी नाकामी है, जिसकी कीमत दिल्लीवासियों की सेहत चुका रही है।

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    असली समाधान की जरूरत-

    स्मॉग टावर्स का यह हाल यह साबित करता है, कि दिल्ली के प्रदूषण संकट से निपटने के लिए असली और दीर्घकालिक समाधान की जरूरत है। प्रदूषण के स्रोतों को नियंत्रित करना, वाहनों के उत्सर्जन को कम करना और हरित क्षेत्र बढ़ाना जैसे कदम ज्यादा प्रभावी होंगे। महंगे टावर्स पर करोड़ों खर्च करने की बजाय, सरकार को लॉन्ग टर्म शॉल्यूशन पर ध्यान देना चाहिए। दिल्लीवासियों को दिखावे की नहीं, असली राहत की जरूरत है।

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